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Photograph: (the sootr)
BHOPAL. मध्यप्रदेश की मजबूत सहकारी व्यवस्था में अब घपले_घोटालों का दीमक लग चुका है। बीते 12 साल से समितियों के चुनाव ही नहीं कराए गए। इसकी आड़ में सहकारी बैंक और समितियां अधिकारी-कर्मचारियों की धांधली का अड्डा बन चुकी हैं। इन सहकारी संस्थाओं में अब तक 200 करोड़ से ज्यादा के घपलों को अंजाम दिया जा चुका है।
एक दशक में करीब एक दर्जन जिला सहकारी बैंक और दो हजार से ज्यादा सहकारी समितियां आर्थिक गड़बड़ियों के कारण घाटे में चल रही हैं। बैंकों की स्थिति अपने खातेदारों को उनकी जमापूंजी लौटाने की भी नहीं है, लेकिन घपलेबाज मजे में हैं और जांच के नाम पर केस फाइलों में दब गए हैं। बीते 10-12 सालों में एक भी जांच तक पूरी नहीं हो पाई है।
10 साल से प्रशासकों के भरोसे बैंक
मध्यप्रदेश में लगभग 4,539 हजार प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां हैं। ये समितियां जिला सहकारी बैंकों से संबद्ध हैं। सहकारी समितियों को बीते 12 साल से प्रशासक चला रहे हैं क्योंकि चुनाव नहीं होने से समितियां भंग हैं। किसान और राजनीतिक दखल नहीं होने से इन संस्थाओं का आर्थिक प्रबंधन लड़खड़ा चुका है और दो हजार से ज्यादा समितियां घाटे में चल रही हैं। वहीं 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों में से करीब एक दर्जन की माली हालत खराब है।
बैंकों के पास अपने बड़े खातेदार और निवेशकों को उनकी पूंजी लौटाने की स्थिति नहीं हैं। इस वजह से कई खातेदार बैंकों के चक्कर काट रहे हैं। प्रदेश के मजबूत सहकारी सिस्टम को खोखला करने वालों पर विभाग और सरकार मेहरबान है। इसका खामियाजा लाखों समिति सदस्य और बैंक के खातेदारों को भुगतना पड़ रहा है।
घाटे में बैंक और सहकारी समिति
प्रदेश में सहकारिता की बदहाली के आलम यह है कि 4,539 सहकारी समितियों में से आधी घाटे में हैं। 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों में से नौ तो अपने सदस्यों को ही रुपए नहीं लौटा पा रहे हैं। बैंकों में एक दशक में करोड़ों के घोटालों की जांच पूरी हुई और न ही दोषियों पर कार्रवाई की गई।
उधर खातेदार परेशान हैं क्योंकि उनकी जमा पूंजी ही वापस नहीं मिल रही है। शिवपुरी, सतना, दतिया, झाबुआ, सीधी में ट्रैक्टर घोटाला एवं होशंगाबाद में ऋण वितरण में गड़बड़ी सहित कई मामले उजागर हो चुके हैं। इससे अब सहकारी संस्थाएं कंगाल हीने लगी हैं और उनकी निर्भरता सरकार के ऊपर बढ़ गई है।
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100 करोड़ के घोटाले पर चुप्पी
शिवपुरी जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में 100 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच अब फाइलों में दब चुकी है। इस घोटाले को बैंक प्रबंधक से लेकर सहकारी समिति के कार्यकर्ता सहित 13 लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया था। तब से मामले की जांच रेंग रही है।
बैंक और जमाकर्ताओं की मेहनत की 100 करोड़ की राशि हड़पने वाले किसी आरोपी पर केस दर्ज होने के अलावा कोई कार्रवाई तक नहीं हुई। अब बैंक खातेदारों को उनकी जमापूंजी लौटाने में भी समर्थ नहीं है। बैंक की माली हालत खराब होने के कारण इससे जुड़ी सहकारी समितियां भी खाद-बीज की खरीद-बिक्री में डिफॉल्टर हो चुकी है।
फर्जी रसीदों पर बांटा लोन
जिला सहकारी बैंक मंदसौर में लगभग 12 करोड़ रुपये का फजी ऋण बांटने का मामला आया। इसमें पात्रता नहीं होने पर भी बैंक अध्यक्ष ने परिजन के नाम पर ऋण ले लिया। नीमच, जीरन व सावन के वेयर हाउस की फर्जी रसीदों पर यह कर्ज दिया गया। जबकि वेवर हाउस में अनाज रस्ता ही नहीं गया था। जिन संस्थाओं को यह कर्ज दिया गया, उन्हें पात्रता ही नहीं थी। बवाल मचने पर बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष को ब्याज सहित राशि जमा करानी पड़ी थी लेकिन अब भी बैंक इस आर्थिक गड़बड़ी से उबर नहीं सका है।
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कछुआ चाल घोटाले की जांच
जिला सहकारी बैंक ग्वालियर से संबद्ध सहकारी समितियों ने भी बीते सालों में जमकर गोलमाल किया। बैंक और समितियों के कर्मचारी करोड़ों रुपए डकार गए। लोगों की ये जमापूंजी बैंक और समितियों के कर्मचारियों ने अपने परिवार, रिश्तेदार और मिलने वालों को फर्जी लोन के रूप में बांटी और फिर उससे अपना हिस्सा लेकर बेफिक्र हो गए। लोन के नाम पर इस फर्जीवाड़े से बैंक को 30 करोड़ से ज्यादा की चपत लगी है। मामला उछलने के बाद ईओडब्लू इस घोटाले की जांच कर रहा है लेकिन जांच की रफ्तार देखकर इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
फाइलों में दबा लोन घोटाला
सतना केंद्रीय सहकारी बैंक में किसानों के नाम पर छह करोड़ के फर्जी ऋण बांटने का घोटाला जांच के नाम पर फाइल में दब चुका है। जांच एजेंसियों के पास भी इस गड़बड़झाले के साक्ष्य जुटाने का समय नहीं है। समिति प्रबंधक रामलोटन तिवारी, समिति अध्यक्ष राजीव लोचन सिंह अमरपाटन, बैंक प्रबंधक बाबूलाल पटेल और पर्वेक्षक मुन्नालाल वर्मा ने साल 2015 में समिति के 603 सदस्य किसानों के नाम से फर्जी ऋण स्वीकृत कर 6 करोड़ हड़प लिए थे। किसानों को तो इसका पता साल 2016 में वसूली के नोटिस पहुंचने पर लगा था। अब देवरी, चोरहटा, खरबाही, लकहा, इटमा, और बडखुडा गांव के 603 किसान डिफॉल्टर हो चुके हैं।
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ऋणमाफी का डेढ़ करोड़ हजम
कांग्रेस सरकार के समय किसानों के ऋण माफ करने की घोषणा की गई थी। इसे भी सहकारी बैंक और समिति के कर्मचारियों ने कमाई का जरिया बना लिया। ऋण माफी योजना के नाम पर बैंक और समिति के कर्मचारियों ने किसानों के 2 करोड़ 40 लाख रुपए की मांग सरकार से की थी। ऋण माफी की मद में बैंक और समितियों को करीब डेढ़ करोड़ मिले लेकिन किसानों को इसकाा लाभ नहीं मिला। बैंक और समिति के लोग डेढ़ करोड़ रुपए डकार गए।
घपलेबाजों पर नहीं हुई सख्ती
अब सवाल ये है कि आखिर सहकारी समिति और बैंकों का 200 करोड़ से ज्यादा डकारने वालों पर जांच एजेंसियां सख्ती क्यों नहीं दिखा पा रही हैं। सहकारिता की मजबूत व्यवस्था को दीमक की तरह चट करने वाले घपले और घोटालेबाजों पर सरकार की मेहरबानी की आखिर वजह क्या है। जिन मामलों में केस दर्ज किए गए हैं उनमें जांच आगे क्यों नहीं बढ़ रही और जो जनता की गाढ़ी कमाई हड़पकर बैठे हैं उनसे वसूली की कार्रवाई से प्रशासन क्यों कतरा रहा है।
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नाबार्ड की चिट्ठी पर हो रहा मंथन
आर्थिक अनियमितताओं के चलते घाटे में डूबे प्रदेश के 11 सहकारी बैंक बंद होने के कगार पर हैं। इनमें रीवा, सतना, सागर, छतरपुर, भिंड, ग्वालियर, मुरैना, गुना, दतिया, शिवपुरी और जबलपुर करोड़ों के नुकसान में चल रहे हैं। इन बैंकों को घाटे से उबारने के लिए सरकार ने साल 2024 में 1000 करोड़ रुपए देने की स्वीकृति दी थी। हांलाकि बैंकों की हालात लगातार बिगड़ती जा रही है लेकिन सरकार से मिलने वाली राशि अब तक नहीं मिली है। उधर नाबार्ड द्वारा इन बैंकों को बंद करने की अनुशंसा पर सरकार सालभर से मंथन ही किए जा रही है। वहीं सहकारिता विभाग ऐसे बैंकों को बंद करने की जगह उन्हें घाटे से उबारने की सफाई देता आ रहा है।