विप्लव अग्रवाल @ जबलपुर
विधानसभा चुनाव हो चुके थे। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शब्दों में कहें तो मध्यप्रदेश रूपी मंदिर के वे पुजारी थे और भगवान रूपी जनता ने 163 सीटें जिताकर अतुल्य जनादेश भाजपा को दिया था। कयास भी यही थे कि शिवराज फिर इस मंदिर के मुख्य पुजारी हो सकते हैं। फिर वे सधे हुए कदमों से धीरे- धीरे चलते हुए आते हैं। विधायकों के फोटो सेशन में तीसरी पंक्ति में जाकर बैठ जाते हैं। पर्यवेक्षक मनोहरलाल खट्टर का संकेत मिलता है और शिवराज सिंह चौहान ही उनके नाम का प्रस्ताव रखते हैं।
गर्भकाल…
मोहन यादव सरकार के नौ माह और आपका आंकलन…
कैसी रही सरकार की दशा और दिशा…
आप भी बताएं मोहन कौन सी तान बजाएं….
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https://thesootr.com/state/madhya-pradesh/cm-mohan-yadav-garbhkal-the-sootr-survey-6952867
ये थे डॉ. मोहन यादव जो अब मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री हैं। यह वाकया पिछले वर्ष 2023 के दिसंबर का है और आज नौ माह बीत जाने के बाद यह भी स्पष्ट है कि यह सब अनायास नहीं हुआ था। डॉ. मोहन यादव जानते थे कि वे मध्यप्रदेश के सीएम बनने जा रहे हैं, परंतु उन्होंने किसी को भी यह संकेत नहीं दिया। अपने परिजनों को भी नहीं। शायद यही कारण था कि काम को प्रामाणिकता और गोपनीयता के साथ जमीन पर उतारने की उनकी शैली के कारण वे शनै: शनै: उच्च कमान की आंखों में खिलते चले गए। प्रतिफल यह था कि जो नाम उस समय चर्चा में न के बराबर था, वह आज मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम है। उनके सीएम बनने के बाद सबसे पहले शिवराज सिंह चौहान ने सोशल मीडिया पर बधाई दी। लिखा- मोदी जी का मार्गदर्शन प्राप्त करने वाले कर्मठ साथी प्रदेश को और बेहतर बनाएंगे। शिवराज भी जानते थे कि आज जो हुआ है उसकी किश्तों में पटकथा नियति लिख रही थी। 2023 के एक साल पहले रातापानी अभयारण्य में हुई एक गोपनीय बैठक के बाद…
मध्यभूमि है मोहन की,गोपाल की.. यह लगभग निश्चित हो गया था, कुछ अंदरखाने से बाहरखाने तक इस तरह की खबरें भी आईं पर प्रदेश रूपी मंदिर के मुख्य पुजारी शिवराज ही बने रहे। उस समय बतौर उच्च शिक्षा मंत्री राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देश में सबसे पहले मध्यप्रदेश में अमली जामा पहनाकर डॉ. मोहन ऊपर तक गुंजित हो चुकी उनकी बांसुरी की सुरीली तान के असर से वाकिफ भी थे, लेकिन लगातार जीत के कीर्तिमान बनाकर कालजयी बन चुके शिवराज सिंह चौहान की जगह उन्हें मिलेगी, शायद इसका अंदेशा उन्हें भी नहीं रहा होगा। छात्र राजनीति से बढ़कर सत्ता के महत्वपूर्ण शिखर तक पहुंचने की उनकी यात्रा अद्भुत तो है। इस यात्रा के दौरान वे खुद सधे भी रहे और जहां लगा,वहां साधते भी रहे,यही उनकी खूबी है।
डॉ मोहन यादव को मालूम है कि उन्हें क्या करना है और वे पिछले नौ माह में इसमें बखूबी सफल भी रहे हैं। 163 सीटों के भारी- भरकम जनादेश के चलते वे बिल्कुल दबाव रहित हैं। दिल्ली के संदेश और संकेत उनके लिए समझना बिल्कुल आसान हैं। राजनीति में उनसे वरिष्ठ उनकी कैबिनेट में हैं तो कोई निर्णय लेने में असमंजस और समस्या नहीं है। क्योंकि अनुभवी साथ हैं और अभी तक यह भी नहीं लगा कि सीएम और वरिष्ठों के बीच सामंजस्य और समन्वय की कोई कमी हो। उनके सीएम बनने के कुछ दिनों बाद एक साक्षात्कार में उन्होंने यह कहते हुए अपनी मंशा भी जाहिर कर दी थी कि वरिष्ठों के मार्गदर्शन से मुझे भरपूर सहयोग मिल रहा है। मतलब वे सभी के साथ हैं और सभी को साथ लेकर चलना भी चाहते हैं।
यह तो हुई उनके राज्याभिषेक और कुछ इसके इतर बात। अब डॉ मोहन यादव के अभी तक के नौमासी कार्यकाल की बात करें तो पहले ही माह में उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि प्रधानमंत्री मोदी की गैरंटी को पूरा करना उनकी प्राथमिकता है। शाही अफसरशाही पर उनकी पूरी नज़र रहेगी। वह हावी नहीं हो सकेगी। यानी एक सकारात्मक संदेश दिल्ली की ओर और दूसरा वल्लभ भवन जैसे सत्ता के गलियारों की ओर। साथ में यह भी कहा था कि मातृ शक्ति के लिए चल रही योजनाओं पर कोई आंच नहीं आएगी। इसका सीधा फायदा यह मिला कि बाद में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में 29-0 का परिणाम सामने आया।
सीएम बनते ही उन्होंने तेंदूपत्ता संग्राहकों का पारिश्रमिक एक हज़ार रुपए बढ़ाकर यह बता दिया कि भविष्य में वे मोदी की हर गैरंटी को पूरा करने की राह पर कदम बढ़ा चुके हैं। महिलाओं, युवाओं, किसानों, और जनजातीय लोगों को लाभ पहुंचाने, स्वास्थ्य और आधारभूत संरचना को और उन्नत बनाने वे काम करेंगे। इसके अलावा वे यह भी जता चुके हैं कि हर वह मुद्दा जो जनता के मानस को प्रभावित और उद्वेलित करता हो। विपक्ष को परेशान करता हो उसे भी छोड़ा नहीं जाएगा। इसी वर्ष जून में अमरवाड़ा उपचुनाव के दौरान छिंदवाड़ा जिले में गौमाता का पूरा ध्यान रखने और कांग्रेस को रावण की तरह भेष बदलने वाली पार्टी बताकर लोगों तक यह संदेश भी पहुंचा दिया कि उनके तेवर आगे भी कैसे रहने वाले हैं।
अभी तक मंत्रियों का आयकर प्रदेश सरकार भरती थी, लेकिन 5 दशक से भी ज्यादा से चलती आ रही इस परिपाटी पर भी उन्होंने लगाम कस दी। हालांकि इससे प्रदेश के खजाने पर कोई बड़ा भारी बोझ नहीं पड़ता था, पर यह फैसला वैसा ही है कि देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर.. यानी आम जनता को जो अच्छा लगे वह निर्णय भी लिए गए। इस निर्णय को लेकर सोशल मीडिया पर जिस तरह की प्रतिक्रिया और संदेश चल रहे थे वह बताते थे कि डॉ. मोहन जनता की नब्ज पकड़ने में भी प्रवीण हैं।
डॉ. मोहन मीडिया से बात करते हुए बता चुके हैं कि मैं काम को टालता नहीं हूं और सही गलत कहने में भी पीछे नहीं हटता। पूर्ववर्ती शिवराज सरकार के कुछ निर्णयों को डॉ मोहन यादव ने पलटा तो कुछ सवाल भी खड़े हुए तब उन्होंने कहा कि सभी के काम करने का तरीका अलग होता है। कई बार कड़वी दवाई मरीज को देनी पड़ती है। जाहिर है यह आत्मविश्वास उनमें अपने प्रति उच्च कमान के विश्वास के कारण और कच्ची उम्र से संगठन की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए सत्ता के उच्च पायदान पर पहुंचने के कारण ही आया है। अध्ययन- पठन- मनन, स्वाध्याय और स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रमाण वे सूत्र के ही कार्यक्रम के दौरान आशुतोष राणा और सौरभ द्विवेदी से चर्चा करते हुए लाइव दे चुके हैं।
जिस दल की 20 वर्ष से लगातार प्रदेश में सरकार हो, उसमें मुख्यमंत्री से आशा-अपेक्षा बढ़ जाती है। डॉ मोहन यादव उसे कैसे पूरा करेंगे यह देखना बाकी है। अभी के गुजरे नौ महीने तो वे सही राह पर आगे बढ़ते दिख रहे हैं। इस सबके बीच फ्रीबीज के चलते प्रदेश की आर्थिक दशा को सुदृढ़ बनाये रखने जैसी अनेक चुनौतियों का सामना उन्हें भविष्य में करना पड़ेगा। जनता की अपेक्षाओं को पूरा करना भी बड़ा टास्क होगा, क्योंकि नौ माह तो गुज़र गए, अब जनता की आकांक्षा परवान चढ़ेगी। विपक्ष जात पात के सहारे ही सही पर बढ़े चलो की तर्ज़ पर काम करता दिख रहा है। इस चुनौती से लगातार निपटते रहने की जरूरत इन नौ माह के बाद लगातार सीएम डॉ मोहन यादव को पड़ती रहेगी। इसका पूरा अंदेशा है। चूक करने की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
भाजपा को मिले भारी- भरकम जनादेश के चलते मध्यप्रदेश में विपक्ष फिलहाल तक तो सन्निपात की स्तिथि में दिख रहा है। उसके छत्रप नेपथ्य में जा चुके हैं। जागीरदारों को छत्रपों का ताना-बाना उढ़ा दिया गया है, पर राजनय और राजनीति में कब कौन सी लघु अनल विकराल मुद्दे रूपी दावानल में परिवर्तित हो जाये, इसकी भविष्यवाणी असंभव है। तब डॉ.मोहन को आगे भी उसी तरह सधे कदम बढ़ाने होंगे। जिस तरह वे सधे कदमों से पिछले वर्ष विधायक दल की बैठक में सम्मिलित होने आए थे। महाकाल के नगर से भोपाल के ताल के किनारे बने प्रासाद तक पहुंचकर ताल में उठती लहरों के बीच कमल लगातार खिलते रहें इसके लिए उन्हें हर मोर्चे पर बीते नौ माह की तरह ही चौकन्ना रहना होगा। चाहे मोर्चा आर्थिक हो या सामाजिक या फिर दल के भीतर की ही बात हो। वैसे उनके लिए यह सहज होगा, क्योंकि वे दिल्ली और नागपुर के संदेश और संकेत बखूबी समझते हैं। इसमें जनता को जनकल्याणकारी कदमों के जरिये बांधे रखने की सम्भवतः ताकीद होती है और इसमें अभी तक मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सफल रहे हैं…
लेखक जबलुपर के वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।
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