भोपाल।
किसी भी राज्य में गृह सबसे प्रमुख विभाग होता है। जो सुरक्षा व कानून-व्यवस्था के लिहाज से अहम रोल अदा करता है। इस नाते इसे सबसे चुस्त विभाग माना गया,लेकिन मप्र के संदर्भ में यह धारणा गलत साबित हो सकती है।
दरअसल,राज्य का गृह विभाग ऐसे कई मामलों से अंजान है जो सीधे कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं। यही वजह है कि लव जिहाद जैसे संगठित अपराध घटित होने के बाद विभाग की नींद खुलती है।सुरक्षा की दृष्टि से आत्म रक्षार्थ दिए जाने वाले शस्त्र लाइसेंस भी विभाग का एक प्रमुख काम है।
आपको यह जानकर हैरत होगी कि विभाग के पास इस बात के कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं है कि राज्य में कुल कितने शस्त्र लाइसेंस धारक हैं। इनकी जिलेवार संख्या क्या है? सूचना के अधिकार कानून अंतर्गत विभाग से जब इस बारे में जानकारी मांगी गई तो उसने हाथ खड़े कर दिए। कहा गया-यह तो हर जिले से अलग-अलग लेनी होगी।
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विधानसभा को भी नहीं देते जानकारी
प्रदेश में शस्त्र लाइसेंस की संख्या को लेकर कई बार राज्य विधानसभा में भी जानकारी मांगी गई,लेकिन हर बार जानकारी एकत्रित की जा रही है कि जवाब के साथ कहकर सवालों को टाला जाता रहा।
सूत्रों के मुताबिक,विधानसभा के ऐसे संबंधित प्रश्न साल 2021 से लंबित है। इनकी जानकारी विभाग न तो जुटा सका न ही इसका सटीक उत्तर दे पाया। विभाग के अवर सचिव अन्नू भलावी कहते हैं-हम शस्त्र लाइसेंस के जिले व वर्षवार आंकड़ें तैयार नहीं करते। जिलों से ही यह जानकारी ली जा सकती है।
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सर्वाधिक हथियारों के मामले में टॉप टेन में मप्र
केंद्रीय गृह मंत्रालय के वेब पोर्टल पर दर्ज आंकड़ों के अनुसार,सबसे ज़्यादा बंदूक लाइसेंस धारकों वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। इसके बाद जम्मू-कश्मीर और पंजाब का स्थान आता है। 2016 से 2023 के बीच सबसे ज़्यादा बंदूक लाइसेंस जारी करने वाले 10 राज्यों में मप्र भी शामिल हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,मप्र में शस्त्र लायसेंस धारकों की संख्या करीब 2.85 लाख हैं,लेकिन ये सिर्फ वे हैं जो अपने लाइसेंस पर यूआईएन नंबर अपडेट करा सके।
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नए लाइसेंस बनने पर अघोषित रोक
मप्र में नए शस्त्र लाइसेंस बनने पर अघोषित रोक है। यह काम बीते साल सितंबर से बंद है। इसके चलते गृह विभाग में शस्त्र लाइसेंस की मांग रखने वालों के आवेदनों का अंबार लग गया है। अपने प्रकरण के निराकरण की मांग को लेकर कई आवेदक आए दिन मंत्रालय के फेरे भी लगाते हैं।
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शस्त्र लाइसेंस बनाने के लिए तत्कालीन गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा पर पांच लाख रुपए प्रति लाइसेंस लेने का आरोप भी लगाया था,हालांकि डॉ मिश्रा ने इस आरोप को सिरे से खारिज भी किया था। मौजूदा 16वीं विधानसभा की सरकार में किसी मंत्री को गृह विभाग नहीं दिया गया।
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पेपरलेस काम सिर्फ दिखावा,फाइलों का है अंबार
ई-फाइल व्यवस्था के तहत गृह विभाग को भी पेपरलेस किए जाने की कवायद जारी है। इसकी गति अंत्यत धीमी है।दरअसल,विभाग मुख्यालय के पास न तो पर्याप्त संख्या में कम्प्यूटर हैं, न ही स्कैनर।कर्मचारियों की कमी व काम का दबाव।इस पर आए दिन व कभी-कभी पूरे दिन चलने वाली बैठकों का दौर। इसके चलते विभाग का काम जल्द आनलाइन हो सकेगा,इसकी संभावना कम है।