खेतों में खड़ी उड़द, कागजों में दर्ज गेहूं! फर्जी गिरदावरी और सरकारी लूट का खुलासा

जबलपुर जिले के पाटन तहसील के मेहंगवाँ के अंतर्गत जुगिया गांव से एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसमें किसानों द्वारा सरकारी कृषि उपज समर्थन मूल्य योजना में फर्जीवाड़ा किए जाने का आरोप है। यह फर्जीवाड़ा सालों से योजनाबद्ध तरीके से चल रहा है।

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Neel Tiwari
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जबलपुर जिले की पाटन तहसील के मेहंगवाँ के अंतर्गत जुगिया गांव से एक धोखाधड़ी का मामला सामने आया है, जिसमें सरकारी कृषि उपज समर्थन मूल्य योजना का दुरुपयोग करने की साजिश का खुलासा हुआ है। आरोप है कि ग्राम चपोद के नारायण राठौर और उनके बेटे वीरेंद्र राठौर ने फर्जी दस्तावेज़ तैयार कर, खेतों में बोई गई उड़द की फसल को गेहूं के रूप में दर्शा दिया। यह गड़बड़ी कई किसानों से जुड़ी हुई है, जो लंबे समय से योजनाबद्ध तरीके से की जा रही थी।

सिर्फ फसल नहीं, पूरी व्यवस्था पर विश्वासघात

किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई सरकारी योजनाएं अब कुछ चतुर ठगों के लिए आय का जरिया बनती जा रही हैं। एक किसान ने इस मामले की पोल खोलते हुए बताया कि मटर की कटाई के बाद सीधे उड़द बोई गई, लेकिन खेतों की फोटो को छेड़छाड़ करके गेहूं की फसल दर्शा दी गई। इसके पीछे क्षेत्रीय पटवारी, सर्वेयर और कोटवार की मिलीभगत की भी आशंका जताई जा रही है। यदि यह साबित हो जाता है, तो यह न केवल भ्रष्टाचार का मामला होगा, बल्कि सरकारी योजना में ठगी के तहत भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं में आपराधिक मामला बनता है।

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सर्वेयर खुद बता रहा है 'कैसे हुआ खेल'

इस मामले में शिकायतकर्ता किसान ने ऑडियो रिकॉर्डिंग भी पेश किए है, जिसमें ग्राम के सर्वेयर अभय राठौर और कोटवार के बीच हुई बातचीत में यह स्वीकार किया गया कि खेत में उड़द बोई गई है, लेकिन गेहूं दर्शा दिया गया है। रिकॉर्डिंग में सर्वेयर बार-बार यह बताता रहा कि सर्वर के डाउन होने और नक्शे की गलती से यह हुआ है लेकिन इस बात का उसके पास कोई जवाब नहीं था कि आखिर कैसे एक खाली पड़े खेत की जगह किसी और खेत की फोटो लगाकर वहां पर गेहूं की फसल दिखा दी गई। बातचीत में यह भी सामने आया कि बगल के खेत की तस्वीर लगाकर गेंहू की फसल दर्शाई गई। 

इससे यह स्पष्ट हो गया कि एंट्री के लिए बनाए गए एप में भी किस तरह जोड़-तोड़ करके गिरदावरी रिपोर्ट में बदलाव किया गया है, ताकि किसान झूठे आधार पर सरकारी खरीद के लिए पात्र बन जाए। इस मामले में सर्वेयर किसान को यही भरोसा दिलाता रहा की 15 अप्रैल से दोबारा जब एंट्री शुरू होगी तब उसके खेतों में उड़द की फसल चढ़ा दी जाएगी लेकिन जो असलियत यहां नज़र आ रही है वह यह है की खरीदी के दौरान वेयरहाउस और समितियों में होने वाले फर्जीवाड़े के पहले ही फर्जी किसान और फसल खड़ी कर दी जाती है ताकि आगे चलकर सरकार की होने वाले खरीदी में जमकर गोलमाल किया जा सके।

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गेहूं नहीं बोया, फिर रजिस्ट्रेशन क्यों? 

एक और चौंकाने वाला खुलासा तब हुआ जब खसरा नंबर 72/2 पर सिकमी खेती करने वाले अजय नामक व्यक्ति ने खुद सवाल खड़ा किया कि जब उसने गेहूं बोया ही नहीं, तो गिरदावरी में उसका नाम गेहूं के लिए क्यों दर्ज कर दिया गया? 4 अप्रैल को हुई यह बातचीत स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि बिना खेत स्वामी की सहमति या जानकारी के भी उनके खेतों का दुरुपयोग किया जा रहा है, जिससे उन्हें भी फर्जीवाड़े का सहभागी बना दिया गया।

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पटवारी भी कर चुके 'फर्जी रजिस्ट्रेशन' की बात

शिकायतकर्ता ने दावा किया है कि हल्का पटवारी के.के. कश्यप और उनके सहकर्मी ऋषि कुमार प्यासी के बीच भी इस मामले को लेकर बातचीत हुई है जिसमें खुद पटवारी ने माना है कि नारायण राठौर ने फर्जी तरीके से गेंहू का पंजीयन कराया है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिलाया कि उनका पंजीयन बदलकर सही कर दिया गया है लेकिन जब किसान ने अपना पंजीयन दोबारा जांच तो यह कोरा झूठ निकला, क्योंकि रबी 2024-25 के लिए उसका पंजीयन गेहूं के लिए ही दिखा रहा है। यदि जांच के बाद यह मामला सही साबित हो जाए, तो यह राजस्व कर्मचारियों की मिलीभगत की भी पोल खुल जाएगा, जिससे पूरे ज़िले में गिरदावरी प्रक्रिया की सत्यता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।

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फर्जीवाड़ा की जांच से खुल सकते हैं बड़े नाम

शिकायत में दिए गए खसरा नंबर 81, 88, 87, 86, 110, 106/1, 105, 101/2, 100/2, 95, 83, 101/10 जैसे खेतों में भी इस वर्ष गेहूं की फर्जी एंट्री दर्ज की गई है। इन खेतों की भौतिक सत्यापन से स्पष्ट हो जाएगा कि जमीन पर गेहूं बोया ही नहीं गया था। यदि प्रशासन इन सभी रिकॉर्ड्स की गहन जांच करता है, तो ग्राम स्तर की सोसायटी, लेखा और खातों से लेकर अधिकारियों तक की संलिप्तता उजागर हो सकती है।

मुख्यमंत्री तक पहुंची शिकायत की प्रतिलिपि

इस गंभीर मामले की शिकायत अब एसडीएम, कलेक्टर, राजस्व मंत्री और मुख्यमंत्री तक भेजी गई है। यह अब सिर्फ एक गांव की समस्या नहीं रही, बल्कि पूरे प्रदेश की कृषि नीति और राजस्व व्यवस्था की पारदर्शिता का सवाल बन चुकी है। यदि समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो यह घोटाला प्रदेश भर में भ्रष्ट लोगों को प्रेरित करेगा और ईमानदार किसानों का हक छीनता रहेगा।

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