दमोह के स्कूलों में डेढ़ दर्जन से ज्यादा फर्जी शिक्षक, मिलीभगत से मिला अ​भयदान !

मप्र के स्कूल शिक्षा विभाग की भी महिमा न्यारी है। विभागीय मंत्री मास्टरों द्वारा ठेके पर स्कूल चलाए जाने से दुखी हैं, तो कहीं शिक्षक फर्जी दस्तावेज पर नौकरी पाए हुए हैं!

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Ravi Awasthi
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Photograph: (the sootr)

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दमोह। शिक्षक शिल्पकार की तरह हैं। जो बच्चों का भविष्य गढ़ते हैं। लेकिन शिक्षक की योग्यता ही यदि फर्जी दस्तावेजों पर आधारित हो तो,इनके अधीन शिक्षारत बच्चों के भविष्य कैसा होगा ?  इसका आकलन मुश्किल काम नहीं है।

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 जिले में ऐसे ही करीब 20 शिक्षक फर्जी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर विभिन्न सरकारी स्कूलों में सालों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। विभागीय जांच में इनके फर्जी दस्तावेजों का खुलासा भी हो चुका है। मप्र उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक ​आदेश जारी कर संबंधितों के खिलाफ एक्शन लेने को कहा है,लेकिन हर बार की तरह विभागीय अधिकारी जांच के नाम पर मामलों को लंबा खींच रहे हैं।

ये शिक्षक हैं जांच के दायरे में

अधिकारिक सूत्रों के अनुसार,विभागीय जांच में अब तक जिन शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता वाली अंकसूचियां,प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए , उनमें  संजीव दुबे -आलमपुर, मंगल सिंह ठाकुर-चंदना, प्रीति खटीक -सतपारा, प्रभु दयाल पटेल -बकेनी, बहादुर सिंह लोधी - जोरतला खुर्द, अरविंद कुमार असाटी -हिनौती पुतरीघाट,  कल्याण प्रसाद झारिया-पटेरिया माल, रश्मि सोनी - सरखड़ी, सुनील कुमार पटेल -पिपरोधा छक्का, नीलम तिवारी -मैनवार, आशा मिश्रा -गढ़ोला खांडे, पुष्पा दुबे -घनश्याम पुरा,  महेश पटेल - सुरादेही, प्रवीण सिंघई- भैंसखार , उमेश कुमार राय -बह्मनी, दीपचंद पाल -जामुन,राम प्रसाद उपाध्याय -खबैना, मीना शर्मा -चौपरा  रैयतवारी व मनोज गौतम -सुजनीपुर शामिल हैं। 

मंत्री का भतीजा भी शामिल

सूत्रों के अनुसार,विभागीय जांच के दायरे में आए उक्त शिक्षकों में किसी की ग्रेजुएशन तो किसी की बीएड की अंकसूची संबंधित विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थानों से कराए गए सत्यापन में या तो गलत पाई गई या इनका कोई रिकॉर्ड ही संस्थानों में नहीं मिला। बताया जाता है जांच के दायरे में आए शिक्षकों में एक शिक्षक प्रदेश के मौजूदा एक मंत्री का निकटतम संबंधी भी है। इसके चलते बाकी दोषियों को भी अघोषित अभयदान मिला हुआ है। 

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सालों गुजर गए जांच में

खास बात यह कि यह मामला कोई एक-दो दिन का नहीं,बल्कि कुछ प्रकरण तो सात साल पुराने हैं। वहीं कुछ तीन तो कुछ चार साल पुराने। विभाग ने प्राथमिक कार्यवाही के नाम पर चंद शिक्षकों को निलंबित किया और फिर कुछ दिन बाद ही बहाल भी कर दिया गया,लेकिन धोखाधड़ी के इन प्रकरणों में न तो आपराधिक मामले दर्ज हुए न ही संबंधितों को दिए गए वेतन की रिकवरी की कोई प्रक्रिया अपनाई गई।

 दरअसल,ये प्रकरण जिला व संभागस्तरीय अधिकारियों के लिए 'दुधारू गाय ' की तरह हो गए हैं। जो जांच के नाम पर मामले के दबाए रखने वसूली कर रहे हैं। बल्कि एक शिक्षक को तो जांच के चलते  पदोन्नत भी कर दिया।

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4 सप्ताह में करें कार्रवाई:हाईकोर्ट

स्कूल शिक्षा विभाग में जारी इस फर्जीवाड़े के खिलाफ जिले के ​एक व्हिसल ब्लोअर जेके भट्ट अभियान छेड़े हुए हैं। उनकी पहल पर ही यह समूचा प्रकरण उजागर हो सका।

विभागीय अफसरों के टालमटोल रवैए से तंग ​आकर भट्ट ने बीते साल हाईकोर्ट जबलपुर में दस्तक दी। इस पर गत एक मार्च को फैसला सुनाते हुए न्यायालय ने सरकार को चार सप्ताह में संबंधितों के विरुद्ध कार्यवाही किए जाने के आदेश दिए हैं। 

पुन:कराएंगे अंकसूचियों का सत्यापन 

मामले को लंबा खींचने व दोषियों को बचाने में विभागीय अफसर कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इस मामले में सागर के विभागीय संयुक्त संचालक (जेडी ) मनीष वर्मा ने कहा कि कुछ आरोपी शिक्षक विश्वविद्यालयों द्वारा की गई सत्यापन प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं हैं।

उन्होंने नए सिरे से उनके दस्तावेजों की जांच की मांग की है। इसे ध्यान में रखते हुए एक बार पुन:सत्यापन प्रक्रिया अपनाने पर विचार किया जा रहा है। 

जेडी वर्मा ने कहा कि कुछ अन्य प्रकरणों में विभागीय जांच लंबित हैं। जब उन्हें यह बताया गया कि अधिकांश प्रकरण तीन से सात साल पुराने हैं,जिनमें जांच जारी है। जबकि नियमानुसार विभागीय जांच अधिकतम एक साल में पूरी हो जाना चाहिए,वर्मा ने कहा कि इस मामले में जिला शिक्षा अधिकारी  (डीईओ)से बात की जानी चाहिए। 

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बता दें कि डीईओ,जेडी के अधीन आते हैं। यानी वरिष्ठ अधिकारी अपनी जवाबदेही को मातहत अफसर पर ढोल रहे हैं। जिम्मेदार अफसरों के इसी रवैए की चलते किसी जिले में सरकारी शिक्षक ठेके पर स्कूल चला रहे हैं तो कहीं फर्जी लोग शिक्षा जैसे पुनीत काम को अंजाम दे रहे हैं। वहीं सरकार असहाय है। 

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