रवीन्द्र दुबे @ जबलपुर
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसंबर 2023 को शपथ लेने के बाद एक आदेश निकाला था। उस आदेश को अब अमूमन सबने भुला दिया है। बीते 9 माह में गली-चौराहे पर उस आदेश की धज्जियां उड़ते प्रशासन ने देखा। कार्रवाई करने का साहस भी प्रशासनिक अधिकारियों के पास नहीं है। लगभग इसी अंदाज में मध्यप्रदेश की सरकार चल रही है। ब्रेकिंग न्यूज व मीडिया की हैडलाइन बनाना और भूल जाना...
गर्भकाल …मोहन यादव सरकार के नौ माह और आपका आंकलन…
कैसी रही सरकार की दशा और दिशा…
आप भी बताएं मोहन कौन सी तान बजाएं….
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डीजे वाले बाबू को किसी का डर नहीं
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पद संभालते ही एक्शन में आ गए थे। उन्होंने धार्मिक स्थलों समेत अन्य जगहों पर लगाए गए अवैध लाउड स्पीकरों पर बैन लगा दिया था। साथ ही जो वैध लाउड स्पीकर हैं, उन्हें भी तय डेसिबल सीमा और तय समय पर ही संचालित करने की अनुमति दी थी। जैसा हर सरकार के बनने पर होता है, लगभग हर जिले में प्रशासनिक अमला निकल पड़ा।
मंदिर और मस्जिदों से लाउड स्पीकर हटाए जाने लगे। अभियान कुछ दिन तक चला और फिर उसी हाल पर बजने लगे। नतीजा ये हुआ कि मार्च-अप्रैल में बच्चों की परीक्षा के बीच भी डीजे की धमक कम नहीं हुई। लोकसभा चुनाव के बीच भी डीजे वाले बाबू ने अपनी आवाज कम नहीं की। पूरे प्रदेश में विवाह समारोह हो या फिर धार्मिक आयोजन मुख्यमंत्री के आदेश की दुर्गति होते हम सब रोज देख रहे हैं।
कद्दावरों के साथ तालमेल
शपथ ग्रहण समारोह के 12वें दिन प्रदेश का मंत्रिमंडल बना और उसमें देश के कद्दावर नेताओं को स्थान मिला। जिस कद काठी के दिग्गज नेता मंत्री हैं या कुछ बड़े नेताओं को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला, उन सबसे सामंजस्य कैसे बैठेगा? लेकिन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपनी कार्यकुशलता दिखाते हुए मध्य प्रदेश को नया नेतृत्व दिया। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह की कमी को पूरा करते हुए सरकार और संगठन के बीच बेहतरीन तालमेल बनाया।
वे जो उमा-शिव प्रयास करते रह गए...
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सबसे पहली परीक्षा लोकसभा चुनाव में होना थी। लोकसभा की 29 में से 29 सीट जीतकर एक नया रिकॉर्ड बना दिया। साथ ही आम चुनाव में अपराजेय कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली छिंदवाड़ा सीट भी छीन ली।
इस मुश्किल मिशन पर भारतीय जनता पार्टी 2003 से लगी थी, लेकिन फायर ब्रांड नेता उमा भारती और लोकप्रिय नेता शिवराज सिंह के समय से संघर्ष कर रही भाजपा को सफलता दिलाने का श्रेय डॉ. मोहन यादव को मिला। इसके बाद हुए उपचुनाव में अमरवाड़ा का रण भी भाजपा ने मुख्यमंत्री मोहन के नेतृत्व में जीता।
गर्भकाल : काम की लय पकड़ने में अधिक समय नहीं लिया मोहन यादव ने
शिव की राह पर मोहन
मुख्यमंत्री ने भी लगातार दौरे किए हैं। प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त रखने में इस तरह के दौरे काम भी आते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी इसी तरह जनता से सम्पर्क कर जननेता की छवि बनाई। डॉ. मोहन यादव भी उसी राह पर चलकर जनता से संवाद कर रहे हैं। अभी मोहन सरकार का सिर्फ 9 माह कार्यकाल हुआ है।
वे लगातार मेहनती, सक्रिय और संवेदनशील मुख्यमंत्री की छवि बनाते नजर आ रहे हैं। अभी गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के ही पास है, प्रदेश की कानून व्यवस्था सिर्फ ठीक-ठाक है। पुलिस मैदान पर सक्रिय तो दिखती है, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप या कहें पद बचाने के फेर में काम करने की लालसा की कमी दिखती है। इसी कारण अपराधों पर अंकुश नहीं लग सका।
सब कुछ ठीक भी नहीं
इसका मतलब यह नहीं है कि भाजपा में सब कुछ ठीक है, कोई मतभेद नहीं है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को शपथ लिए हुए 9 माह हो चुके हैं, फिर भी प्रशासनिक फेरबदल की प्रतीक्षा हो रही है। अभी तक ट्रांसफर पॉलिसी तय नहीं हुई। अब अक्टूबर माह में कुछ तय होने की उम्मीद है। अभी तक जो प्रशासनिक अमला है, उसकी नियुक्ति चुनाव आयोग के निर्देश पर विधानसभा व लोकसभा चुनाव के समय हुई थी।
कुछ अधिकारी हटाए या बदले गए हैं तो उन्हें किसी अन्य कारण से ही हटाया गया है। जिलों में जो भी अधिकारी हैं उनकी निष्क्रियता इसलिए भी है कि वे सब अब अपने मूल जिलों में वापस जाना चाहते हैं। अगस्त बीत चुका है और सार्वजनिक उत्सव शुरू हो चुके हैं, ऐसे में प्रशासन पर पकड़ बनाने के लिए अभी भी तबादला नीति या फेरबदल की प्रतीक्षा हो रही है।
दलबदलु को महत्व मिलने का दर्द
कैबिनेट मंत्री नागर सिंह चौहान से वन मंत्री का पद ले लेने के बाद जो नाराजगी सामने आई, उससे भी भाजपा की भद्द पिटी है। हालांकि बाद में वन मंत्री नागर सिंह मान गए और इस्तीफा नहीं दिया। इस विवाद से भाजपा ने अंदरखाने चल रहे असंतोष को भी उजागर कर दिया। कई वरिष्ठ विधायक मंत्री नहीं बनने से असंतुष्ट थे, उनके बयान आए, लेकिन भाजपा ने मामले को जल्द ही कंट्रोल कर लिया। वहीं प्रदेश के निगम-मंडलों में नियुक्तियां नहीं होना भी लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है। नियुक्तियों की आस लगाए बैठे नेता पहले ही दल बदलकर आए नेताओं को तरजीह मिलने का दर्द झेल रहे हैं।
कई मौकों पर बिगड़े बोल
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लोकसभा चुनाव के दौरान भी कई विवादास्पद बयान दिए हैं, जो मुख्यमंत्री की गरिमा के अनुरूप नहीं माने जा सकते हैं। चुनाव के बाद भी मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पहले ही बयान दिया था कि भारत में रहना है तो राम कृष्ण की जय कहना होगा, यह बयान भी सुर्खियों में रहा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का पद बड़ा है, साथ ही मध्यप्रदेश की राजनीति भी अभी भी हिंदू-मुस्लिम या धार्मिक कार्ड पर आधारित नहीं है, इसलिए इस तरह के बयान से बचना चाहिए।
मंत्री कौन...
स्मरण करिए और सोचिए, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के अतिरिक्त किस मंत्री के कार्यों को अब तक मीडिया में स्थान मिला है....? बहुत जोर देने पर भी 30 में से 5-6 मंत्री ही सक्रिय दिखेंगे? वैसे प्रभारी मंत्री बनाने में भी देरी इसकी वजह हो सकती है। अब प्रभारी मंत्री तय हो चुके हैं, शायद आने वाले महीनों में मंत्रियों के काम की समीक्षा की जा सकेगी। अभी तो दिमाग पर जोर देने से ही मंत्री के नाम और विभाग का स्मरण हो पाता है। प्रदेश में एक वजनदार व्यापक जनसमर्थन वाली सरकार है, यह इतिहास में दर्ज कराने के लिए डॉ. मोहन सरकार को लम्बी यात्रा तय करना होगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।
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