कागजों पर करोड़ों की जमीन : आदिवासियों के नाम पर खनिज माफिया कर रहा मनी लॉन्ड्रिंग, कहां है ED-CBI?

मध्यप्रदेश के खनिज-समृद्ध जिलों में खनन माफिया बैगा आदिवासियों की जमीनें धोखे से खरीद रहे हैं। इन सौदों में इन आदिवासियों के नाम पर कागजों में 1000 एकड़ से ज्यादा जमीन दर्ज है, जबकि हकीकत में उनके पास कुछ एकड़ ही पैतृक भूमि है।

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Abhilasha Saksena Chakraborty
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Baiga tribes land is used for Bauxite mining
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MP News: मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों डिंडौरी, कटनी, उमरिया और झाबुआ में आदिवासियों की ज़मीनों की खरीद-फरोख्त में मनी लॉंड्रिंग का बड़ा मामला सामने आ रहा है। यहां आदिवासियों को मोहरा बनाकर उनकी ज़मीनों को खनिज माफिया हथियाया रहा है। हकीकत यह है कि ये आदिवासी अपनी ज़मीनों के मालिक ही नहीं हैं उनके नाम पर खनन माफिया और कंपनियां आदिवासी क्षेत्रों के खनिज संसाधनों का दोहन कर रही हैं।

मोहरा बन रहे आदिवासी 

इन ज़मीनों को खरीदने के लिए जो पैसे खर्च किए जा रहे हैं, उनका स्रोत क्या है? इन आदिवासियों की वास्तविक आय और आर्थिक स्थिति को देखकर यह सवाल उठता है कि उनके पास इतनी बड़ी ज़मीन खरीदने के लिए पैसे कहां से आए? क्या ये ज़मीनें वाकई आदिवासियों के पास हैं, या फिर इन्हें बेनामी संपत्ति के रूप में मनी लॉंड्रिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है? यह पूरी प्रक्रिया मनी लॉंड्रिंग का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें काले धन को सफेद करने के लिए आदिवासियों का फायदा उठाया जा रहा है। सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस मनी लॉंड्रिंग को खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाएं।

सवालों के घेरे में ईडी, सीबीआई 

  • इतने बड़े मनी लॉंड्रिंग और बेनामी संपत्ति के खेल के बावजूद, ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) क्या कर रही हैं?
  • क्या ईडी और सीबीआई सिर्फ बड़े व्यापारिक घोटालों और उच्च-स्तरीय अपराधों तक ही सीमित हैं?
  • इतने बड़े पैमाने पर लेन-देन हो रहा है, फिर भी इन संस्थाओं का ध्यान इस मुद्दे पर क्यों नहीं गया? क्या उन्होंने इस खेल की गंभीरता को समझा है?
  • अगर प्रशासन और जांच एजेंसियां इस मामले की गंभीरता से जांच करती हैं, तो यह बेनामी संपत्ति घोटाला प्रदेश का सबसे बड़ा मनी लॉंड्रिंग स्कैंडल बन सकता है।

    यह आदिवासी समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन है
    , और उनकी ज़मीनों पर अवैध तरीके से कब्जा किया जा रहा है। इसके लिए प्रशासन को तुरंत कदम उठाने होंगे, और ईडी तथा सीबीआई को इस मामले की गहरी जांच करनी चाहिए।

5 प्वाइंट्स में समझें मामला क्या है?

बेनामी संपत्ति के सौदे: डिंडौरी, कटनी, उमरिया, धार और झाबुआ जैसे खनिज बाहुल्य क्षेत्रों में खनन माफिया आदिवासियों की जमीनें खरीदकर बेनामी संपत्ति बना रहे हैं। ये माफिया काली कमाई को छुपाने के लिए आदिवासियों की ज़मीनों का अवैध व्यापार कर रहे हैं।

कलेक्टर की अनुमति का उल्लंघन: आदिवासी क्षेत्रों में भूमि खरीदने के लिए कलेक्टर की अनुमति जरूरी होती है, लेकिन माफिया आदिवासियों को मोहरा बनाकर एक आदिवासी को दूसरे से जमीन बिकवा रहे हैं, जिससे कानून का उल्लंघन हो रहा है।

आदिवासियों की झूठी संपत्ति: चार आदिवासियों के नाम पर डिंडौरी जिले में 1200 एकड़ से अधिक जमीनें दर्ज हैं, जबकि ये सभी बीपीएल सूची में हैं और झोपड़ी में रहते हैं। उनकी वास्तविक संपत्ति बहुत कम है, लेकिन कागजों में उन्होंने बड़ी ज़मीनें खरीदी हैं।

आय का सवाल: सवाल यह उठता है कि इन आदिवासियों के पास इतनी बड़ी जमीन खरीदने के लिए पैसे कहां से आए, जबकि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। प्रशासन ने इस मामले में जांच शुरू की है, लेकिन असली मालिकों का पता अब तक नहीं चला है।

आदिवासियों के साथ धोखा: बैगा आदिवासी समुदाय का आरोप है कि उन्हें धोखे में रखकर बहुत सस्ती कीमतों पर जमीनें बेच दी गईं। बैगा आदिवासियों का आरोप है कि उन्हें धोखे में रखकर 10 से 40 हजार रुपए एकड़ में जमीनें खरीद ली गईं। इस जमीन के नीचे जो मूल्यवान बॉक्साइट था, उसका आदिवासियों को कोई इल्म नहीं था। अब वे अपनी जमीनों से हाथ धो बैठे हैं। उन्हें 2 एकड़ के पैसे देकर 22 एकड़ हथिया ली।

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 कैसे खेला जा रहा है ये खेल

माफिया का नियंत्रण: खनन माफिया आदिवासियों की जमीनें खरीदने के लिए उनके नाम का उपयोग कर रहे हैं, जिससे असल मालिकों से जमीनें खरीदी जा रही हैं, लेकिन इनका असली मालिकाना माफिया के पास होता है।

कागजी हेरफेर: कागजों में जमीनों की बड़ी राशि आदिवासियों के नाम पर दिखाकर, माफिया उन्हें भटका रहे हैं और उनके नाम पर बेनामी संपत्ति का कारोबार कर रहे हैं। इन आदिवासियों को उनके असल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

वित्तीय गड़बड़ी: माफिया आदिवासियों को धोखे से सस्ती कीमत पर जमीन बेचने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जबकि जमीनों के नीचे खनिज संसाधन हैं, जो अरबों की कीमत रखते हैं। आदिवासियों को इसकी जानकारी नहीं दी जाती, और उनका नुकसान होता है।

आधिकारिक निष्क्रियता: प्रशासन और सरकारी अधिकारियों द्वारा दस्तावेजों की सही जांच न करना, जैसे जाति प्रमाण पत्र और जमीन के मालिकों का सत्यापन न करना, इस खेल को बढ़ावा दे रहा है। कई मामलों में आदिवासी की जाति को बदलकर गलत जानकारी दी जा रही है।

काले धन का सफेद होना: इन जमीनों के कारोबार के माध्यम से माफिया काले धन को सफेद कर रहे हैं, जिससे आदिवासियों का शोषण हो रहा है और उन्हें अपने ही संसाधनों का वास्तविक लाभ नहीं मिल रहा है।

चौंकाने वाले केस

नत्थू कोल के नाम पर कागजों में कुल 565 एकड़ जमीन दर्ज है, जबकि उनके पास वास्तविक रूप से मात्र 2.4 एकड़ पैतृक भूमि है। इतना ही नहीं, उन्होंने कथित तौर पर 6 करोड़ रुपये में एक रिसॉर्ट भी बेच दिया।

इसी तरह, सघुराज गीड के नाम पर कागजों में 440 एकड़ जमीन पाई गई, जबकि उनकी असली ज़मीन सिर्फ 2 एकड़ की है। वे बीपीएल सूची में दर्ज हैं और राशन कार्डधारी हैं।

एषद कोल के नाम पर 200 एकड़ से अधिक ज़मीन दर्ज है। वह मूल रूप से ‘कोल’ जाति के हैं, लेकिन ज़मीन की रजिस्ट्री में उन्हें ‘गोंड’ जाति में दिखाया गया, जो अधिकारियों की मिलीभगत की ओर इशारा करता है।

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प्रशासन की भूमिका

डिंडौरी के एसडीएम रामबाबू देवांगन ने 11 सी के तहत नोटिस जारी किए हैं। वहीं मंत्री विजय शाह ने कहा कि “बैगा हमारी धरोहर हैं, उनके साथ अन्याय नहीं होने देंगे।” लेकिन यह मामला कई अधिकारियों की मिलीभगत की ओर इशारा करता है, जिन्होंने जाति प्रमाण पत्र और ज़मीन रजिस्ट्रेशन की जांच तक नहीं की।

कानूनी स्थिति

 भूमि राजस्व संहिता के अनुसार, आदिवासी क्षेत्रों में ज़मीन की बिक्री पर सख्त पाबंदी है। कलेक्टर की पूर्व अनुमति और ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य होती है, जो इन मामलों में नजरअंदाज की गई।
यह मुद्दा सिर्फ ज़मीन हड़पने का नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकारों और सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है। यदि जल्द ही ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो यह आदिवासी समुदाय की आजीविका और पहचान दोनों के लिए घातक साबित हो सकता है।



 

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