सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वह इस विषय पर किसी भी याचिका पर सुनवाई न करे और न ही कोई नई याचिका स्वीकार करे। यह आदेश इसलिए आया क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण से जुड़े लगभग 100 ट्रांसफर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थीं, जिनमें से 52 याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मध्य प्रदेश सरकार यदि चाहती है तो वह कानून सम्मत तरीके से 27% आरक्षण के आधार पर भर्तियों का विज्ञापन जारी कर सकती है, क्योंकि 27% आरक्षण को लेकर कोई स्थगन आदेश (Stay) नहीं है।
महाधिवक्ता की गलत व्याख्या से बनी स्थिति, सुप्रीम कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया में स्पष्टता दी
सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने कोर्ट को अवगत कराया कि मध्य प्रदेश सरकार 87-13% के फॉर्मूले के आधार पर भर्ती कर रही है, जो पूरी तरह असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के विभिन्न आदेशों की राज्य महाधिवक्ता द्वारा गलत व्याख्या की गई, जिससे सरकार को गलत अभिमत दिए गए और भर्तियों में बाधा उत्पन्न हुई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई भर्ती प्रक्रिया शुरू होती है तो सरकार को 27% आरक्षण लागू करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं होगी। साथ ही, कोर्ट ने निर्देश दिया कि जिन आवेदकों को अब तक नोटिस नहीं मिला है, उनके लिए दो राष्ट्रीय अखबारों में सार्वजनिक नोटिस प्रकाशित किया जाए।
21 अप्रैल 2025 को होगी अगली सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट करेगा विवादित मुद्दों का अंतिम निराकरण
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अब जब ओबीसी आरक्षण को लेकर सभी प्रकरण उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित हो चुके हैं, तो मध्य प्रदेश हाईकोर्ट किसी भी नई याचिका की सुनवाई नहीं करेगी। यह आदेश इसलिए दिया गया ताकि मामले में एकरूपता बनी रहे और कोई भी अदालत अलग-अलग आदेश जारी न करे। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 21 अप्रैल 2025 को तय की है, जिसमें विवादित मुद्दों का अंतिम निराकरण किया जाएगा। इस सुनवाई के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि मध्य प्रदेश सरकार ओबीसी आरक्षण लागू करने को लेकर क्या रुख अपनाती है और भर्ती प्रक्रिया किस तरह आगे बढ़ेगी।
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