BHOPAL. मध्यप्रदेश में सरकारी अस्पतालों का निजीकरण नहीं होगा। 12 जिला अस्पतालों को निजी एजेंसियों को देने की रूपरेखा बनाई गई थी। 'द सूत्र' ने यह मुद्दा प्रमुखता के साथ उठाया था। इसके बाद अब सरकार ने यूटर्न लिया है। किसी भी जिला अस्पताल को निजी हाथों में सौंपने या पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मोड पर अपग्रेडेशन की प्रक्रिया को सरकार ने रोक दिया है।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि जिला अस्पतालों का संचालन पूरी तरह से सरकार के हाथों में रहेगा। स्टाफ और उपकरणों की पूरी जिम्मेदारी सरकार उठाएगी। जिला अस्पतालों को केवल मेडिकल कॉलेजों से जोड़ा जा सकेगा, लेकिन निजी हाथों में सौंपने का कोई सवाल ही नहीं है। वहीं, जिन जिला अस्पतालों के लिए टेंडर निकाले गए थे, उनके डॉक्यूमेंट में भी बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
यह था सरकार का एक्शन प्लान
जुलाई में सरकार ने सूबे के 12 जिलों में पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज खोलने और जिला अस्पतालों के अपग्रेडेशन के लिए टेंडर जारी किए थे। अशोकनगर, गुना, खरगोन, कटनी, मुरैना, पन्ना, टीकमगढ़, बालाघाट, भिण्ड, बैतूल, सीधी, धार में नई व्यवस्था लागू करने की पूरी तैयारी थी। इससे जिला अस्पतालों का निजी हाथों में जाने का रास्ता साफ हो गया था। अन्य जिला अस्पतालों को भी निजी हाथों में सौंपा जा सकता था।
विरोध के बाद बड़ा फैसला
सरकार ने यह कदम तब उठाया, जब जुलाई में 12 जिलों के अस्पतालों को पीपीपी मोड पर सौंपने की योजना का जबरदस्त विरोध हुआ। डॉक्टर्स, संगठनों और जनता ने एकजुट होकर इस फैसले का विरोध किया। 'द सूत्र' ने भी यह भी यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया। स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल से सीधी बात की। अब नतीजा यह रहा कि सरकार के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने निजीकरण संबंधी नीति में बदलाव कर दिया है।
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अब कैसी होगी स्थिति...यह भी जान लीजिए
जिला अस्पताल अब सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध रहेंगे। दावा किया जा रहा है कि विशेषज्ञ डॉक्टर और जूनियर डॉक्टर अपनी सेवाएं देंगे, जिससे अस्पतालों में व्यवस्थाएं दुरुस्त होंगी। गरीब मरीजों को मुफ्त या सस्ता इलाज मिलता रहेगा। टीकाकरण, टीबी, कुष्ठ और अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रम बिना किसी रुकावट के जारी रहेंगे।
अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
हालांकि, चिंता की बात अभी यह है कि सूबे का स्वास्थ्यगत ढांचा कमजोर है। सरकार यदि इसे और दुरुस्त कर दे तो मरीजों को काफी राहत मिलेगी। दरअसल, केंद्र सरकार ने 2007 में इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड लागू किए थे, इसमें स्टाफ और इन्फ्रास्ट्रक्चर सहित तमाम पैरामीटर्स थे, लेकिन प्रदेश में इनकी पूर्ति अब तक नहीं हो सकी है। प्रदेश में अभी स्पेशलिस्ट के 2 हजार 374 पद खाली हैं। ऐसे ही चिकित्सा अधिकारियों के 1 हजार 54 और डेंटिस्ट के 314 पद खाली हैं। कई सीएचसी और जिला अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञ व पैरामेडिकल स्टाफ नहीं है।
क्यों वापस लेना पड़ा फैसला...
- सरकार ने सरकारी अस्पतालों का निजीकरण करने का फैसला लिया, लेकिन इससे प्रभावित लोगों या स्वास्थ्य सेवाओं के हितधारकों से बात नहीं की गई।
- नए प्रस्ताव में सरकार की ओर से टीकाकरण, टीबी, कुष्ठ रोग और असंचारी रोग नियंत्रण जैसे मुफ्त सरकारी अभियानों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की गई थी।
- सरकारी प्रस्ताव में था कि निजी संस्थाएं जब जिला अस्पताल चलाएंगी तो वहां 55 फीसदी बेड मुफ्त रहेंगे। 45 फीसदी बेड पर शुल्क लगेगा। जब अभी ही सरकारी अस्पतालों में बेड की भारी कमी है तो निजीकरण के बाद गरीबों को मुफ्त इलाज का अधिकार कैसे मिलता, यह एक बड़ा सवाल था।
एसोसिएशन ने किया सरकार के फैसले का स्वागत
मध्यप्रदेश मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ.राकेश मालवीय ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, हमने इस प्रक्रिया का विरोध किया था, क्योंकि यह मरीजों के हित में नहीं थी। अब सरकार ने इस फैसले को वापस ले या है, इसके लिए मैं धन्यवाद ज्ञापित करता हैं। डॉ.मालवीय ने कहा, जब हेल्थ सर्विसेज का प्राइवेटाइजेशन होता तो आम जनमानस को कैसे उनका अधिकार मिलता, सरकार ने सही समय पर सही कदम उठाया है।
पीएस बोले- टेंडर में किया है बदलाव
स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव ने 'द सूत्र' से विशेष बातचीत में कहा कि किसी भी मेडिकल कॉलेज के लिए अस्पताल का होना जरूरी होता है। लिहाजा, पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज तो खोले जाएंगे, लेकिन सरकारी अस्पतालों पर नियंत्रण पूरी तरह सरकार के पास ही रहेगा। पहले इसे लेकर टेंडर निकाले गए थे, अब इसमें बदलाव किया गया है। अच्छी बात यह है कि अब जिलों में लोगों को हायर लेवल का इलाज मिलेगा, क्योंकि मेडिकल कॉलेज खुलने से वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर भी मजबूत होगा।
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