मौर्यकालीन बौद्ध मठ के रास्ते से हटेगा अतिक्रमण, कलेक्टर को सौंपी निगरानी की जिम्मेदारी

'मुड़िया बौद्ध मठ' के नाम से प्रसिद्ध यह स्थल कभी बौद्ध भिक्षुओं की तपस्थली रहा होगा। परन्तु वर्तमान में इसकी उपेक्षा और सरकारी उदासीनता के चलते न केवल यहां आने का रास्ता अवरुद्ध हो गया है...

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Neel Tiwari
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Mauryan Buddhist monastery
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MP NEWS: जबलपुर शहर के इतिहास और धरोहर को नई उम्मीद मिली है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए जबलपुर के गोपालपुर स्थित प्राचीन मुड़िया बौद्ध मठ तक पहुंचने वाले मार्ग से अतिक्रमण तत्काल हटाने के निर्देश दिए हैं। इस मौर्यकालीन बौद्ध मठ से सटी लगभग 32 एकड़ सरकारी भूमि पर वर्षों से कब्जा किए बैठे भूमाफियाओं को हटाने के लिए कोर्ट ने कलेक्टर को न केवल कार्रवाई का आदेश दिया है, बल्कि उनकी व्यक्तिगत निगरानी भी सुनिश्चित की है। यह फैसला न केवल ऐतिहासिक स्मारकों की रक्षा की दिशा में मील का पत्थर है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के सम्मान की पुनर्स्थापना भी है।

अतिक्रमण ने बंद किया रास्ता

यह बौद्ध मठ, जो लम्हेटाघाट के समीप स्थित है, हजारों वर्षों से बौद्ध संस्कृति, साधना और विरासत का प्रतीक रहा है। 'मुड़िया बौद्ध मठ' के नाम से प्रसिद्ध यह स्थल कभी बौद्ध भिक्षुओं की तपस्थली रहा होगा। परन्तु वर्तमान में इसकी उपेक्षा और सरकारी उदासीनता के चलते न केवल यहां आने का रास्ता अवरुद्ध हो गया है, बल्कि आसपास की भूमि भी भूमाफियाओं के कब्जे में चली गई। श्रद्धालुओं और पर्यटकों का इस ऐतिहासिक स्थल तक पहुंचना मुश्किल हो गया था, जिससे इसका धार्मिक और पर्यटन महत्व भी खतरे में पड़ गया।

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शासन ने नहीं की संवेदनशीलता से कार्रवाई

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के पुरातत्व विभाग ने दिनांक 15 जून 2012 को इस बौद्ध मठ को 'प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1964' की धारा 3(1) के अंतर्गत राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया था। 1 अप्रैल 2015 को अंतिम अधिसूचना के लिए संस्कृति विभाग को पत्र भी लिखा गया। साथ ही, 27 जनवरी 2021 को तत्कालीन कलेक्टर कर्मवीर शर्मा द्वारा इस स्थल के विकास हेतु पर्यटन विभाग से ₹324 लाख की राशि की स्वीकृति हेतु प्रस्ताव भी भेजा गया था। इसके बावजूद न तो कोई अधिसूचना पूरी हुई और न ही स्थल का वास्तविक संरक्षण हो सका।

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प्रदर्शन से कोर्ट तक पहुंचा आंदोलन

अखिल भारतीय कुशवाहा महासभा, बौद्ध महासभा और बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया सहित कई सामाजिक संगठनों ने इस अतिक्रमण और उपेक्षा के खिलाफ लगातार आवाज़ उठाई। शासन को दर्जनों पत्र लिखे गए। 26 अप्रैल 2025 को जबलपुर के सिविक सेंटर में एक विशाल जन प्रदर्शन भी आयोजित किया गया। लेकिन जब शासन-प्रशासन ने कोई गंभीर कदम नहीं उठाया, तब बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के क्षेत्रीय प्रमुख सुखलाल वर्मा और कुशवाहा महासभा के प्रदेश अध्यक्ष बैजनाथ कुशवाहा ने संयुक्त रूप से ठाकुर लॉ एसोसिएट के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका क्रमांक 15661/2025 दाखिल की।

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12 अनावेदकों को नोटिस

इस याचिका पर 1 मई 2025 को चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस श्री विवेक जैन की खंडपीठ ने प्रारंभिक सुनवाई करते हुए गंभीर रुख अपनाया। कोर्ट ने राज्य शासन के साथ-साथ 12 निजी अनावेदकों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए। इनमें रीता सेंगर, गुंजन नंदा, सोनिया नारंग तथा आरडीएम केयर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर अंगददीप सिंह नारंग भी शामिल हैं, जिन पर सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप है।

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16 जून को अगली सुनवाई

कोर्ट ने आदेशित किया है कि जबलपुर कलेक्टर स्वयं इस अतिक्रमण की निगरानी करें और तत्काल मठ तक जाने वाले मार्ग से कब्जा हटवाएं। इसके अलावा, पूरी प्रक्रिया का दस्तावेजीकरण कर चार सप्ताह बाद अगली सुनवाई 16 जून 2025 को प्रस्तुत किया जाए। कोर्ट ने संकेत दिया कि यदि जवाब संतोषजनक नहीं हुआ, तो कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

संयुक्त पैरवी ने जगाई इंसाफ की आस

इस जनहित याचिका की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, शिवांशु कोल, देवयानी चौधरी और संतोष आनंद ने मिलकर की। उनकी प्रभावी दलीलों ने न केवल न्यायालय को प्रभावित किया बल्कि न्याय की उस लौ को भी प्रज्ज्वलित किया जो वर्षों से इस धरोहर की उपेक्षा में बुझती जा रही थी।

 

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