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मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में एक बड़े साइबर अपराध का खुलासा हुआ है। जहां दुबई से संचालित अवैध ऑनलाइन बेटिंग नेटवर्क के जरिए करोड़ों रुपए की ठगी और मनी लॉन्ड्रिंग की जा रही थी। पुलिस ने 9 आरोपियों को गिरफ्तार किया है।
यह मामला तब सामने आया, जब खेड़ी सावलीगढ़ के एक मजदूर के बैंक खाते में अचानक करोड़ों का लेन-देन हुआ। जांच में यह पता चला कि इस गिरोह ने बैंकिंग सिस्टम की कमजोरियों का फायदा उठाया था। इसके लिए उन्होंने म्यूल अकाउंट्स का इस्तेमाल करके अपने काले धन को सफेद किया था।
इन पांच प्वाइंट्स में समझें पूरा मामला
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बैतूल में साइबर ठगी का जाल
मजदूर बिसराम इवने के खाते से साइबर ठगी की पूरी तस्वीर साफ है। उनके खाते में करोड़ों का लेन-देन देखकर पुलिस भी चौंक गई और तुरंत जांच शुरू की। पता चला कि केवल बिसराम ही नहीं, बल्कि उनके गांव के 6 अन्य लोग भी साइबर ठगी के शिकार हुए हैं। उनके खाते भी म्यूल अकाउंट्स थे। इनमें एक मृत व्यक्ति का खाता भी शामिल था, जो लंबे समय से दुरुपयोग किया जा रहा था।
म्यूल अकाउंट क्या होता है, इसे समझते हैं?
म्यूल अकाउंट ऐसा बैंक खाता होता है, जिसका इस्तेमाल साइबर अपराधी अवैध रूप से कमाए गए पैसे को ट्रांसफर करने, छिपाने या मनी लॉन्ड्रिंग के लिए करते हैं।​ दरअसल म्यूल अकाउंट में फ्रॉड या स्कैम से प्राप्त धन को पहले जमा किया जाता है, फिर इसे अन्य खातों में बांट दिया जाता है ताकि असली अपराधी का पता न लगे। अपराधी आमतौर पर लालच देकर या धोखे से निर्दोष लोगों के खाते इस्तेमाल करते हैं।​
म्यूल अकाउंट कैसे काम करता है
- ठग, फिशिंग या स्कैम से पैसे लोगों से वसूलते हैं और सीधे अपने खाते में नहीं डालते।
- यह रकम म्यूल अकाउंट में ट्रांसफर होती है, जहां से इसे चेन की तरह कई खातों में बांट दिया जाता है।​
- अक्सर निष्क्रिय या नए खाते इस्तेमाल होते हैं, जिससे ट्रैकिंग मुश्किल हो जाती है।​
पुलिस जांच में सामने आया इंदौर कनेक्शन
साइबर सेल ने इंदौर से जांच शुरू की। उन्हें डिजिटल सबूतों से मदद मिली। जांच में पता चला, ब्रजेश महाजन मास्टर आईडी बेचता था। ब्रजेश महाजन इंदौर का रहने वाला था। वह एक आईडी 25 हजार से 2 लाख तक में बेचता था।
ठगों ने फिर म्यूल अकाउंट्स इस्तेमाल किए। उन्होंने पैसे को घुमाकर निवेश किया। यह पैसा जमीन, सोना और लक्जरी कारों में लगा। वे काले धन को सफेद दिखाना चाहते थे।
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फर्जी दुकानें, डमी स्टॉक और म्यूल अकाउंट्स
जांच में यह भी सामने आया कि गिरोह ने बैंक को गुमराह करने के लिए फर्जी दुकानों और फर्मों का सहारा लिया था। कागजों में कारोबार दिखाने के लिए उन्होंने नकली केमिकल के लेबल वाली बोतलें और डमी स्टॉक तैयार किए थे। इन फर्जी अकाउंट्स और डमी स्टॉक से करोड़ों की ठगी होती रही।
इन दुकानों में सब कुछ सही दिखाने के लिए फर्जी साइन बोर्ड और नामपट्टी भी लगाए जाते थे। इससे बैंक निरीक्षण के दौरान किसी को शक नहीं होता था।
कमीशन के लालच में खातों की बिक्री
जांच में यह भी पता चला कि कुछ सिम एजेंट्स जैसे पीयूष राठौड़ ने बायोमेट्रिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करके दो सिम कार्ड्स जारी किए। एक सिम ग्राहक को और दूसरा सिम अपराधियों को दिया जाता था। इसके बदले 5 हजार तक में सिम की बिक्री की जाती थी।
बैतूल साइबर सेल के आरोपियों को कहां से गिरफ्तार किया गया?
बैतूल पुलिस ने 20 नवंबर से जांच शुरू करते हुए इस नेटवर्क के प्रमुख आरोपियों को गिरफ्तार किया। पहले राजा उर्फ आयुष चौहान, अंकित राजपूत और नरेंद्र सिंह राजपूत को गिरफ्तार किया गया था।
7 दिसंबर को इंदौर से अमित अग्रवाल को पकड़ा गया। अमित अग्रवाल ने अवैध कमाई से BMW कार और आलीशान बंगला खरीदा था। बाद में 11 दिसंबर को इंदौर में राजेंद्र राजपूत और ब्रजेश महाजन को भी गिरफ्तार किया गया।
14 दिसंबर को पुलिस ने तीन और आरोपियों को गिरफ्तार किया जिनमें अश्विन धर्मवाल, प्रवीण जयसवाल और पीयूष राठौड़ शामिल थे।
जप्त सामग्री और आगे की कार्रवाई
पुलिस ने आरोपियों के पास से मोबाइल फोन, पासबुक, एटीएम कार्ड और अन्य डिजिटल साक्ष्य जब्त किए हैं। इनकी फॉरेंसिक जांच की जा रही है। पुलिस ने इस गिरोह के दुबई कनेक्शन की जानकारी केंद्रीय एजेंसियों को दे दी है और मनी ट्रेल की गहन जांच जारी है।
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