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25 जून 1975...यह तारीख भारतीय लोकतंत्र के माथे पर अंकित ऐसा धब्बा है, जिसे समय भी मिटा नहीं सका। यह वह रात थी, जब सरकार ने जनता के अधिकार छीन लिए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की और पूरा देश मानो अंधकार में घिर गया। आज, 25 जून 2025 को उस दिन को पचास वर्ष हो चुके हैं। इस घटनाक्रम में मध्यप्रदेश की भूमिका और पीड़ा दोनों ही अभूतपूर्व रहीं हैं।
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मध्यप्रदेश ने इस अघोषित तानाशाही के विरोध में ऐसा प्रतिरोध पेश किया, जिसे आने वाली पीढ़ियां आदर्श के रूप में याद करती रहेंगी। मीसा (Maintenance of Internal Security Act - MISA) कानून के तहत हजारों लोगों को केवल इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया था, क्योंकि वे असहमति जताते थे। सवाल पूछते थे या सड़कों पर उतर आए थे। प्रदेश में उस वक्त करीब करीब हर जिले में गिरफ्तारियों की झड़ी लगी थी, अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी। रेडियो-टीवी जैसे माध्यम सरकार की आवाज बनकर रह गए थे।
आपातकाल के दौरान जनसंख्या नियंत्रण अभियान के नाम पर जबरन नसबंदी जैसी कार्रवाइयों से गांवों में डर और असंतोष का फैला गया। गांव-गांव में सरकारी अमला लोगों को जबरन नसबंदी शिविरों में ले जाता, विरोध करने वालों को पीटा जाता और समाज को मानसिक दहशत में जीने के लिए मजबूर कर दिया गया।
सारंग, गौर और शिवराज गए जेल
इसी अंधकार के दौर में कुछ ऐसे भी चेहरे उभरे, जिन्होंने लोकतंत्र की मशाल को बुझने नहीं दिया। भोपाल में स्कूल-कॉलेज के छात्रों ने 'जेल भरो आंदोलन' में हिस्सा लिया। इसी आंदोलन में वरिष्ठ नेता कैलाश सारंग ने संरक्षक की भूमिका निभाई। बाबूलाल गौर जेल में अपने चुटकुलों और सकारात्मकता से बंदियों का हौसला बढ़ाते रहे। युवा शिवराज सिंह चौहान भी उस समय जेल गए थे।
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राजमाता को तिहाड़ जेल में रखा
इस आंदोलन का आलोक प्रदेश तक सीमित नहीं रहा। तिहाड़ जेल में बंद रहीं ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया की गाथा भी उतनी ही प्रेरणादायक है। 3 सितंबर 1975 को उन्हें आर्थिक अपराध की धारा में गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेजा गया। उनकी आत्मकथा प्रिंसेज में वे लिखती हैं, मैं कैदी नंबर 2265 थी... जब मैं तिहाड़ पहुंची तो जयपुर की महारानी गायत्री देवी ने स्वागत किया। हमने एक-दूसरे का अभिवादन किया।
वाजपेयी 18 महीने जेल में रहे
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आपातकाल के दौरान 18 महीने जेल में रहे। वहीं से उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए सरकार की नीतियों पर तीखी चोट की। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, तब वाजपेयी विदेश मंत्री बनाए गए। फिर बाद के दिनों में सब कुछ धीरे धीरे सामान्य हुआ और देश पटरी पर आया।
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कई नेताओं की हुई गिरफ्तारी
मीसा यानी 'आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम', 1971 में बनाया गया था। आपातकाल के दौरान इसका दमनकारी रूप सामने आया। यह कानून सरकारी एजेंसियों को मनमाने तरीके से किसी को भी बंदी बनाने का अधिकार देता था। लाखों लोग बिना आरोप या मुकदमे के जेलों में रहे। 25 जून 1975 की रात को जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी से जो सिलसिला शुरू हुआ, वह मधु लिमये, मोरारजी देसाई, नानाजी देशमुख, प्रमिला दंडवते, लालकृष्ण आडवाणी, भैरों सिंह शेखावत, रघुवीर सिंह कुशवाहा और सैकड़ों नेताओं की गिरफ्तारी तक जा पहुंचा। कहा जाता है कि मीसा के तहत लगभग एक लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से कई को बाद में रिहा कर दिया गया तो कई को मीसाबंदी में तब्दील कर दिया गया।
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