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मध्य प्रदेश के दतिया (Datia) में एक राजसी विवाद ने तूल पकड़ लिया है। रविवार को हेरिटेज पैलेस (Heritage Palace) में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान राहुल देव सिंह (Rahul Dev Singh) ने स्वयं को दतिया रियासत (Datia Royal Family) का 14वां महाराज (14th Maharaja) घोषित कर दिया। उन्होंने न केवल यह दावा किया, बल्कि अपना नाम भी "गोविंद जू देव" (Govind Ju Dev) रख लिया — जो कि दतिया रियासत के अंतिम शासक राजा गोविंद सिंह जू देव के नाम से मिलता-जुलता है।
करणी सेना और क्षत्रिय महासभा भी मैदान में
मामला अब सिर्फ पारिवारिक विवाद नहीं रहा। करणी सेना और अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने इस ‘राजतिलक नाटक’ की जांच की मांग की है। पुलिस को ज्ञापन सौंपते हुए उन्होंने इसे गैर-संवैधानिक बताया और प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की।
विवाद क्यों हुआ
राहुल देव सिंह ने खुद को महाराज गोविंद जू देव घोषित किया और सार्वजनिक रूप से शाही उत्तराधिकारी होने का दावा किया। उन्होंने गोविंद जू देव के नाम पर खुद का नाम रख लिया। इसके बाद समाज ने उनके इस कदम का विरोध किया और बहिष्कार किया। राहुल ने वसीयत और 1920 के दस्तावेज का हवाला दिया, लेकिन कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया
पूर्व विधायक बोले:अस्थिर बुद्धि के शिकार हैं राहुल देव
दतिया राजपरिवार के सदस्य और पूर्व विधायक घनश्याम सिंह ने राहुल देव पर तीखा हमला बोला। उनका कहना है कि राहुल को अचानक "महाराज बनने की सनक" सवार हो गई है, जो सीधे-सीधे भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान के खिलाफ है। उन्होंने यह भी दावा किया कि राहुल देव जो वसीयत प्रस्तुत कर रहे हैं, वह पूरी तरह कूटरचित है।
दामाद का तिलक क्यों?
पूर्व विधायक सिंह ने बड़ा सवाल उठाया कि जब परिवार में कई सदस्य हैं, तो दामाद का तिलक क्यों? उनका कहना है कि राहुल देव की पत्नी की मां स्व. पद्माकुमारी कभी राहुल देव से सहमत नहीं थीं। वे उनके लिए अपशब्दों का भी प्रयोग करती थीं, ऐसे में उनके द्वारा वसीयत किया जाना ही अविश्वसनीय है।
राहुल देव का जवाब: हमारे पास हैं दस्तावेज
राहुल देव ने सधा हुआ जवाब दिया, "हमारे पास 1920 के दस्तावेज और राजमाता का आदेश है। कोई भी वसीयत को चुनौती दे सकता है, हम जवाब देंगे।" उन्होंने घनश्याम सिंह को "परम सम्माननीय" बताते हुए किसी भी तरह की व्यक्तिगत टिप्पणी से इंकार किया।
राहुल देव डांसर से महाराजा तक का सफर
राहुल देव की यात्रा कम दिलचस्प नहीं रही। कभी डांसर बनने का सपना देखा, फिल्मों में हाथ आज़माया, राजनीति में उतरे, फिर धर्म की ओर रुख किया और खुद को महामंडलेश्वर घोषित कर लिया। अब नई मंज़िल है महाराजा बनना है।
ऐसी है दतिया की रियासत
दतिया रियासत के आखिरी राजा महाराजा गोविंद सिंह रहे हैं। उनका निधन 1951 में हुआ। इस वक्त सभी रियासतों का भारत गणराज्य में विलय हो गया। उनके दो पुत्र थे। बड़े पुत्र थे बलभद्र सिंह और छोटे जसवंत सिंह थे। राजा गोविंद सिंह ने अपने छोटे पुत्र जसवंत सिंह को रियासत के समय नदीगांव की जागीर दे दी थी उनको जागीरदार बनाया था। नदीगांव का किला दिया था। दतिया स्टेट के अंदर वे एक जागीरदार थे और राव राजा का टाइटल दिया था। महाराजा बलभद्र सिंह का राजा गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद राजतिलक किया गया।दतिया के महाराजा का उनको टाइटल मिला।
राष्ट्रपति ने पत्र लिखकर पूर्व राजा के रुप में दी मान्यता
भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें पत्र लिखकर पूर्व राजा के रूप में मान्यता दी। महाराजा बलभद्र सिंह के निधन के बाद उनके बड़े बेटे महाराजा किशन सिंह का राजतिलक हुआ। जैसे हर घर में पगड़ी रस्म होती है उस तरह से यहां दरबार हॉल में तिलक हुआ था। उनके निधन के बाद बड़े पुत्र राजेंद्र सिंह का राजतिलक हुआ। 30 अप्रैल 2020 को उनके निधन के बाद अरुणादित्य देव का 14वें महाराजा के रूप में राजतिलक किया गया।
पूर्व विधायक सिंह के मुताबिक, दतिया रियासत में किसी महाराजा का निधन होता है तो उससे पहले मृतक महाराजा के दाहिने पैर के अंगूठे में चंदन लगाकर उससे ज्येष्ठ पुत्र का राजतिलक किया जाता है। अब राहुल देव सिंह भी खुद को दतिया का 14वां महाराजा घोषित कर रहे हैं।
कौन थे महाराज जू देव सिंह
महाराजा गोविंद सिंह जूदेव दतिया रियासत के 10 वें राजा थे। वे 1907-1951 तक सेंट जॉन एम्बुलेंस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और रेड क्रॉस सोसाइटी के संरक्षक भी रहे हैं। महाराजा लोकेंद्र सर गोविंद सिंह जू देव बहादुर का जन्म 1886 में हुआ था। उनकी पहली शादी 1902 में ग्वालियर के मानपुरा क्षेत्र के ढंडेरा जागीरदार की बेटी से हुई थी, लेकिन उनकी पहली पत्नी का निधन 1935 से पहले हो गया। इसके बाद उन्होंने सायला के ठाकोर साहब की बेटी से दूसरी शादी की। उनकी तीसरी शादी दतिया के सुअरा के ठाकुर की बेटी से हुई, जिससे उन्हें संतान प्राप्त हुई। महाराजा का निधन वर्ष 1951 में हुआ।
खुद को राजा घोषित करने को लेकर क्या कहता है संविधान
भारतीय संविधान के हिसाब से, कोई भी व्यक्ति खुद को राजा या सम्राट घोषित नहीं कर सकता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, और भारतीय संविधान में राजशाही का कोई स्थान नहीं है। भारतीय संविधान के तहत, शासन प्रणाली का आधार लोकतंत्र है, जहां जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार चलाती है। भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और अन्य सरकारी अधिकारी केवल संविधान द्वारा निर्धारित तरीके से निर्वाचित या नियुक्त होते हैं। राजशाही, जिसे ब्रिटिश काल के दौरान भारत में लागू किया गया था, को संविधान के अधीन समाप्त कर दिया गया।
कोई भी व्यक्ति खुद को राजा या सम्राट घोषित नहीं कर सकता
इसके अतिरिक्त, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 में पदवी और सम्मान के असहमति के बारे में प्रावधान है, जिसके तहत किसी भी तरह की राजशाही या सामंतवादी उपाधियां या दरबार की स्वीकृति को समाप्त कर दिया गया है। इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति खुद को राजा या सम्राट घोषित नहीं कर सकता, और न ही किसी तरह की राजशाही प्रणाली का पालन किया जा सकता है।
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