मध्यप्रदेश में डायबिटीज के मरीजों की संख्या अब 11 लाख से अधिक हो गई है, और हर दिन नए मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में, डायबिटीज के मरीजों को राहत देने के लिए जेनेरिक दवाइयों के 147 नए ब्रांड बाजार में आ गए हैं। यह सभी ब्रांड इनोवेटर दवाइयों के पेटेंट समाप्त होने के बाद उपलब्ध हो पाए हैं, जिससे इन दवाइयों की कीमत में गिरावट आई है और ये गरीबों के लिए सस्ती और सुलभ हो गई हैं।
यह बदलाव फार्माट्रैक द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से सामने आया है। आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2025 में बाजार में 19 कंपनियों और 86 ब्रांड थे, लेकिन अप्रैल आते-आते इनकी संख्या 37 कंपनियों और 147 ब्रांड तक पहुंच गई है। यह दवा उद्योग में एक बड़ा बदलाव है, जो मधुमेह के मरीजों को राहत प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है।
मरीजों और चिकित्सकों के लिए खुशखबरी
जेनेरिक दवाइयों का बाजार में आना, विशेष रूप से मधुमेह के मरीजों के लिए एक खुशखबरी है। इन दवाइयों के पेटेंट समाप्त होने के कारण, अब इनकी कीमतें किफायती हो गई हैं। इससे न केवल मरीजों को लाभ हुआ है, बल्कि चिकित्सक भी इसे मरीजों के लिए एक बेहतर विकल्प मान रहे हैं।
फार्माट्रैक के आंकड़ों के अनुसार, एपाग्लिलोजिन नामक एसजीएलटी-2 अवरोधक दवा के पेटेंट समाप्त होने के बाद बाजार में लगभग 200 जेनेरिक ब्रांड आ गए थे। यह दवा टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों में ग्लूकोज नियंत्रण के लिए उपयोग की जाती है। अब, इस दवा के जेनेरिक ब्रांड्स के आने से इसे सस्ती दरों पर उपलब्ध कराया जा रहा है, जिससे मरीजों को फायदा हो रहा है।
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एपाग्लिलोजिन पेटेंट खत्म होने के बाद का असर
मार्च के मध्य में बोह्रिंजर इंगेलहेम की जॉर्डिएंस ब्रांड नाम से बिकने वाली एपाग्लिलोजिन दवा का पेटेंट समाप्त हुआ। इससे पहले, इस दवा का उपयोग केवल कुछ महंगे ब्रांड्स के द्वारा किया जा सकता था, लेकिन अब इस दवा के जेनेरिक संस्करण की उपलब्धता ने इसे आम आदमी की पहुंच में ला दिया है। फार्माट्रैक के अनुसार, 150 ब्रांड और लगभग 40 कंपनियों ने पेटेंट समाप्त होने के अवसर का लाभ उठाया और पिछले दो महीनों में बिक्री में भारी बढ़ोतरी देखी गई है।
बाजार में जेनेरिक दवाइयों का बढ़ता प्रभाव
जेनेरिक दवाइयों के बाजार में आने के बाद, यह भारत में मधुमेह की दवाओं की कीमतों को काफी सस्ता कर चुका है। पहले जो दवाएं महंगी थी, अब वे अधिक सस्ती और आम लोगों के लिए उपलब्ध हो गई हैं। डॉ. कुलदीप गुप्ता, जो क्यूनीटी मेडिसिन विशेषज्ञ हैं और गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल से जुड़े हुए हैं, कहते हैं कि जेनेरिक दवाइयों की उपलब्धता और सस्ती कीमतों ने गरीबों के लिए इन्हें पहुंच के दायरे में ला दिया है।
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जेनेरिक दवाइयों की संख्या में बढ़ोतरी और कंपनियों का लाभ
फार्माट्रैक के आंकड़ों के अनुसार, 37 भारतीय कंपनियों ने मधुमेह की दवाइयों के जेनेरिक ब्रांड्स का उत्पादन शुरू किया है। मार्च में इनकी संख्या 19 कंपनियों और 86 ब्रांड थी, जो अप्रैल में दोगुनी होकर 37 कंपनियों और 147 ब्रांड्स तक पहुंच गई है।
निष्कर्ष: मधुमेह के इलाज में सुधार
मधुमेह के मरीजों के लिए जेनेरिक दवाइयों का बाजार न केवल एक राहत प्रदान कर रहा है, बल्कि इसके चलते मधुमेह के इलाज में सुधार के भी रास्ते खुल रहे हैं। मरीजों को पहले की तुलना में कम खर्च में इलाज मिल रहा है, और स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच अब बेहतर हो गई है।
इसके अलावा, दवाइयों की सस्ती दरों से स्वास्थ्य मंत्रालय को भी मदद मिल रही है, क्योंकि अब दवाइयां सरकारी योजनाओं में भी शामिल की जा सकती हैं, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो सकता है।
सस्ती दवाइयां | जेनेरिक ड्रग्स