MP News: दक्षिण भारत की चर्चित फिल्म 'पुष्पा' में जैसे चंदन की तस्करी (smuggling) को दर्शाया गया है, कुछ वैसा ही दृश्य अब मध्य प्रदेश के ग्वालियर में सामने आया है। यहां अंतरराज्यीय गिरोह खैर के पेड़ों की अवैध कटाई कर उनकी लकड़ी की तस्करी कर रहा था। इन पेड़ों से निकलने वाली लकड़ी का इस्तेमाल कत्था बनाने में होता है, जिसकी भारी मांग है।
हाल ही में वन विभाग की एक विशेष टीम ने इस गिरोह की गतिविधियों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए दो ट्रक और 35 क्विंटल खैर की लकड़ी जब्त की है। यह लकड़ी घाटीगांव के जखौदी क्षेत्र में छिपाकर रखी गई थी और पकड़े जाने के डर से तस्करों ने इसका कुछ हिस्सा सांक नदी में डुबो दिया था।
गुप्त सूचना पर हुई रातोंरात कार्रवाई
15-16 मई की रात ग्वालियर वन विभाग को सूचना मिली थी कि अलवर (राजस्थान) से भारी मात्रा में खैर की लकड़ी दो ट्रकों के जरिए लाई जा रही है। त्वरित कार्रवाई करते हुए टीम ने ट्रकों को रोका, लेकिन तस्कर पूरी खेप नहीं ले जा सके। पकड़े जाने के बाद बची हुई लकड़ी को सांक नदी में फेंक दिया गया।
सांक नदी में मिली 35 क्विंटल लकड़ी
जब टीम ने सघन जांच के लिए नदी में उतर कर तलाशी ली तो वहां से 35 क्विंटल लकड़ी बरामद हुई, जिसे पानी में छिपा दिया गया था। इससे स्पष्ट होता है कि तस्करी की यह योजना बेहद संगठित तरीके से चलाई जा रही थी और नदी का इस्तेमाल छिपाव के लिए किया जा रहा था।
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तीन तस्कर गिरफ्तार, लेकिन रिमांड नहीं मांगी
इस मामले में हामिद, अजहरुद्दीन और साउन खान को गिरफ्तार किया गया, जो राजस्थान के अलवर जिले के निवासी हैं। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि तस्करों से पूछताछ के लिए वन विभाग ने न्यायिक रिमांड तक नहीं ली, जिससे पूरी सप्लाई चेन और मास्टरमाइंड का खुलासा अधूरा रह गया।
मुख्य आरोपी फरार, स्थानीय कनेक्शन भी सामने आया
इस नेटवर्क का एक बड़ा नाम रामनिवास गुर्जर फरार है, जिसकी गिरफ्तारी से कई अहम राज खुल सकते हैं। इसके अलावा ग्वालियर निवासी शोभित यादव का नाम भी इस रैकेट में उभरकर सामने आया है, जो संभवतः तस्करी संचालन में मुख्य भूमिका निभा रहा था।
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जखौदी बना था अवैध लकड़ी का गोदाम
तस्करों ने जखौदी क्षेत्र को एक अस्थायी गोदाम के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। आसपास के जंगलों से खैर के पेड़ों की कटाई कर लकड़ियां यहां जमा की जाती थीं और फिर मौका देखकर उन्हें ट्रकों के माध्यम से राजस्थान व अन्य राज्यों में भेजा जाता था।
जांच का दायरा सीमित, रैकेट का पूरी तरह खुलासा अधूरा
वन विभाग की जांच फिलहाल पेड़ों के ठूंठ तक सीमित रही है। यदि तस्करों से कड़ाई से पूछताछ की जाती, तो यह पता लगाया जा सकता था कि यह लकड़ी कहां भेजी जा रही थी, किन फैक्ट्रियों या व्यापारियों को बेची जाती थी, और इस नेटवर्क में और कौन-कौन शामिल है।