केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindia ) की मां राजमाता माधवी राजे सिंधिया ( Rajmata Madhavi Raje Scindia ) का निधन हो गया है। वे 70 साल की थीं। पिछले तीन महीने से बीमार होने से दिल्ली एम्स में भर्ती थीं। यहां उन्होंने अंतिम सांस ली। भाजपा मीडिया प्रभारी नरेश धाकड़ ( Naresh Dhakad ) ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बताया कि उनका अंतिम संस्कार ग्वालियर में गुरुवार यानी 16 मई को सुबह 11 बजे किया जाएगा। राजमाता माधवी राजे मूलतः नेपाल की रहने वाली थीं। वे नेपाल राजघराने से संबंध रखती थीं। उनके दादा जुद्ध शमशेर बहादुर नेपाल के प्रधानमंत्री थे। राणा वंश के मुखिया भी रहे थे।1966 में माधवराव सिंधिया के साथ उनका विवाह हुआ था।
ज्योतिरादित्य के भाजपा में जाने के फैसले में दिया था साथ
मार्च 2020 में जब सिंधिया राजघराने के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने का निर्णय लिया था, तो उस समय पूरा परिवार उनके साथ था। बेटा और पत्नी तो उनके फैसले में साथ थे ही, पर सबसे ज्यादा सपोर्ट उनकी मां माधवी राजे सिंधिया ने किया था।ज्योतिरादित्य कांग्रेस में पिता की विरासत छोड़कर जाने में संकोच कर रहे थे, लेकिन माधवी राजे ने मार्गदर्शक बनकर राह दिखाई थी। इसके बाद ही ज्योतिरादित्य ने इतना बड़ा फैसला लेकर अपनी दादी विजयाराजे सिंधिया की तरह बड़ा कदम उठाया था।
दिल्ली में शादी, मराठी परंपरा के अनुसार बदला नाम
शादी से पहले राजमाता माधवी राजे का नाम प्रिंसेस किरण राजलक्ष्मी देवी था। ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के माधवराव सिंधिया से 1966 में उनकी शादी हुई। शादी दिल्ली में शानो-शौकत के साथ हुई थी। इस शाही शादी में देश-विदेश से मेहमान शामिल हुए थे। शादी के बाद मराठी परंपरा के अनुसार नेपाल की राजकुमारी का नाम बदला गया। इसके बाद वह किरण राजलक्ष्मी से माधवीराजे कहलाने लगीं। माधवी और माधवराव का रिश्ता ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने तय किया था।
2001 में हुआ था माधवराव सिंधिया का निधन
माधवी राजे के पति और पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया का निधन 30 सितंबर 2001 को हुआ था। इसके बाद से वह काफी टूट गई थीं, लेकिन बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया और बहू प्रियदर्शनी राजे सिंधिया की मार्गदर्शक रहीं। ज्योतिरादित्य हमेशा अपनी मां से सलाह मशविरा करके फैसला लेते रहे।
राजनीति में नहीं आईं, बेटे के लिए छोड़ी विरासत
माधवराव सिंधिया के निधन के बाद माधवी राजे के राजनीति में आने के कयास भी लगते रहे। माना जा रहा था कि वह साल 2004 के आम लोकसभा चुनाव में ग्वालियर लोकसभा से चुनाव लड़ सकती हैं। माना जा रहा था कि गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया और ग्वालियर से माधवी राजे मैदान में होंगी, क्योंकि उस समय माधवराव के आकस्मिक निधन से लोग भावुक थे, लेकिन माधवी राजे ने खुद को राजनीति से दूर ही रखा। साथ ही, पति माधवराव सिंधिया की राजनीतिक विरासत बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए छोड़ दी।
नेपाल के राणा राजवंश की राजकुमारी थीं माधवी राजे
सिंधिया राजपरिवार की बहू बनने से पहले भी माधवी राजे सिंधिया रॉयल फैमिली से आती थीं। उनके दादा नेपाल के प्रधानमंत्री और राणा राजवंश के प्रमुख जुद्ध शमशेर जंग बहादुर राणा थे। वे कास्की और लमजुंग के महाराजा और गोरखा के सरदार रामकृष्ण कुंवर के पैतृक वंशज थे। ऐसे में वे इस नेपाली राजघराने की राजकुमारी थीं। शादी से पहले उनका नाम किरण राज लक्ष्मी देवी था। 1966 में सिंधिया राजघराने के महाराज माधवराव से शादी के बाद वह किरण राजलक्ष्मी से माधवी राजे बनीं।
तस्वीर देखकर भा गईं थी राजकुमारी
सुंदर राजकुमारी किरण राज लक्ष्मी देवी की शादी का प्रस्ताव सिंधिया राजघराने में आया। उस वक्त तक तस्वीरों का चलन शुरू हो चुका था। ऐसे में नेपाल की इस राजकुमारी की तस्वीर उस वक्त ग्वालियर के महाराज रहे माधवराव सिंधिया को दिखाई गई। तस्वीर देखते ही माधवराव को किरण पसंद आ गईं। बताया जाता है तस्वीर देखने के बाद माधव राव ने सामने से उन्हें देखने की इच्छा जाहिर की, वह संभव न हो सका, लेकिन यह रिश्ता पक्का हो गया।
बारात के लिए चलाई थी स्पेशल ट्रेन
उस दौरान तय हुआ की विवाह दिल्ली से सम्पन्न होगा। ऐसे में बारात ले जाने के लिए विशेष इंतजाम किए गए। ग्वालियर से दिल्ली के बीच विशेष ट्रेन चलाई गई, जिससे ग्वालियर के महाराज माधवराव सिंधिया अपनी बारात लेकर गए थे।8 मई 1966 को परंपरागत रूप से शादी संपन्न हुई थी और किरण राज लक्ष्मी विवाह पश्चात सिंधिया घराने की बहू और सिंधिया राजवंश की रानी बनकर ग्वालियर आ गईं।
ग्वालियर आने पर हुआ था भव्य स्वागत
शहर के कुछ चुनिंदा लोग बताते हैं कि 8 मई 1966 को ग्वालियर के महाराज माधवराव सिंधिया की शादी नेपाल की राजकुमारी से हुई थी। शादी के कुछ दिन बाद जब सिंधिया राजघराने की बहू पहली बार ग्वालियर आई थीं, तो ग्वालियर में उनका भव्य स्वागत हुआ था।
रास्ते पर फूल बिछाए गए थे। उसके बाद कभी किसी बहू रानी का इतना जोशीला स्वागत नहीं हुआ है।
मां-बेटे के बीच में सेतु थीं माधवी राजे
माधव राव सिंधिया और उनकी माता विजयाराजे सिंधिया के बीच कई सालों तक संबंध ठीक नहीं थे। यहां तक की एक बार राजमाता विजयाराजे ने माधवराव को उनके अंतिम संस्कार में शामिल न होने के लिए भी कहा था पर साल 2001 में विजयाराजे के निधन पर माधवराव ने ही उनको मुखाग्नि दी थी। मां (विजयाराजे) और बेटे (माधवराव) के बीच माधवी राजे एक सेतु का काम करती थीं। वियजाराजे सिंधिया, बेटे माधवराव सिंधिया से चाहें जितनी भी नाराज हों मतभेद हों, लेकिन बहू और सास के बीच कभी कोई मतभेद नहीं पनपा। माधवी राजे ने हमेशा दोनों के बीच एक सेतु के रूप में काम किया था।