BHOPAL : दो-दो कठिन परीक्षाएं और डेढ़ साल के लंबा इंतजार के बाद डीपीआई ने उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती में नया पेंच फंसा दिया है। शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूलों में हजारों बच्चों का भविष्य अंधेरे में डूबता जा रहा है। और यहां डीपीआई शिक्षक भर्ती को अटकाने नए-नए हथकंडे़ अपना रहा है। उच्च शिक्षक भर्ती के लिए मानदंड भी मनमाने हैं, जिसे अफसर मर्जी से कभी भी बदल लेते हैं। डीपीआई का ऐसा ही कारनामा फिर सामने आया है। जिसके कारण उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती के लिए पात्रता और चयन परीक्षा पास करने वाले हजारों चयनित शिक्षकों के भविष्य पर संकट के बादल छा गए हैं।
एक परीक्षा की दो भर्तियों के लिए अलग पैमाने
सबसे पहले उस उलझन के बारे में बताते हैं जिसने यह संकट खड़ा किया है। दरअसल साल 2023 में डीपीआई यानी लोक शिक्षक संचालनालय ने उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके लिए पहले पात्रता परीक्षा और फिर चयन परीक्षा ली गई। जनवरी 2023 में इसके लिए जो आवेदन बुलाए गए थे उसमें सभी शैक्षणिक और बीएड जैसी व्यावसायिक परीक्षा की योग्यता पूरी करना अनिवार्य किया गया था। साथ ही उन अभ्यर्थियों को छूट दी गई थी जो व्यावसायिक परीक्षा के अंतिम वर्ष में थे। पात्रता और चयन परीक्षा के डेढ़ साल बाद भी डीपीआई काउंसलिंग पूरी कर नियुक्ति नहीं दे सका। खुद अपनी कसौटी पर अयोग्य रहने वाला डीपीआई अब ऐसे अभ्यर्थियों को काउंसलिंग से बाहर कर रहा है जो प्रक्रिया के दौरान बीएड की योग्यता हासिल कर चुके हैं। इसके पीछे डीपीआई का तर्क है आवेदन के समय इन अभ्यर्थी परीक्षा के अंतिम वर्ष में नहीं थे। वहीं नियुक्ति का इंतजार कर रहे वेटिंग टीचर्स का सवाल है, फिर साल 2018 में ऐसे अध्ययनरत सैंकड़ों चयनित अभ्यर्थियों की भर्ती कैसे की गई थी। इस सवाल का डीपीआई के पास कोई जवाब नहीं हैं, क्योंकि डीपीआई कई बार मनमुताबिक नियम बदलता रहा है।
सुप्रीम कोर्ट और एनसीटीई के निर्देशों की नहीं परवाह
उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती में नियमों की मनमानी व्याख्या को लेकर अभ्यर्थियों ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद में शिकायत की है। वहीं यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था।सुप्रीम कोर्ट ने इस स्पष्ट निर्देश जारी कर टीटीसी यानी टीचर ट्रैनिंग कोर्स में प्रवेश लेने और अध्ययनरत अभ्यर्थियों को टीचर इलिजिबिलिटी टेस्ट के लिए पात्र माना है। एनसीटीआई भी व्यावसायिक कोर्स बीएड में अध्ययनरत अभ्यर्थियों को लेकर डीपीआई की व्याख्या को गलत ठहरा चुका है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की गाइडलाइन पूरे देश में समान रूप से मान्य है। साल 2024 में छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड जैसे राज्यों ने भी परिषद की गाइडलाइन के आधार पर शिक्षक भर्ती के अपने मानदंडों में बड़े बदलाव किए हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में डीपीआई को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की गाइडलाइन से परहेज है और वह नियमों की अपने हिसाब से व्याख्या कर मनमर्जी से लाद रहा है।
इस तरह किया जा रहा है भेदभाव
उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थियों का कहना है कि 2023 की भर्ती से पहले दो_दो कठिन परीक्षाएं ली गईं। पात्रता और फिर चयन परीक्षा से अभ्यर्थियों ने अपनी योग्यता साबित की। लेकिन प्रक्रिया के दौरान डीपीआई ने नियुक्ति के लिए घोषित 8 हजार 7 सौ पदों में हेराफेरी कर दी। इसमें बड़ी संख्या में बैकलॉक के पद भी शामिल कर दिए जिस वजह से अभ्यर्थियों से नियुक्ति के अवसर छिन गए। जबकि साल 2018 में 17 हजार पदों पर भर्ती निकाली गई। इसमें भी नियम वैसे ही थे जैसे 2023 की भर्ती के लिए थे। इसके बावजूद भर्ती में शामिल अभ्यर्थियों को शैक्षणिक योग्यता पूरा करने चार साल का अवसर दिया गया। यानी भर्ती प्रक्रिया में शामिल ऐसे अभ्यर्थियों को भी नियुक्ति दे दी गई जिनके द्वारा आवश्यक शैक्षणिक योग्यता 2022 में पूरी की गई थी। लेकिन इस बार डीपीआई अपनी लेटलतीफी के बावजूद सत्र 2023_24 में हासिल योग्यता को भी मानने तैयार नहीं है। इस वजह से पात्रता और चयन परीक्षा में योग्यता साबित करने वाले अभ्यर्थियों से नियुक्ति का अवसर छिना जा रहा है।
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निर्देश मान रहे न सुन रहे दलील
चयनित वेटिंग शिक्षक राहुल अहिरवार, पंकज चौरसिया, स्वीटी मलिक, मनोज पटेल और लक्ष्मण कुमार जैसे कई शिक्षक सुप्रीम कोर्ट और एनसीटीई की गाइडलाइन और निर्देश लेकर डीपीआई पहुंच चुके हैं। उनके द्वारा अपर संचालक कामना आचार्य सहित अन्य अधिकारियों को वरिष्ठ संस्थाओं के निर्देशों से भी अवगत कराया है लेकिन डीपीआई में उनकी सुनवाई नहीं हुई। अधिकारी न तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश मान रहे हैं न ही उन्हें एनसीटीई की गाइडलाइन की परवाह है। ऐसे में राज्य का भविष्य गढ़ने वाले वेटिंग शिक्षकों का भविष्य क्या होगा ये भगवान ही जानता है।
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