मध्यप्रदेश की पटवारी भर्ती एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला भर्ती की जांच रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है। इस जांच रिपोर्ट की छायाप्रति सूचना के अधिकार अधिनियम यानी आरटीआई में देने से इनकार कर दिया गया है। यह तब है, जब मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने एक मीडिया संस्थान को दिए इंटरव्यू में साफ तौर पर कहा था कि पटवारी भर्ती की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक है, कोई भी ले सकता है। सरकार घर-घर जाकर रिपोर्ट तो देगी नहीं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि जब कोई रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में है तो उसकी छायाप्रति देने से इनकार क्यों किया जा रहा है।
वेबसाइट पर सार्वजनिक की जानी चाहिए रिपोर्ट
इस मामले में पूर्व राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह कहते हैं, पटवारी भर्ती घोटाले की जांच रिपोर्ट RTI एक्ट में देने से मना करना कानून का उल्लंघन है। मुख्यमंत्री को अब दो काम करने चाहिए। एक तो जिस अधिकारी ने अवैध आदेश जारी कर जांच रिपोर्ट को रोका है, उसे सस्पेंड किया जाए। दूसरा RTI एक्ट की धारा 4 के तहत जांच रिपोर्ट तत्काल वेबसाइट पर सार्वजनिक कराई जाए।
दिग्विजय सिंह ने उठाए सवाल
पटवारी भर्ती मामले में विपक्ष शुरुआत से सरकार पर हमलावर रहा है। अब इस मामले में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह भी सवाल खड़े करते हैं। उनका कहना है कि यदि पटवारी भर्ती घोटाले की जांच हो गई है तो मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव वह जांच रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर क्यों नहीं रख देते? या आप प्रेस को रिलीज कर दें।
विकास ने की फर्स्ट अपील
मध्यप्रदेश पटवारी भर्ती परीक्षा का स्कैन करने वाले जर्नलिस्ट विकास वर्मा कहते हैं, जब जांच हो गई, रिपोर्ट भी बनकर सबमिट हो गई... रिपोर्ट के आधार पर सभी अभ्यर्थियों की ज्वाइनिंग भी हो गई। यहां तक कि मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव भी पब्लिकली ये कह चुके हैं कि जांच रिपोर्ट कोई भी ले सकता है। ऐसे में विभाग की ओर से आरटीआई के माध्यम से जांच रिपोर्ट देने में आनाकानी क्यों की जा रही है? आपको बता दें कि विकास ने ही इस मामले में आरटीआई लगाकर जानकारी मांगी है। जानकारी नहीं मिलने पर अब उन्होंने हाल ही में फर्स्ट अपील भी की है।
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नियम और कायदे भी जान लीजिए
आपके आवेदन में चाही गई जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 8 (घ) व धारा 8(ड़) के अंतर्गत आने से सूचना प्रदाय किया जाना बंधनकारी नहीं है। आगे लिखा कि यदि आप इस जानकरी, सूचना से अंसतुष्ट हो तो 30 दिन के भीतर प्रथम अपीलीय अधिकारी सचिव व अपीलीय अधिकारी मप्र शासन सामान्य प्रशासन विभाग में अपीलीय फीस 50 रुपए देकर अपील कर सकते हैं।
द सूत्र ने धाराओं को भी जाना और समझा...। इसके मुताबिक, RTI की धारा 8 (घ) लिखा है कि सूचना जिसमें वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक संपदा सम्मिलित है, जिसके प्रकटन होने से किसी पर व्यक्ति की प्रतियोगी स्थिति को नुकसान होता है, जब तक कि सक्षम प्राधिकरी का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसी सूचना के प्रकटन से विस्तृत लोकहित का समर्थन होता है। RTI की धारा 8(ड़) में लिखा है कि किसी व्यक्ति को उसकी वैश्वासिक नातेदारी में उपलब्ध सूचना जब तक कि सक्षम प्राधिकारी को यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसी सूचना के प्रकटन से विस्तृत लोकहित का समर्थन होता है।
अब देखिए, कितना मजेदार तथ्य है कि पटवारी जांच रिपोर्ट जाहिर करने में कौन सी वाणिज्यिक गोपनियता भंग हो रही है...कौन सा व्यापार या किसी की बौद्धिक संपदा को ये उम्मीदवार चुरा रहे हैं, लेकिन जांच रिपोर्ट यही कहते हुए देने से साफ इनकार कर दिया गया।
विस्तार से समझिए पूरा मामला
पहले आपको पटवारी भर्ती परीक्षा की टाइमलाइन बताते हैं। नवंबर 2022 में पटवारी के साथ ग्रेड-3 के 9 हजार 200 पदों के लिए कर्मचारी चयन आयोग ने नोटिफिकेशन जारी किया। इन पदों के लिए 12 हजार 7 हजार 963 युवाओं ने आवेदन किया। इसके बाद 15 मार्च से 26 अप्रैल 2023 के बीच प्रदेश के 78 सेंटरों पर परीक्षाएं हुईं, जिसमें 9 लाख 78 हजार 270 अभ्यर्थी शामिल हुए। 30 जून 2023 को भर्ती परीक्षा का रिजल्ट जारी किया गया। 8 हजार 617 पदों के लिए मेरिट लिस्ट आई। हालांकि तब बाकी पदों के लिए रिजल्ट रोक दिए गए थे।
बढ़ता गया आयोग का कार्यकाल
कहानी की शुरुआत ग्वालियर से हुई। यहां के एनआरआई कॉलेज में परीक्षा देने वाले 10 में से 7 अभ्यर्थी मेरिट में टॉप पर आए और बखेड़ा खड़ा हो गया। पूरी भर्ती परीक्षा सवालों के घेरे में आ गई। प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। विपक्ष ने सरकार को जमकर घेरा। इसके बाद सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 13 जुलाई 2023 को पूरे मामले में जांच बैठा दी। इसके छह दिन बाद यानी 19 जुलाई को जस्टिस राजेंद्र वर्मा की अगुआई में में जांच आयोग का गठन हुआ। शुरुआत में आयोग को 31 अगस्त तक रिपोर्ट देनी थी, लेकिन बाद में दो बार में इसकी अवधि 15 दिसंबर तक बढ़ा दी गई। नई सरकार बनी तो आयोग का कार्यकाल 31 जनवरी हो गया।
टॉपर नहीं बता पाई थी जिलों की संख्या
इस बीच इंदौर, भोपाल, जबलपुर और रीवा सहित अन्य संभागों के अभ्यर्थियों ने जांच आयोग के सामने अपनी बात रखी। बयान दिए। परीक्षा में धांधली की आशंका वाले तथ्य पेश किए गए। जस्टिस वर्मा भी अलग-अलग परीक्षा सेंटर पर जांच के लिए गए। उन्होंने ग्वालियर के एनआरआई कॉलेज में पड़ताल की। तकनीकी पहलु देखे गए। कुल मिलाकर जांच हो गई और सरकार के पास पहुंच गई। जब इस मामले में मीडिया ने पड़ताल की तो पता चला कि जो टॉपर को यही नहीं पता कि मध्यप्रदेश में कितने जिले हैं।
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