ओबीसी आरक्षण : छत्तीसगढ़ में हो चुका है निर्णय, MP सरकार चाहे तो लागू कर सकती है आदेश

मध्य प्रदेश सरकार ने 2023 से 2025 तक ओबीसी आरक्षण से जुड़े मामलों को जबलपुर हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कराने के लिए लगभग 100 ट्रांसफर याचिकाएं दायर की थीं।

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Neel Tiwari
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 21 मार्च को मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण से जुड़ी 52 ट्रांसफर याचिकाओं पर सुनवाई की। अदालत ने स्पष्ट किया कि छत्तीसगढ़ में पहले ही इस मुद्दे पर निर्णय लिया जा चुका है। मध्य प्रदेश सरकार चाहे तो वह आदेश लागू कर सकती है। लेकिन, राज्य सरकार की निष्क्रियता को देखते हुए यह सवाल उठ रहा है कि क्या वह वास्तव में 27% ओबीसी आरक्षण को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है या फिर इसे सिर्फ कानूनी दायरे में उलझाकर टालने का प्रयास कर रही है। यह मामला अब सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि सरकार की नीति और नीयत पर भी सवाल खड़े कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट रुख

मध्य प्रदेश सरकार ने 2023 से 2025 तक ओबीसी आरक्षण से जुड़े मामलों को जबलपुर हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कराने के लिए लगभग 100 ट्रांसफर याचिकाएं दायर की थीं। इन याचिकाओं के चलते हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थगित (स्टे) कर दिया गया था। मामलों का निपटारा सुप्रीम कोर्ट स्तर पर हो सके। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देकर इन मामलों को अपने अधीन लिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में मामले स्थानांतरित हो जाने के बावजूद राज्य सरकार ने त्वरित सुनवाई कराने की कोई पहल नहीं की। आमतौर पर जब कोई सरकार किसी आरक्षण या नीति को लागू करना चाहती है, तो वह अदालत से प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई की मांग करती है। मध्य प्रदेश सरकार ने इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया, जिससे यह संकेत मिलता है कि सरकार जानबूझकर देरी कर रही है ताकि 27% ओबीसी आरक्षण लागू ही न हो सके। इससे ओबीसी वर्ग के लाखों अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है, और वे न्याय की आस में भटक रहे हैं।

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अपाक्स संघ सहित अन्य याचिकाओं पर सुनवाई

शुक्रवार की सुनवाई के दौरान अपाक्स संघ की याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत के समक्ष अपनी दलीलें प्रस्तुत कीं। उन्होंने अदालत को अवगत कराया कि मध्य प्रदेश सरकार 87-13% के फार्मूले पर नियुक्ति दे रही है, जो पूरी तरह असंवैधानिक और आरक्षण नीति के खिलाफ है।

उन्होंने तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ राज्य में 58% आरक्षण के तहत नियुक्तियों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूरी दी जा चुकी है और अदालत ने इस पर अंतरिम राहत भी प्रदान की थी। अधिवक्ताओं ने कोर्ट से आग्रह किया कि मध्य प्रदेश में भी यही व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि मध्य प्रदेश सरकार भी छत्तीसगढ़ की तर्ज पर नियुक्ति दे सकती है। इस टिप्पणी के बाद ओबीसी आरक्षण को लेकर मध्य प्रदेश सरकार की मंशा पर सवाल और भी गहरा गए हैं। अगर सरकार को वास्तव में ओबीसी आरक्षण लागू करना होता, तो वह इसी आधार पर कोर्ट से आदेश प्राप्त कर सकती थी। लेकिन अब तक सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की, जिससे यह साफ हो जाता है कि वह जानबूझकर इस मुद्दे को लंबित रखना चाहती है।

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राज्य सरकार पर दोहरे रवैये के आरोप

ओबीसी वर्ग की ओर से पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ओबीसी आरक्षण लागू करने के प्रति पूरी तरह उदासीन है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) और अन्य सरकारी वकील न्यायालय में विभिन्न आदेशों का हवाला देकर जनता को भ्रमित कर रहे हैं। सरकार बार-बार यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि ओबीसी आरक्षण लागू नहीं हो पा रहा है क्योंकि मामले अदालत में लंबित हैं, लेकिन हकीकत यह है कि सरकार खुद ही इस प्रक्रिया में बाधा डाल रही है।

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ओबीसी युवाओं के भविष्य पर संकट 

इस मामले में याचिका करता हूं उसकी ओर से अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने बताया कि ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों और संगठनों की ओर से दायर नई याचिकाओं में यह मांग की गई है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले के अधीन 27% आरक्षण के आधार पर नियुक्तियां दी जाएं। लेकिन सरकार खुद इस मांग का विरोध कर रही है, जिससे यह साफ हो जाता है कि वह ओबीसी समुदाय को उनका संवैधानिक अधिकार देने के लिए इच्छुक नहीं है।

प्रदेश के हजारों युवा सरकारी नौकरियों के इंतजार में बैठे हैं, लेकिन सरकार की निष्क्रियता के कारण उनके भविष्य पर संकट मंडरा रहा है। सरकारी भर्तियों में बार-बार देरी हो रही है, जिससे ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को मानसिक और आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है। अगर सरकार समय रहते सही फैसला नहीं लेती, तो यह मामला आने वाले दिनों में और भी बड़े विरोध और आंदोलन का रूप ले सकता है।

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सरकार के अगले कदम पर सबकी नजरें

अब देखना यह होगा कि क्या मध्य प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुरूप कदम उठाएगी। कानून के जानकारों के अनुसार सरकार अगर चाहे तो तुरंत सुप्रीम कोर्ट से स्पष्ट आदेश प्राप्त कर सकती है और प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण लागू कर सकती है। लेकिन अब तक के रुख को देखते हुए ऐसा लगता है कि सरकार इस मामले में और अधिक देरी करना चाहती है।ओबीसी वर्ग और इससे जुड़े संगठनों की नज़र सरकार के अगले कदम पर टिकी हुई है। अगर जल्द कोई ठोस फैसला नहीं लिया गया, तो यह मुद्दा राजनीतिक रूप से और भी बड़ा बन सकता है। इस मामले में राजनीतिक दलों से लगातार प्रतिक्रिया सामने आ रही हैं। ओबीसी वर्ग मध्य प्रदेश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है और उनकी नाराजगी के चलते यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा भी बन सकता है।

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