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भोपाल। यदि आप भोपाल से सटे औबेदुल्लागंज,बंगरसिया,ईंटखेड़ी व नीलबड़ चौराहे पर लगे ई चेक-पोस्ट को देख यह सोच रहे हैं कि मप्र में अवैध खनिज परिवहन को रोकने की क्या चाक-चौबंद व्यवस्था है तो आप भ्रम में हैं। ये चार ई-चेक पोस्ट सिर्फ सात माह पहले ही पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लगाए गए हैं। वह भी एनजीटी की दखलंदाजी और उससे किए गए वादे के करीब दो साल बाद।
तीन साल बाद भी काम आधा-अधूरा
विभागीय सूत्रों का दावा है कि प्रदेश के 41 में से 23 जगहों पर और इस तरह की व्यवस्था की गई है। यह भी आधी-अधूरी है ,यानी प्रतीकात्मक कही जा सकती है। दरअसल,असल दिक्कत ट्रैप होने वाले वाहनों की निगरानी करना है।
इसके लिए खनिज संचालनालय में कमांड एंड कंट्रोल रूम जरूर बना,लेकिन अभी यह ट्रायल कंडीशन में है। बाकी सुविधाओं में जैसे ट्रेप वाहन की नंबर प्लेट का स्कैन कर उसके वैध,अवैध होने का पता लगाना, अवैध की स्थिति में जिम्मेदार अधिकारी के पास इसका संदेश पहुंचना और फिर कार्रवाई। यह तमाम बातें अभी दूर की कौड़ी हैं। ऐसे में एनजीटी की मंशा को पूरा होने में लंबा वक्त लग सकता है।
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ज्यादातर चोरी रात में,वाहन चालक भी 'उस्ताद'
अवैध परिवहन करने वाले वाहनों को पकड़ना आसान नहीं है। दरअसल,कैमरे में वाहन के ट्रेप होने पर ई—टीपी से इसका मिलान करना होता है।अवैध वाहन का खुलासा होने पर संबंधित जिला कलेक्टर व खनिज अधिकारी के पास मैसेज आएगा। ये अधिकारी चाहेंगे,तब इस पर कार्रवाई हो सकेगी। यह सुविधा भी फिलहाल विभाग के पास नहीं है।
दूसरी ओर,अवैध परिवहन करने वाले भी कम 'उस्ताद'नहीं हैं। एक तो अधिकांश शहरों में दिन में नो एंट्री होने से खनिज का ज्यादातर परिवहन रात में होता है। दूसरी ओर अवैध परिवहन वाले नंबर प्लेट को मिट्टी,धूल,कीचड़ से इतना ढक देते हैं कि वाहन नंबर ही कैमरे में नजर नहीं आता।
इसके लिए विभाग की योजना परिवहन के लिए पंजीकृत वाहनों पर आरएफ टैग लगाने की है,लेकिन बिना ई-टीपी वालों को रोक पाना तब ही संभव है,जब विभाग का मैदानी अमला सख्ती दिखाए।
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सालभर में 30 करोड़ का जुर्माना
चेक पोस्ट के लिए चयनित जिलों में ग्वालियर,मुरैना,रीवा,सीधी ,इंदौर,छतरपुर,अनूपपुर,रीवा,छिंदवाड़ा, सीहोर, शहडोल में दो-दो, सिंगरौली व जबलपुर में 3 -3 सागर, निवाड़ी, भिंड, सतना, देवास, बालाघाट, कटनी, उमरिया,अलीराजपुर,टीकमगढ़ व दतिया के एक-एक चेक पोस्ट शामिल हैं।
इलेक्ट्रानिक चेक पोस्ट पर करीब सवा 25 करोड़ की लागत का अनुमान है,लेकिन विभाग के लिए इनकी स्थापना फायदे का सौदा ही होगा। दरअसल,विभाग ने अपने स्तर पर या शिकवे-शिकायतों के बाद साल 2023 में ही करीब तीस करोड़ रुपए जुर्माना लगाकर कमाए। वहीं चार जगह पायलट प्रोजेक्ट के तहत लगे कैमरों में बीते सात माह के दौरान ही तीन हजार वाहन अवैध परिवहन करने वाले मिले।
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कई प्रकरणों में जुर्माने की वसूली नहीं
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि खनिज का ज्यादातर अवैध परिवहन व खनन प्रशासनिक अमले व पुलिस की मिलीभगत से होता है। शिकवे-शिकायतों के बाद मैदानी अमला ऐसे वाहनों को पकड़ने व जुर्माने की कार्रवाई करता भी है तो लंबे समय तक इस रकम की वसूली नहीं हो पाती।
राजधानी के पड़ौसी जिला रायसेन में ही टेलीफोनिक शिकायत के बाद रेत अवैध परिवहन के 95 प्रकरण बनाए गए। इनमें अनेक मामलों में किया गया मामूली जुर्माना भी विभाग अब तक वसूल नहीं सका।
विगत फरवरी में ही अंडिया,मोतलसिर के तीन मामलों में जुर्माना लगाने की जगह सिर्फ अवैध खनन का रास्ता बंद करने की कार्यवाही की गई। जिले में रेत भंडारण का लायसेंस सिर्फ 9ठेकेदारों के पास हैं,लेकिन इससे कहीं अधिक जगहों पर रेत भंडारण धड़ल्ले से हो रहा है।
कमोवेश यही स्थिति गौण खनिजों के मामलों को लेकर भोपाल की है। जिले में 95 क्रशर्स संचालक हैं। इनमें से 23 पर सवा करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि लंबे समय से बकाया है। कई मामलों को बिना किसी ठोस कारण के शिथिल कर दिया गया। इन तमाम मामलों में विभाग के तमाम जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।
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