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5 प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला
- धार के मेडिकल कॉलेज भूमिपूजन में मेहमानों को बाघ प्रिंट नाम से गमछे भेंट किए गए थे।
- स्थानीय शिल्पकारों ने आरोप लगाया है कि ये गमछे मशीन से बने नकली प्रिंट थे।
- कारीगरों ने कहा कि इससे बाघ प्रिंट की पारंपरिक कला और उसके जीआई टैग की गरिमा पर चोट पहुंची।
- शिकायत के बाद धार जिला प्रशासन ने जांच कर हथकरघा विभाग भोपाल को सीक्रेट रिपोर्ट भेजी है।
- अब सवाल है कि गलती किसकी थी, और असली बाघ प्रिंट की पहचान कैसे की जाए।
DHAR. धार जिला मुख्यालय पर 23 दिसंबर को मेडिकल कॉलेज के भूमिपूजन का बड़ा कार्यक्रम रखा गया था। इस मंच पर सीएम मोहन यादव (CM Mohan Yadav) और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा सहित मेहमानों को खास सम्मान के तौर पर गमछे पहनाए गए।
घोषणा हुई कि ये गमछे मशहूर बाघ प्रिंट कला से बने हैं, जिसे दुनिया भर में पहचान मिली है। कार्यक्रम के बाद ही कुछ शिल्पकारों ने गमछों को ध्यान से देखा और उन्हें शक हुआ कि यह असली बाघ प्रिंट नहीं है।
शिल्पकारों का आरोप: मशीन से बना नकली प्रिंट
फेक बाघ प्रिंट गमछा विवाद: धार के बाघ प्रिंट शिल्पकारों ने आरोप लगाया है कि मंच पर जो गमछे दिए गए, वे हाथ से छपे नहीं थे। कारीगरों के अनुसार असली बाघ प्रिंट में ठप्पा हाथ से लगता है और रंग प्राकृतिक होते हैं।
उनका कहना है कि कार्यक्रम में दिए गए गमछों पर डिज़ाइन तो बाघ जैसा था, पर वह मशीन से छपा सामान लग रहा था। इसी आधार पर कारीगरों ने कहा कि यह बाघ प्रिंट नाम का गलत उपयोग और कला के साथ छल है।
बाघ प्रिंट क्या है, और इतना संवेदनशील मुद्दा क्यों - सिंबोलिक फोटो लगाएं
बाघ प्रिंट मध्य प्रदेश के धार जिले के बाग कस्बे की पारंपरिक ब्लॉक प्रिंटिंग कला है। इस कला में कपड़े को कई चरणों में धोकर, तैयार कर, फिर लकड़ी के ब्लॉक से हाथ से छापा जाता है। प्रिंट के लिए ज्यादातर प्राकृतिक रंग, लौह घोल और वन उत्पादों से बने घोलों का उपयोग होता है। डिजाइन में प्रकृति, बाघ गुफा चित्रों और पुराने वास्तुशिल्प की प्रेरणा साफ दिखाई देती है।
जीआई टैग और परंपरा की गरिमा पर सवाल
बाघ प्रिंट को भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग मिला हुआ है, जो उसकी खास पहचान को कानूनी सुरक्षा देता है। जीआई टैग का मकसद किसी एक व्यक्ति को अधिकार देना नहीं, बल्कि पूरी कला और क्षेत्र की पहचान बचाना है।
शिल्पकारों का कहना है कि जब मशीन से बने प्रिंट को बाघ प्रिंट कहकर मुख्य मंच पर दिखाया जाता है, तो टैग की गरिमा पर असर होता है। उनके मुताबिक इस तरह के काम से असली कारीगरों की मेहनत और बाजार दोनों कमजोर होते हैं।
शिकायत से लेकर भोपाल पहुंची सीक्रेट रिपोर्ट
स्थानीय कारीगर बिलाल खत्री ने औपचारिक शिकायत दर्ज कराई और जीआई टैग के उल्लंघन का आरोप लगाया। शिकायत मिलने के बाद हथकरघा विभाग के कमिश्नर ने धार कलेक्टर से पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी।
इसके बाद जिला प्रशासन ने कार्यक्रम से जुड़े अधिकारियों से तथ्य जुटाए और दस्तावेज तैयार किए। प्रशासन ने एक विस्तृत और गोपनीय रिपोर्ट भोपाल स्थित हथकरघा विभाग को भेज दी है। हालांकि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
प्रशासन की सफाई
कार्यक्रम में अलग-अलग अधिकारियों को अलग जिम्मेदारियां दी गई थीं। जिन अधिकारियों पर प्रोटोकॉल और गिफ्ट की जिम्मेदारी थी, उन्हीं से तथ्य लेकर रिपोर्ट बनाई गई है। अभी मामला विभागीय स्तर पर है, इसलिए दस्तावेज सार्वजनिक करना ठीक नहीं होगा।
- अभिषेक चौधरी, प्रभारी कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ
बाघ के कारीगरों की पीड़ा और बाजार पर असर
धार और बाग के कई कारीगरों ने मीडिया से बात करते हुए अपनी चिंता जताई है। उनका कहना है कि बाजार में पहले से ही सस्ते, मशीन से बने नकली प्रिंट तेजी से बिक रहे हैं। जब ऐसे नकली उत्पाद बड़े मंचों पर पहुंचते हैं, तो ग्राहक भी असली और नकली में फर्क भूलने लगते हैं। इससे असली बाघ प्रिंट के दाम गिरते हैं और युवा पीढ़ी इस पेशे से दूरी बनाने लगती है।
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नकली बाघ प्रिंट की पहचान कैसे करें
शिल्पकारों के मुताबिक असली बाघ प्रिंट में प्रिंट की हल्की अनियमितता दिखती है, जो हाथ की पहचान है। कपड़े के पीछे की तरफ भी रंग की हल्की छाप रहती है, क्योंकि रंग हाथ से गहराई तक बैठता है।
असली कपड़ों में ज्यादातर प्राकृतिक या कम से कम मुलायम केमिकल आधारित रंग उपयोग होते हैं, जो बहुत तेज चमकदार नहीं दिखते। इसके उलट नकली मशीन प्रिंट में डिज़ाइन बहुत एकदम समान, चमकदार और ऊपरी परत जैसा दिखाई देता है।
भरोसे की डोर से बंधे हैं सरकार, सिस्टम और शिल्पकार
नकली बाग प्रिंट के इस विवाद ने सरकार और शिल्पकारों के रिश्ते पर भी सवाल खड़े किए हैं। एक तरफ सरकार मंच से पारंपरिक कला को बढ़ावा देने की बात करती है और कार्यक्रमों में बाघ प्रिंट का जिक्र भी करती है। दूसरी तरफ जब वही मंच कथित नकली गमछों से सजता है, तो कारीगरों को यह संदेश उलटा लगता है। शिल्पकार उम्मीद कर रहे हैं कि जांच निष्पक्ष हो और भविष्य के कार्यक्रमों में असली बाघ प्रिंट को सही सम्मान मिले।
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