मध्य प्रदेश में साल 2019 से चल रहे ओबीसी को 27% आरक्षण देने के विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया है। अगस्त में हुई सुनवाई के बाद मप्र शासन को नोटिस जारी हो चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर याचिका स्वीकार कर अक्टूबर माह में इसकी अगली सुनवाई रखी हुई है। अब इस मामले में एक बार फिर मांग उठी है कि ओबीसी के 27% आरक्षण का प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर होने से 13% होल्ड पदों को अनहोल्ड कर रुकी हुई भर्ती दी जाना चाहिए।
इसलिए की अनहोल्ड की मांग
जानकारों और अधिवक्ता रामेशवर ठाकुर का कहना है कि ट्रांसफर याचिका सुप्रीम कोर्ट जा चुकी है और हाईकोर्ट की साइट पर यह डिस्पोज दिख रही है, यानी यह केस हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकारी से हट चुका है। ऐसे में अंतरिम आदेश 13 फीसदी पद होल्ड वाला प्रभावहीन हो चुका है। वैसे भी विधि के सिद्धांत के तहत विधायिका के बने कानून की वैधानिकता की परीक्षण किए बिना हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट स्टे नहीं कर सकते हैं, वैसे भी संविधान में आरक्षण कितना दिया जाए यह कहीं नहीं है।
हजारों उम्मीदवार और पद रुक गए
जानकारों का कहना है कि महाधिवक्ता कार्यालय द्वारा जारी अभिमत के आधार पर मप्र शासन ने सभी भर्तियों को होल्ड कर दिया था। इससे मप्र लोक सेवा आयोग (MPPSC) सहित मध्य प्रदेश की समस्त भर्तियों में ओबीसी तथा सामान्य वर्ग के 50 हजार से अधिक अभ्यर्थी प्रभावित हैं। GAD के सचिव कह रहे हैं कि यदि महाधिवक्ता अभिमत देते हैं तों सभी भर्तियों में किए होल्ड पदों को अनहोल्ड किया जा सकेगा।
अधिवक्ता ठाकुर बोले- विधिवत कानून बनाकर दिया आरक्षण
अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ओबीसी के लिए यह केस देख रहे हैं। उनका कहना है कि मध्य प्रदेश में दिनांक 8/3/2019 को अध्यादेश जारी करके ओबीसी को 14% से वृद्धि करके 27% आरक्षण लागू किया गया था तथा 14/8/19 को सरकार ने उक्त आरक्षण का विधिवत कानून बनाकर विधान सभा से पारित किया। आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(2) में संशोधन करके लागू कर दिया गया। प्रदेश में ओबीसी को पूर्व में 14%, एससी को 16% एसटी को 20% तथा ews को 10% इस प्रकार कुल 60% तथा ओबीसी को 13% वृद्धि करने से कुल 73% आरक्षण लागू किया गया।
हाईकोर्ट में इस केस को लेकर शुरू हुआ था होल्ड होना
जानकारों का कहना है कि हाईकोर्ट में पहली याचिका क्रमांक 5901/19 दिनांक 12/3/19 को पीजी नीट 2019-20 में दाखिले ओबीसी को 27% आरक्षण लागू नहीं करने की मांग को लेकर हुई। दाखिल याचिका में हाईकोर्ट ने दिनांक 19/3/19 को संभावना के आधार पर अंतरिम आदेश में स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल याचिका की विषय वस्तु पर ही लागू होगा। PG नीट ओबीसी आरक्षण में शासन द्वारा नियुक्त विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं विनायक प्रसाद शाह ने दिनांक 13/9/24 को जीएडी के सचिव से संपर्क कर 13% होल्ड पदों को अनहोल्ड किए जाने हेतु चर्चा की गई तो अवगत कराया काउंसलिंग की अधिसूचना दिनांक 06/03/19 को जारी की गई थी जिससे उक्त काउंसलिंग में 27% आरक्षण का प्रश्न ही नहीं उठता था। इस 27 फीसदी को लेकर हाईकोर्ट में एक के बाद एक अनेक याचिकाएं दाखिल की गईं जिनमें दिनांक 19/03/19 को पारित अंतरिम आदेश को लागू किया गया। अब याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट जा चुकीं तो यह अंतरिम आदेश अब प्रभावहीन होता है, इसलिए पदों को अनहोल्ड कर ओबीसी को दिया जाए।
पीएससी के पदों पर भी हाल बेहाल
सितंबर 2022 में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण विवाद के बाद जीएडी ने 87-13 फीसदी का फार्मूला निकाला और 13 फीसदी पद होल्ड करते हुए 87 फीसदी पर भर्ती देना शुरू किया। लेकिन यह केवल पीएससी पर लगाया, बाद में विवाद हुआ तो ईएसबी की भर्ती में भी लागू कर दिया गया। इसमें कहा गया कि 13 फीसदी होल्ड पद ओबीसी को जाएंगे या अनारक्षित को यह कोर्ट के फैसले के बाद लागू होगा। अभी इन पदों पर हम दोनों ही उम्मीदवारों को लेंगे, इंटरव्यू करेंगे, लेकिन रिजल्ट घोषित नहीं करेंगे। इसके चलते पीएससी की राज्य सेवा, वन सेवा 2010, 2020, 2021 परीक्षा की अंतिम भर्ती होने के बाद भी पद और अभ्यर्थी सालों से इंतजार में हैं।
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युवा बोला मैं बेरोजगार सेना का सदस्य, द सूत्र को भेजा पत्र
यही हाल पीएससी की अन्य सभी परीक्षाओं में हैं और साथ एक पीड़ित छात्र ने खुद को बेरोजगार सेना का सदस्य बताते हुए 'द सूत्र' को पत्र लिखकर कहा कि ईएसबी की भर्ती परीक्षा एमपी ग्रुप 4, सहायक ग्रेड 3, डाटा एंट्री ऑपरेटर, स्टेनोटाइपिस्ट 2022-23 के 3047 पदों में ओबीसी के 667 पदों में से 13 फीसदी को रोक दिया गया है। इसमें मैं भी हूं, जो रोजगार के लिए परेशान है।
सुप्रीम कोर्ट में 20 अगस्त को इस तरह हुई सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में 20 अगस्त को सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवाई और जस्टिस केवी विश्वनाथन के सामने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता आदित्य संघी ने तर्क रखा था कि संवैधानिक बेंच ने 50 से अधिक आरक्षण पर रोक लगाई है लेकिन इसके बाद भी मध्य प्रदेश सरकार ने आरक्षण बढ़ाते हुए इसे 63 फीसदी कर दिया है। उन्होंने कहा कि मराठा आरक्षण में भी अतिरिक्त आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य किया इसी तरह बिहार के मामले में भी 50 विधि से ज्यादा आरक्षण को आमान्य किया जा चुका है। ऐसे में मध्य प्रदेश में भी 50 फीसदी से से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। अधिवक्ता सांघी ने यह भी कहा कि मार्च 2019 में इस आरक्षण के विरुद्ध हमने हाईकोर्ट में स्टे लिया था उसमें लगातार सुनवाई हुई लेकिन फैसले के पूर्व मध्य शासन द्वारा इसमें ट्रांसफर याचिका लगा दी गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर ट्रांसफर याचिका मंजूर की और अगली सुनवाई तय की।