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मध्य प्रदेश के सरकारी और निजी स्कूलों में छात्रों के साथ शारीरिक सजा या मारपीट अब पूरी तरह से प्रतिबंधित हो गई है। इसके तहत शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। यह फैसला बाल अधिकार संरक्षण आयोग की चिट्ठी के बाद लिया गया है।
शारीरिक सजा पर प्रतिबंध का आदेश
मध्य प्रदेश में अब स्कूलों में शारीरिक सजा पूरी तरह से बैन होगी। राज्य के शिक्षा विभाग ने जिला शिक्षा अधिकारियों को इस मामले में सख्त निर्देश जारी किए हैं। यह आदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से भेजे गए पत्र के आधार पर लागू हुआ है।
कानूनी कार्रवाई का प्रस्ताव
शारीरिक सजा और मानसिक प्रताड़ना को लेकर सख्त कदम उठाए जाएंगे। अपर संचालक रवींद्र कुमार सिंह ने इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी स्कूल में ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए। यदि ऐसा होता है, तो इसके खिलाफ कानूनी और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
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शिक्षा अधिनियम में सजा का प्रावधान
मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 की धारा 17(1) के तहत शारीरिक और मानसिक दंड पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। इसके तहत किसी भी शिक्षक या स्कूल द्वारा इस तरह की कार्रवाई करना दंडनीय अपराध है। इसके अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 323 भी शारीरिक दंड को प्रतिबंधित करती है।
सजा देने की घटनाओं पर रोक
राज्य में सभी जिलों के सरकारी और निजी स्कूलों में शारीरिक दंड की घटनाओं की तुरंत पहचान की जाएगी। इसके लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे ताकि बच्चों को शारीरिक सजा का सामना न करना पड़े। जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि ऐसी घटनाओं की सूचना मिलने पर वे तुरंत कार्रवाई करें।
हाल ही में सामने आई शारीरिक सजा की घटनाएं
भोपाल में 2 महीने पहले एक घटना सामने आई थी, जहां एक शिक्षक ने 11वीं कक्षा के छात्र को इतनी बुरी तरह मारा कि उसके पैरों की चमड़ी तक उतर गई थी। छात्र ने आरोप लगाया था कि शिक्षक ने उसे फुटबॉल शूज से मारा था। इसके बाद छात्र के परिजनों ने जिला शिक्षा अधिकारी से शिकायत की थी। वहीं रीवा में भी एक 5 साल के बच्चे को बुरी तरह से डांटा गया और फिर उसे टॉयलेट साफ करने के लिए मजबूर किया गया था। इस घटना को लेकर परिजनों ने स्कूल प्रशासन से शिकायत की, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई, जिससे उन्हें लिखित शिकायत करनी पड़ी।
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