अफसरों ने विधानसभा में बदल दिया विधायक का सवाल, निजी विश्वविद्यालयों में फीस वृद्धि का मामला, फीस फिक्सिंग का आरोप

निजी विश्वविद्यालयों में फीस बढ़ोतरी को लेकर पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री व बड़वानी के राजनगर से कांग्रेस विधायक बाला बच्चन द्वारा विधानसभा में जानकारी मांगी गई थी,विभाग के आला अधिकारियों ने विधायक के प्रश्न को ही बदल दिया।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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मप्र निजी विश्वविद्यालय आयोग (पीयूआरसी) आयोग में मनमानी फीस बढ़ोतरी को लेकर अब उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर सवाल उठ रहे है। निजी विश्वविद्यालयों में फीस बढ़ोतरी को लेकर पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री व बड़वानी के राजनगर से कांग्रेस विधायक बाला बच्चन द्वारा पीयूआरसी की मनमानी फीस वृद्धि को लेकर जानकारी मांगी गई थी, लेकिन विभाग के आला अधिकारियों ने विधायक के प्रश्न को ही बदल दिया। 

जो जानकारी विधायक को दी गई उससे कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक संतुष्ट नहीं हैं, उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने बिना उनकी अनुमति व जानकारी के उनका सवाल ही बदल दिया गया। उन्होंने इस मामले को विधानसभा की प्रश्न लेखा समिति के समक्ष उठाने की बात भी कही। 

विधायक का सवाल और उसका बदलाव

2025 के जुलाई महीने में बाला बच्चन ने एमपी विधानसभा में उच्च शिक्षा विभाग से सवाल पूछा था कि निजी विश्वविद्यालयों में फीस निर्धारण में किस तरह की प्रक्रिया अपनाई जा रही है और क्यों फीस इतनी ज्यादा बढ़ाई जा रही है। उनका सवाल था कि 2020 से लेकर 2025 तक निजी विश्वविद्यालयों में कितनी बैठकें हुईं और इनमें क्या निर्णय लिए गए। इसका मिनट टू मिनट ब्याैरा दिया जाएं। 

लेकिन यह सवाल जवाब के बाद बदलकर एक संक्षिप्त रूप में सामने आया। विभाग के अवर सचिव, वीरेंद्र सिंह भलावी ने सवाल में संशोधन किया, जो विधायक को असंतोषजनक लगा। विधायक ने आरोप लगाया कि उनके सवाल को बिना सूचित किए बदला गया, जो एक गंभीर प्रशासनिक गड़बड़ी को दर्शाता है। 

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अधिकारियों को नहीं है प्रश्न बदलने का अधिकार

मनमाने तरीके से विधानसभा में पूछे गए प्रश्न को बदलने को लेकर विधायक बाला बच्चन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि मैंने 11 जुलाई को जो सवाल पूछा था उसे अधिकारियों द्वारा बदलकर मोडिफाई कर दिया गया। जबकि अधिकारियों को ऐसा करने का अधिकार ही नहीं है।

यह पूरा मामला निजी विश्वविद्यालयों में फीस फिक्सिंग का है; उन्होंने कहा कि वे इस मामले को विधानसभा की प्रश्न लेखा समिति के सामने रखेंगे। उन्होंने निजी विश्वविद्यालयों में मनमानी फीस बढ़ोतरी में अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए है।  

पूरी खबर के असर को ऐसे समझें

  • फीस निर्धारण में पारदर्शिता की कमी: निजी विश्वविद्यालयों में फीस वृद्धि के मामले में पारदर्शिता की कमी रही है, जिससे छात्र और अभिभावक असंतुष्ट हैं।

  • प्रशासनिक गड़बड़ी: विधायक के सवालों का बदला जाना प्रशासनिक गड़बड़ी और सरकार की जवाबदेही पर सवाल उठाता है।

  • निजी विश्वविद्यालयों की फीस नीति: विश्वविद्यालयों की फीस अन्य राज्यों की तुलना में कम हो सकती है, लेकिन उनके खर्च और संरचना के बारे में अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है।

अधिकारी ने कहा हर सवाल का जवाब देना संभव नहीं

विधायक के सवालों में जो बदलाव किया गया, उस पर उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारी वीरेंद्र सिंह भलावी का कहना है कि विभाग ने जो उत्तर भेजा है, वह विधायक के सवालों के आधार पर तैयार किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि हर सवाल का जवाब देना संभव नहीं है, इसलिए कुछ सवालों में जानकारी सीमित थी।

पूर्व प्रमुख सचिव बीडी ईसरानी ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि विधानसभा में पूछे गए सवाल को मंत्रालय स्तर पर बदलना अवैध है। उन्हें केवल वही जानकारी प्रदान करनी चाहिए जो विधायक ने मांगी हो। अगर सवाल अधिक विस्तृत हैं, तो विधानसभा इसे सीमित करने का अधिकार रखती है, न कि शासन को। 

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निजी विश्वविद्यालयों की फीस वृद्धि पर आयोग का बयान

निजी विश्वविद्यालयों में फीस वृद्धि को लेकर आयोग अध्यक्ष भरतशरण सिंह का कहना था कि निजी विश्वविद्यालयों का खर्च ज्यादा होता है, इसलिए उनकी फीस कॉलेजों की तुलना में अधिक होती है। आयोग के निर्णय हमेशा सामूहिक रूप से लिए जाते हैं और इसमें सभी सदस्य हस्ताक्षर करते हैं।

उन्होंने फीस वृद्धि के बाद भी इस बात का दावा किया कि राज्य के निजी विश्वविद्यालयों की फीस अन्य राज्यों के मुकाबले कम है। उनका कहना था कि विलंब शुल्क को एक लाख रुपये जुर्माना बताना गलत है और इसमें कोई भी सीए (चार्टर्ड एकाउंटेंट) निजी विश्वविद्यालयों से जुड़ा नहीं है।

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