रोल्स रॉयस पर ग्वालियर के शाही परिवार में तकरार, सुप्रीम कोर्ट बोला-राजा महाराजा न बनें

रोल्स रॉयस और दहेज विवाद में ग्वालियर का शाही परिवार उलझ गया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए सख्त चेतावनी दी है और कहा कि राजाओं की तरह बर्ताव न करें।

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Rohit Sahu
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ग्वालियर के एक प्रतिष्ठित परिवार में 1951 मॉडल की रोल्स रॉयस कार को लेकर उपजा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। इस मामले में पति-पत्नी के बीच चल रहे आपसी मतभेद ने कानूनी रूप ले लिया है, जिसमें अदालत ने सख्त लहजे में टिप्पणी करते हुए कहा कि अब लोकतंत्र है, राजा-महाराजा की तरह व्यवहार करना बंद कर दें।

यह शाही टकराव है, समाधान निकालिए—सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने मामले को लेकर दोनों पक्षों को के बार में कहा कि ये अहंकार के टकराव के कारण हो रहा है। अदालत ने कहा कि यदि मध्यस्थता विफल हो गई है, तो तीन दिनों के भीतर सख्त आदेश जारी किए जाएंगे।

शादी, दहेज और रोल्स रॉयस: विवाद की जड़

इस पूरे विवाद की शुरुआत हुई ग्वालियर की एक महिला की उस याचिका से जिसमें उसने अपने पति और ससुरालवालों पर दहेज की मांग और उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए। याचिका में कहा गया कि जब उन्होंने रोल्स रॉयस कार और मुंबई के फ्लैट की मांग की और पूरा न होने पर शादी को ही नकारना शुरू कर दिया, तो मामला अदालत तक आ पहुंचा।

पत्नी बोली- चरित्र हनन किया, पति ने कहा- झूठा आरोप

महिला का आरोप है कि उसके खिलाफ झूठे और तुच्छ आरोप लगाकर चरित्र हनन किया गया। दूसरी ओर, पति ने अपने पक्ष में धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें विवाह प्रमाण पत्र तैयार करने को लेकर सवाल उठाया गया। इसके साथ ही पति ने सभी आरोपों से इनकार किया है, लेकिन मामला अब गंभीर कानूनी पेच में उलझ चुका है।

पूर्वजों की विरासत का दावा

महिला ने दावा किया कि वह छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना में एडमिरल रहे पूर्वजों की वंशज है और कोंकण क्षेत्र के शासक परिवार से है। वहीं पति ने खुद को सैन्य परिवार का सदस्य बताया और बताया कि वह मध्यप्रदेश में एक स्कूल चलाता है। इन दावों के बीच, अदालत ने दो टूक कहा कि यह मामला विरासत का नहीं, बल्कि व्यक्तिगत विवाद का है। अगर पैसा ही समस्या है, तो उसका समाधान कोर्ट कर सकता है।

1951 मॉडल रोल्स रॉयस से विवाद बना

सुनवाई में यह भी बताया गया कि विवाद की जड़ एक दुर्लभ 1951 मॉडल की रोल्स रॉयस कार है, जिसकी कीमत 2.5 करोड़ रुपये से अधिक आंकी जा रही है। यह कार कभी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा बड़ौदा की महारानी के लिए तैयार करवाई गई थी और अपने मॉडल की इकलौती कार मानी जाती है।

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कोर्ट का सुझाव: शांति से सुलझाइए मामला

अदालत ने साफ किया कि यह केवल ईगो की लड़ाई बन चुकी है और दोनों ही पक्षों को चाहिए कि विवाद का सौहार्दपूर्ण हल निकालें। अगर मामला केवल पैसों या प्रॉपर्टी का है, तो अदालत मदद कर सकती है, लेकिन इसके लिए सहमति जरूरी है। अंत में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि राजा-महाराजा की तरह व्यवहार न करें। लोकतंत्र को स्थापित हुए 75 साल हो चुके हैं। अगर आपसी समझौता नहीं हुआ, तो हम कठोर आदेश पारित करेंगे।

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