इंदौर निगम बिल घोटालाः चौंकाने वाली बात जांच कमेटी ने 22 अधिकारी-कर्मचारी को नहीं दी क्लीन चिट

मध्यप्रदेश के इंदौर नगर निगम घोटाले में कमेटी ने 22 अधिकारी, कर्मचारियों की संलप्तिता को लेकर कहा है कि नोटशीट और दस्तावेजों पर इनके हस्ताक्षर वास्तविक है या नहीं, इसे जांच विशेषज्ञ ही साबित कर सकते हैं समिति नहीं कर सकती है...

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Jitendra Shrivastava
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इंदौर निगम बिल घोटाला

संजय गुप्ता, INDORE. नगर निगम में सामने आए 28 करोड़ के बिल घोटाले की 20 फाइलों की सूक्ष्म जांच की लिए बनी जांच कमेटी की 400 पन्नों की रिपोर्ट में 30 अधिकारी, कर्मचारियों के बयान है। चौंकाने वाली बात यह है कि जांच कमेटी ने इस मामले में इन 20 फाइलों को पूरी तरह से फर्जी पाया है, लेकिन इस मामले में कमेटी ने किसी को भी क्लीन चिट नहीं दी है। 

कमेटी ने 22 अधिकारी-कर्मचारियों को सशर्त दी राहत

निगम घोटाले में कमेटी ने 22 अधिकारी, कर्मचारियों की संलप्तिता को लेकर कहा है कि नोटशीट व दस्तावेजों पर इनके हस्ताक्षर वास्तविक है या नहीं, इसे जांच विशेषज्ञ ही साबित कर सकते हैं समिति नहीं कर सकती है। इसलिए इन आधार पर इन प्रकरणों में इनकी संलिप्तता सिद्ध नहीं होती है। इसके साथ ही कमेटी ने इस लाइन के साथ ही * (स्टार) लगाया है यानी शर्तें लागू वाला। यानी हस्ताक्षर की जांच यह क्राइम इन्वेस्टीगेशन है और यह निगम की कमेटी नहीं कर सकती है इसका मतलब यह भी हुआ कि क्लीन चिट नहीं दी गई है। हस्ताक्षर का यदि मिलान होता है जो पुलिस का काम है, तो फिर इन्हें दोषी माना जा सकता है, यह काम पुलिस की विवेचना का है। 

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सशर्त राहत में यह अधिकारी, कर्मचारी शामिल

तत्कालीन कार्यपालन इंजीनियर कमल सिंह, सब इंजीनियर राकेश शर्मा, तत्कालीन विनियमित सब इंजीनियर अविनाश कस्बे, प्रभारी कार्यपालन यंत्री सुनील गुप्ता, प्रभारी सहायक यंत्री सेवकराम पाटीदार, उपयंत्री उजमा खान, प्रभारी कार्यलाय अधीक्षक धरमचंद पालीवाल व प्रसाद रेगे, क्लर्क सतीश बड़के, सहायक लेखा पाल वरूणेश सेन, विनियमित कर्मचारी सुरेंद्र बागोरा, विजय शर्मा, आनंद शर्मा और मुकेश रायकवार, भृत्य सीताबाई, बेलदार विष्णु पाठक, उपयंत्री प्रदीप दुबे, विनियमित कर्मचारी क्लर्क प्रवीश जोशी, सहायक लेखा अधिकारी हरीश श्रीवास्तव।

अभय राठौर के लिए यह लिखा गया

वहीं घोटाले का किंगपिन बताया जा रहा फरार और 10 हजार का ईनामी इंजीनियर अभय राठौर जिसने एक बार जांच कमेटी के सामने बयान दिए और अपने हस्ताक्षर फर्जी बताए, लेकिन वह फिर कमेटी के सामने नहीं आए। इसलिए जांच कमेटी ने इनके बारे में यही लिखा है पुलिस ने आरोपी बनाया है, इस मामले में पुलिस विवेचना हो रही है, इसलिए कमेटी का कुछ भी कहना सही नहीं होगा।

जांच कमेटी ने इन 8 की संलिप्तता, लापरवाही पाई...
 
इसमें तीन कैटेगरी है

  1. गंभीर लापवाही सिद्ध होती है- (इसमें 5 शामिल) ऑडिट विभाग डिप्टी डायरेक्टर समरसिंह परमार, सीनियर आडिटर जगत सिंह ओहरिया, असिस्टें आडीटर विक्रम वर्मा व रामेशवर परमार, और कम्पय्टूर ऑपरेट्रर ऑडिट जगदीश चौकसे। 
  2. संलिप्तता संदिग्ध है- (इसमें 2 शामिल) मस्टर कर्मचारी आवक-जावक क्लर्क लेखा मुरलीधरन करता और विनियमित कर्मचारी भूपेंद्र पुरोहित लेखा विभाग भूपेंद्र पुरोहित
  3. लापवाही सिद्ध होती है- (इसमें 1 शामिल) विनियमित कर्मचारी क्लर्क लेखा विभाग सुनील भंवर

एक नहीं कई अपर आयुक्त, सिटी इंजीनियरों की साइन 

जांच कमेटी ने इन फर्जी फर्मों की कुल 188 फाइल पाई है, जिसमें 155 संदिग्ध है, लेकिन विस्तृत जांच 20 की ही की जिस पर पहली एफआईआर हुई थी। इन 20 फाइल को सीधे तौर पर कई दस्तावेज खंगालने के बाद फर्जी करार दिया गया है। इसमें अधिकारियों ने बताया कि यह उनके हस्ताक्षर नहीं है। इसमें बात अपर आयुक्त संदीप सोनी तक सीमित नहीं रही, पीछे गए तो इसमें अपर आयुक्त देंवेद्र सिंह, रोहन सक्सेना इन सभी की भी साइन पाई गई है जो इन फाइलों के तरीकों से फर्जी लग रही है। इसके साथ ही इन फाइलों पर सिटी इंजीनियर नरेंद्र सिंह तोमर, एसके कुरील, विनोद सराफ, कमल सिंह, एके दुबे सहायक इंजीनयर इन सभी के भी हस्ताक्षर पाए गए हैं। यह सभी फाइलें फर्जी दिख रही है। 

आखिर कमेटी ने इन आधारों पर फाइल को फर्जी पाया...

  1. अपर आयुक्त व आईएएस सिद्दार्थ जैन की नौ सदस्यीय कमेटी ने इसके लिए हजारों पन्ने खंगाले हैं और उनका बारीक अध्ययन किया है। इसके बाद इन फाइल की असली फाइलों से पूरी तुलना की, जिसके बाद यह सभी 20 फाइल फर्जी घोषित की गई है। 
    एक फाइल में मौटे तौर पर मेजरमेंट बुक (एमबी- जिसमें किसी भी काम के हर दिन का लेखा जोखा, पूरी फोट सब होता है) सहित अन्य दस्तावेजों के 400-500 पन्ने हो जाते हैं।
  2. भुगतान के लिए पहुंचने वाली एक फाइल में देयक के साथ पे-आर्डर, मूल देयक की प्रति, अनुबंध पत्र की कॉपी, मेजरमेंट बुक की कॉपी, कार्यस्थल पर किए गए काम के मूल फोटोग्राफ्स, कार्यपूर्णता सर्टिफिकेट की फोटोकॉपी, बिना तारीख के ठेकेदार को रॉयल्टी जमा करने के लिए जारी पत्र व गणना पत्रक की फोटोकॉपी, लेवलशीट की कॉपी, कार्यस्थल नक्शे की फोटो, ईपीएफ रसीद की कॉपी, लेगेसी पोर्टल पर प्रविष्टि की प्रति, ठेकेदार द्वारा जीएसटी 12 फीसदी दिए जाने क सहमति पत्र होता है।
  3. वहीं एक फाइल में लेवल शीट स्थल का नक्शा के साथ प्रशासकीय मंजूरी नोटशीट, निविदा बुलाने की नोटशीट, अध्यक्ष निविदा समिति का पत्र, समिति की अनुशंसा की नोटशीट, वित्तीय स्वीकृति नोटशीट, मेटेरियल टेस्टिंग का पत्र, रिपोर्ट, देयक की अनुशंसा शीट, पे आर्डर की नोटसीट, आडीटेड पे आर्डर की कॉपी, कार्यपूर्णता की कापी यह सभी लगे होते हैं। 

एक उदाहरण किस तरह बनी फर्जी फाइल

एक फाइल पर वर्कआर्डर 370 डला है और तारीख 18 दिसंबर 2018 बताई है जबकि मुख्य असरी रजिस्टर में यह वर्कआर्डर 4 सितंबर 2018 का है और समें काम केवल 2.37 लाख रुपए का है वार्ड 73 का ड्रेनेज लाइन डालने का है।  इसी तरह एक टेंडर फर्जी फाइल में 21 मई 2028 का बताया इसमें नंबर 1708 डला है लेकिन इस नंबर पर अकली काम केवलव 23 लाख रुपए का है जबकि फर्जी फाइल में इसे 1.23 करोड़ रुपए किया गया है। पे आर्डर भी फर्जी तरीके से बनाए गए हैं, इसमें आवक नंबर, कोषालय आवक नंबर, सब इंजीनयर, इंजीनियर सहित सभी के हस्ताक्षर फर्जी है, कुछ के तो वह साइन है जब वह अधिकारी संबंधित विभाग में पदस्थ ही नहीं थे। 

एक ही बिल फुल और फाइनल बना

जांच कमेटी ने सभी फाइलों में पाया कि भले ही वह अलग-अलग वार्ड, जोन की हो लेकिन इन सभी में मोटे तौर पर एक जैसी ही लिखावट दिख रही है। वहीं सभी के भुगतान के बिल एक ही फाइनल बना, जबकि निगम में ऐसा नहीं होता है, ठेकेदार जैसे-जैसे काम करता है वैसे-वैसे टुकड़ों में बिल लगते हैं। लेकिन इन सभी 20 फाइलों में एक ही बार फुल और फाइनल बिल लगा है। एक ही दिन में 5-5 किमी लंबी ड्रेनेज लाइन डलना और 500-500 चेंबर ढक्कन लगाना बताया गया। 

जांच कमेटी में यह थे शामिल

निगमायुक्त शिवम वर्मा द्वारा बनाई गई जांच कमेटी में जैन अध्यक्ष थे इसके साथ अपर आयुक्त वित्त देवधर दरवाई, सब इंजीनयर आरएस देवड़ा, सहायक लेखाधिकारी रमेशचंद्र शर्मा, आईटी सेल प्रभारी अधिकारी अभिनव राय, सहायक लेखापाल आशीष तागड़े और रूपेश काले शामिल थे।

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