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मध्य प्रदेश के सागर की मैनाई जलाशय परियोजना में सरकारी भूमि के मुआवजे में कथित अनियमितताओं का मामला सामने आया है। एक प्रतिष्ठित दैनिक अखबार में छपी खबर के अनुसार, पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव पर इसे लेकर गंभीर आरोप लगे हैं। अभिषेक पर आरोप है कि उन्होंने रहली तहसील के धोनाई गांव में पट्टे की जमीनें मामूली कीमत पर खरीदीं और फिर छह महीने के भीतर इन पर मुआवजा ले लिया। यह मुआवजा करीब 50 लाख रुपए तक होने का अनुमान है, और इसमें सरकारी भूमि का फायदा उठाने की बात कही जा रही है।
मुआवजे के बाद की मिली बड़ी रकम
आरोप है कि अभिषेक भार्गव ने जिन जमीनों की खरीदारी की, वे मैनाई जलाशय परियोजना के दायरे में आ गई थीं। इन जमीनों की खरीद के बाद उन्होंने सरकार से मुआवजा लिया। खबर के अनुसार, अभिषेक भार्गव ने 18 हेक्टेयर (45 एकड़) जमीन विभिन्न व्यक्तियों से खरीदी। इन जमीनों पर मुआवजा पाने की प्रक्रिया महज छह महीने के भीतर पूरी हुई।
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दस्तावेजों में दर्ज जानकारी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अभिषेक भार्गव ने धोनाई गांव के खसरा नंबर 449/7 की एक हेक्टेयर जमीन 26 मई 2011 को दामोदर अहिरवार से मात्र 25,000 रुपए में खरीदी। इसके बाद, 18 नवंबर 2011 को इस पर मुआवजा तय किया गया, जिसकी राशि 2 लाख 26 हजार 570 रुपए थी। यह वही पैटर्न था, जिसे अन्य खसरों में भी अपनाया गया।
सरकारी भूमि पर हुए सौदे
यह भी आरोप है कि अभिषेक भार्गव द्वारा खरीदी गई कुछ जमीनें पहले सरकारी रिकॉर्ड में शासकीय भूमि के रूप में दर्ज थीं। 21 नवंबर 2011 को रहली के अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय से जारी पत्र में 41 खसरे निजी भूमि के रूप में दिखाए गए थे, ताकि मुआवजा प्राप्त किया जा सके। इस मामले में मुआवजे की कुल राशि 1 करोड़ 45 लाख 20 हजार रुपए तक पहुंची, जिनमें से 20 खसरे पहले सरकारी भूमि के रूप में दर्ज थे। इन खसरों की पहचान और उन्हें निजी भूमि के रूप में दर्शाने के बाद मुआवजे का दावा किया गया, जिससे यह मामला और भी विवादास्पद हो गया है।
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अभिषेक भार्गव ने कहा- मैंने कुछ गलत नहीं किया
इस पूरे मामले पर अभिषेक भार्गव ने स्पष्ट किया कि, "मेरे द्वारा जो भी जमीन खरीदी गई, वह सब सही थी। गलत काम करने का तो सवाल ही नहीं उठता है।" उनका कहना है कि उनके द्वारा की गई सारी खरीदारी वैध थी और इसमें कोई भी गड़बड़ी नहीं है।
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