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मध्यप्रदेश में साल 2019 में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का एक्ट पास हुआ। इसे अभी सरकारी नौकरियों में लागू नहीं किया गया है। मामला जबलपुर हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में विचाराधाीन है। इसी मामले में 25 जून 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एमपी में ओबीसी वर्ग के लिए 27% आरक्षण लागू न किए जाने के मुद्दे पर एक बेहद अहम सुनवाई हुई।
जस्टिस केबी विश्वनाथन और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की डिविजनल बेंच में यह मामला कोर्ट क्रमांक 11 में सीरियल नंबर 29 पर लिस्टेड था। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने सरकार के रवैये को “संवैधानिक मूल्यों के प्रतिकूल” बताते हुए विरोध जताया। लंबे समय तक चली बहस के बाद बेंच ने राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए 4 जुलाई 2025 को जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
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विधानसभा का कानून लागू नहीं कर रही सरकार
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने कहा कि एक्ट पास होने के बाद भी obc उम्मीदवारों को 27% आरक्षण का लाभ नहीं मिला। सरकार 19 मार्च 2019 के हाईकोर्ट के पुराने अंतरिम आदेश का हवाला देकर आरक्षण लागू नहीं कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा इंदिरा साहनी केस क्या है ?
इन दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट जस्टिस ने अधिवक्ता से ही पूछा कि इंदिरा साहनी केस क्या है। इसमें आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय की हुई है। इस पर अधिवक्ता ने कहा कि मप्र में ओबीसी की आबादी 51 फीसदी है। नौकरियों में केवल 13.66 फीसदी है। इसलिए सरकार ने 27 फीसदी का एक्ट पास किया और इस पर कोई स्टे नहीं है। लेकिन केवल विधिक सलाह के बाद एक नोटिफिकेशन से इस आरक्षण को देने से रोक दिया गया। सरकार ने 87-13 फीसदी का फार्मूला लगा दिया। चार-पांच साल से यह 13 फीसदी आरक्षण रूका हुआ है। हमारी मांग है इसे लागू किया जाए।
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सुप्रीम कोर्ट ने मांगा सरकार से जवाब
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मप्र शासन से जवाब मांगते हुए इसमें अगली तारीख 4 जुलाई लगाई है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ताओं के तर्क पर बार-बार इंदिरा साहनी केस का हवाला दिया। इसमें बताया कि इस केस के तहत 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय की गई थी।
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क्या है इंदिरा साहनी केस और फिर 2010 में क्या हुआ ?
सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता इंदिरा साहनी ने यह केस मंडल आयोग की सिफारशि लागू होने के बाद लगाया था। इस केस में 1992 में फैसला आया और इसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी कर दी गई। हालांकि साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने अपवाद में वैज्ञानिक ठोस कारण आने पर इसे बढ़ाने की भी मंजूरी दी।
बिहार में आरक्षण को रदद् कर दिया था
बिहार में भी जातिगत आरक्षण के बाद आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 65 फीसदी कर दि दिया गया था। इसमें जातिगत जनगणना का हवाला दिया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था।
PSC सहित सैकड़ों भर्ती प्रक्रिया अधर में
याचिका WP(C) 606/2025 में बताया गया कि राज्य में PSC और अन्य विभागीय भर्तियों की चयन प्रक्रिया कई वर्षों से ठप है। हाईकोर्ट ओबीसी आरक्षण से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के कारण सुनने से इनकार कर रहा है। इस कारण PSC समेत कई भर्ती परीक्षाएं "होल्ड" पर हैं और हजारों अभ्यर्थी रोजगार से वंचित हो रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने इसे संवैधानिक संकट बताया, जहाँ पारित कानून को लागू नहीं किया जा रहा।
अब अगली सुनवाई पर सबकी नजरें
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और नोटिस के बाद मध्य प्रदेश के ओबीसी समुदाय और सरकारी नौकरी के इच्छुक युवाओं की निगाहें 4 जुलाई 2025 की सुनवाई पर हैं। इस सुनवाई में यह तय होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार को 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने का निर्देश देगा या मामला और जटिल होगा।
ओबीसी, अनारक्षित दोनों बोल रहे हमे दो 13 फीसदी
सितंबर 2022 से MP में 87-13 फीसदी फार्मूला लागू किया गया। इसके बाद से PSC और ESB की सभी परीक्षाओं में केवल 87 फीसदी रिजल्ट आ रहे हैं। 13 फीसदी पद ओबीसी और अनारक्षित दोनों के लिए रखे गए हैं। इसके चलते हजारों पद और लाखों उम्मीदवार इस रिजल्ट में अटके हुए हैं। ओबीसी की मांग है कि 13 फीसदी पद उनके खाते में आएं। अनारक्षित वर्ग का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए 50 फीसदी से अधिक आरक्षण की अनुमति नहीं देता। मामला सुप्रीम कोर्ट में है और उसी के फैसले के बाद सरकार आगे बढ़ेगी।
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87-13 का फार्मूला | 27 फीसदी OBC आरक्षण