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भारतीय संतों का इतिहास इस बात का गवाह है कि उन्होंने योग और ध्यान के माध्यम से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को चौंकाया है। इन संतों ने कठिन साधना और इन्द्रियों पर नियंत्रण के साथ अपने शरीर को हर मौसम के अनुसार ढालने का काम किया। यही कारण है कि आज भी भारत का योग और अध्यात्म के क्षेत्र में विशेष स्थान है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से लोग योग की गहरी समझ पाने और इसे सीखने के लिए भारत आते रहते हैं। कुछ उन्हीं संतों में से एक थे खरगोन के सियाराम बाबा, जिनका निधन आज यानी 11 दिसंबर 2024 को हो गया। आज हम आपको खरगोन के सियाराम बाबा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका नाम सुनते ही लोग चमत्कृत हो जाते हैं। इनके बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। तो चलिए बताते हैं......
हिमालय में जाकर किया तप
सियाराम बाबा मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के भट्याण आश्रम के संत थे, जो नर्मदा तट पर स्थित है। उनकी उम्र को लेकर कई तरह की बातें होती रही हैं। हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उनकी उम्र 116 साल को पार कर गई थी।
सियाराम बाबा भगवान हनुमान के बड़े भक्त थे और उन्हें हर वक्त रामचरितमानस का पाठ करते देखा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि बाबा का जन्म मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था और उन्होंने 7-8वीं क्लास तक पढ़ाई की थी। लेकिन एक संत के दर्शन करने के बाद उनका जीवन एक नए मोड़ पर चला गया। उन्होंने घर छोड़कर हिमालय में तप करने का फैसला लिया और वहां जाकर कई वर्षों तक साधना की। इसके बाद उनका जीवन एक रहस्यमय सफर बन गया, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
बाबा 10 रुपए ही लेते थे दान
सियाराम बाबा की एक और खासियत ये थी कि वे दान में सिर्फ 10 रुपए ही स्वीकार करते थे। अगर कोई उनसे 10 रुपए से अधिक दान देता है, तो वे बाकि पैसे लौटा देते थे। एक बार अर्जेंटीना और ऑस्ट्रिया से कुछ लोग बाबा के दर्शन के लिए उनके आश्रम आए थे और उन्होंने 500 रुपए का दान दिया था। हालांकि, बाबा ने केवल 10 रुपए लिए और बाकी पैसे लौटाकर उनकी विनम्रता को दर्शाया।
समाज सेवा में भी आगे थे सियाराम बाबा
सियाराम बाबा समाज सेवा में भी आगे रहते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बाबा ने नर्मदा घाट की मरम्मत और बारिश से बचने के लिए शेड बनाने के लिए 2 करोड़ 57 लाख रुपए दान में दिए थे। इसके अलावा, एक निर्माणाधीन मंदिर के शिखर निर्माण के लिए उन्होंने 5 लाख रुपए का दान दिया था। यह उनके समाज कल्याण के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा का हुआ निधन
अपना काम खुद ही करते थे बाबा
सियाराम बाबा का जीवन हैरान करने वाला भी रहा है। चाहे गर्मी हो या सर्दी, वे हमेशा एक लंगोट में ही दिखाई देते थे। ध्यान और साधना के बल पर उन्होंने अपने शरीर को मौसम के अनुसार ढाल लिया था, जिससे कड़ाके की ठंड भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती थी। कहा जाता है कि 116 साल की उम्र में भी वे अपना सारा काम खुद ही करते थे और अपना भोजन खुद बनाकर खाते थे।
नाम के पीछे दिलचस्प कहानी
बाबा के नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी रही है। कहा जाता है कि उन्होंने 12 साल तक मौन व्रत रखा था। जब उन्होंने अपना मौन तोड़ा, तो सबसे पहला शब्द उनके मुंह से निकला था 'सियाराम'। इस वजह से गांव के लोगों ने उनका नाम सियाराम बाबा रख दिया था। इसी नाम से वो प्रसिद्ध हो गए।
10 साल तक खड़ेश्वर तप किया
सियाराम बाबा को लेकर कहा जाता है कि उन्होंने 10 साल तक खड़ेश्वर तप किया था, जो बहुत कठिन तप माना जाता है। इसमें तपस्वी को दिनभर के सारे काम खड़े रहकर करने होते हैं। एक बार इस तप के दौरान नर्मदा नदी में बाढ़ आ गई थी और पानी बाबा के नाभि तक आ गया था, लेकिन बाबा अपनी जगह पर खड़े रहे और तप करते रहे। यह सब उनकी गहरी योग साधना और समर्पण का परिणाम बताया जाता है।
प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा की तबियत में सुधार, आश्रम में हो रही देखभाल
बाबा का जीवन प्रेरणा भरा
अगर सियाराम बाबा का जीवन देखे तो प्रेरणा भरा रहा है, जो यह सिखाता है कि योग और साधना के जरिए मनुष्य अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति को अत्यधिक बढ़ा सकता है। उनका जीवन यह भी दिखाता है कि समर्पण, साधना और सेवा से जीवन को एक नया दृष्टिकोण और शांति मिल सकती है। बता दें कि बाबा का अंतिम संस्कार बुधवार शाम को उनके आश्रम के पास नर्मदा नदी के तट पर किया जाएगा। इसके लिए भक्त बड़ी संख्या में आश्रम पहुंच रहे हैं।
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