गुना के विधायक पन्नालाल शाक्य ने हाल ही में नवसंवत्सर के अवसर पर आयोजित विक्रमोत्सव कार्यक्रम में एक प्रेरणादायक भाषण दिया। इस कार्यक्रम में ब्रह्मध्वज की स्थापना की गई, और सम्राट विक्रमादित्य के जीवन पर आधारित नाटक "सम्राट" का मंचन किया गया। इस अवसर पर पन्नालाल शाक्य ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि उनके सामने हमेशा लोभ, लालच और भय आते हैं, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट किया कि "यह माल बिकाऊ नहीं है, यानी वह किसी भी हालत में अपनी ईमानदारी से समझौता नहीं करेंगे।
ईमानदारी की राह पर चलने का संकल्प
पन्नालाल शाक्य ने कहा कि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ विशेष गुण होते हैं, लेकिन समय की बलिहारी के कारण जो श्रेष्ठ मानवीय गुण होते हैं, उन्हें अवसर नहीं मिल पाता। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि उनके सामने भी समय-समय पर लोभ और लालच आता है, लेकिन वह परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वह अपनी ईमानदारी की राह पर कायम रहें और जैसे की चदरिया मिली है, वैसे ही उसे रखें।
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रामायण और महाभारत पढ़ना बंद
विधायक शाक्य ने समाज की स्थिति पर चिंता व्यक्त की और कहा कि आजकल हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को भूलते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले हमारे घरों में रामायण और महाभारत के पात्रों की कथाएं सुनाई जाती थीं, जो प्रेरणा का स्रोत थीं, लेकिन अब हमने इन्हें पढ़ना बंद कर दिया है और आदर्श पुरुषों के चित्र भी घरों से गायब हो गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस चकाचौंध में हम अपनी विरासत को छोड़ते जा रहे हैं, और अब समय आ गया है कि हम तय करें कि हम क्या छोड़ रहे हैं और क्या स्वीकार कर रहे हैं।
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समाज सुधारने के लिए किसका उपयोग
पन्नालाल शाक्य ने समाज और सत्ता के रिश्ते पर भी विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अगर सत्ता से गलती होती है, तो समाज उसे सुधारता है, और अगर समाज से गलती होती है, तो सत्ता उसे समझाती है। उनका सवाल था कि हमें समाज को सुधारने के लिए सत्ता को सौंपना चाहिए या सत्ता को सुधारने के लिए समाज को सौंपना चाहिए। यह सवाल उन्होंने सभी से मिलकर विचारने के लिए रखा।
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