सघन जंगल में खनन की तैयारी, फर्जी प्रस्ताव से पूर्व विधायक को मिली हरी झंडी !

मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले की जतारा तहसील में ग्राम पंचायत की फर्जी अनुमति पर वन क्षेत्र में खदान हासिल करने का मामला उजागर हुआ है। शिकायत के बाद ईओडब्ल्यु ने मामले की जांच शुरू कर दी है।

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Ravi Awasthi
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टीकमगढ़/भोपाल  । 

जिले की जतारा तहसील में ग्राम पंचायत की फर्जी अनुमति पर वन क्षेत्र में खदान हासिल करने का मामला उजागर हुआ है। शिकायत के बाद ईओडब्ल्यु ने मामले की जांच शुरू कर दी है। प्रकरण छतरपुर की खजुराहो मिनरल्स कंपनी का है। कांग्रेस के पूर्व विधायक आलोक चतुर्वेदी इसके प्रमुख हैं।

यह शिकायत जतारा के ही एक आरटीआई एक्टिविस्ट की ओर से की गई। इसमें कहा गया कि जतारा तहसील के वनक्षेत्र में पायरोफिलाइट व डायस्फोर खनिज बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। इसके खनन के लिए खजुराहो मिनरल्स को 30 सालों के लिए 12 हेक्टेयर वनभूमि लीज पर दी गई।

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फर्जी अनुमति पर आवंटित हुई खदान

शिकायत में कहा गया कि खदान आवंटन के लिए संबंधित ग्राम पंचायत की अनुमति संबंधी दस्तावेज पूरी तरह फर्जी हैं। वास्तविकता यह कि ग्राम पंचायत ने इसकी अनुमति दी ही नहीं। पंचायत के तत्कालीन सरपंच  श्रीमती मक्खन घोष ने शपथ पत्र के जरिए बताया कि उन्होंने कभी भी खदान के लिए अनुमति नहीं दी। यही नहीं,पंचायत के तत्कालीन सचिव व जतारा जनपद सीईओ ने भी इस बात की लिखित पुष्टि की कि पंचायत ग्राम सभा के अभिलेखों में संबंधित अनुमति दिए जाने का कोई उल्लेख नहीं है।

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जिम्मेदार अ​फसरों ने नहीं परखे दस्तावेज

शिकायत में कहा गया कि संबंधित वन भूमि की रजिस्ट्री कराने व लीज आवंटन में जिम्मेदार अफसरों ने आंख बंद कर का​म किया। उन्होंने आवेदन के साथ संलग्न दस्तावेजों को न तो परखा,न इनके सत्यापन की ही कोई प्रक्रिया अपनाई। 

खनन के लिए 218 वृक्षों की बलि

बताया जाता है कि जिस वनक्षेत्र में खदान आवंटित की गई। वह इमारती लकड़ी वाला सघन वन क्षेत्र है। आवंटित खदान के लिए वन विभाग ने ही 218 वृक्षों के विदोहन यानी काटे जाने की बात कही। ज​बकि खनन के लिए काटे जाने वाले वृक्षों की संख्या इससे कहीं अधिक है। वन​ विभाग के स्थानीय अमले में संबंधित वन क्षेत्र में वन्य प्राणी  नहीं होने की बात कही,जबकि विभाग की ही वन्य प्राणी शाखा का मत इसके उलट है।

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ब्यूरो ने शुरू की शिकायत की जांच 

इधर,कंपनी के एमडी व पूर्व विधायक आलोक चतुर्वेदी ने कहा कि शिकायत मनगढ़ंत है व राजनीति से प्रेरित है। कंपनी की ओर से एक दशक पहले इसके लिए आवेदन किया गया था। केंद्र व राज्य सरकार एवं संबंधित पंचायत की अनुमति के बाद ही खदान लीज आवंटित हुई। पंचायत ने यदि दस्तावेजों का संधारण नहीं किया तो इसमें कंपनी का दोष नहीं है। बहरहाल,ब्यूरो ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। 

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देश का 48 फीसदी पाइरोफिलाइट मप्र में

पायरोफिलाइट व डायस्फोर दोनों ही अहम खनिज हैं।  पायरोफिलाइट का उपयोग अग्निरोधी ईंटें, क्रूसीबल और कास्टिंग मोल्ड्स बनाने में किया जाता है, क्योंकि यह उच्च तापमान सहन कर सकता है। टाइल्स, सैनिटरी वेयर और इलेक्ट्रिकल इंसुलेटर्स बनाने में उपयोग होता है।

पेपर को  स्मूथ  और चमकदार बनाने ,पेंट और प्लास्टिक की क्वालिटी सुधारने तथा टैल्क पाउडर और अन्य स्किन प्रोडक्ट्स में भी इसका उपयोग किया जाता है। पाइरोफिलाइट के पाउडर की कीमत 1000 रुपए टन से लेकर 10 हजार रुपए टन तक है।

वहीं, डायस्फोर बॉक्साइट का घटक है। इसका उपयोग मुख्य रूप से एल्युमिनियम बनाने में काम आने वाले बॉक्साइट अयस्क के तौर पर होता है। कुछ उच्च क्वालिटी के डायस्फोर क्रिस्टल्स को रत्न के रूप में भी उपयोग किया जाता है,जिनमें रंग परिवर्तन की विशेषता होती है।


एशिया में चीन के बाद बुंदेलखंड ऐसा इलाका है, जहां बड़ी संख्या में पाइरोफिलाइट पाया जाता है। मप्र के माइनिंग डिपार्टमेंट का दावा है कि देश का 48 फीसदी पाइरोफिलाइट मप्र में पाया जाता है।