हरदा के अंधेरखेड़ी में अफसरशाही का खेल: 51 करोड़ की खनन पेनाल्टी 4 हजार में पिघली

हरदा के अंधेरखेड़ी में अवैध खनन के मामले में अफसरशाही का खेल सामने आया, जहां 51 करोड़ की पेनाल्टी महज 4,500 रुपए में बदल गई। यह मामला प्रदेश भर में चर्चा का विषय है।

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Ravi Awasthi
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Photograph: (the sootr)

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मध्यप्रदेश में अवैध खनन को लेकर अफसरों का संरक्षण किस हद तक जाता है, इसकी बानगी हरदा जिले के अंधेरखेड़ी गांव में देखने को मिली। यहां दो साल पहले अवैध खनन पकड़े जाने पर कंपनी पर 51 करोड़ 67 लाख की पेनाल्टी ठोकी गई थी, लेकिन अफसर बदलते ही यही पेनाल्टी घटकर महज 4,500 रुपए रह गई। मामला अब भी जिले की गलियों से लेकर मंत्रालय तक चर्चा में है।

वाक्या करीब दो साल पुराना है। जुर्माना लगाने वाले हरदा के तत्कालीन अपर कलेक्टर प्रवीण फुलपगारे अब दमोह व इनके फैसले को पलटने वाले तत्कालीन एडीएम डॉ नागार्जुन बी.गौड़ा खंडवा जिला पंचायत सीईओ हैं। एक ही सेवा के दो समकक्ष अफसरों के ये अलग-अलग आदेश आज भी हरदा जिले में चर्चा का विषय बने हुए हैं। स्थानीय एक्टिविस्ट आनंद जाट की सक्रियता से इसका खुलासा हो सका। 

5 दिन जांच के बाद दर्ज हुआ था मामला

दरअसल,इंदौर जिले में महू बेस्ड कंपनी प्रकाश एस्पालटिंग एवं टोल हाइवे यानी पाथ इंडिया लि.ने साल 2021-22 में हरदा जिले में मुरम व मिट्टी खनन का ठेका लिया। कंपनी को रहटगांव तहसील अंतर्गत अंधेरखेड़ी गांव के 19 खसरों की करीब 16 हेक्टेयर जमीन से खनन की अनुमति मिली। बताया जाता है कि साल-छह महीने बाद ही कंपनी ने खनन का दायरा बढ़ाया। उसने आवंटित जमीन के अलावा 

कई आदिवासियों की जमीनों का भी इस्तेमाल खनन के लिए किया। शिकायतें बढ़ी तो तत्कालीन अपर कलेक्टर प्रवीण फुलपगारे ने टीम गठित कर मामले की जांच कराई। इसमें इलाके के एसडीएम, तहसीलदार व दूसरे वृत के राजस्व निरीक्षक व पांच पटवारी शामिल रहे।  

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मौके पर मिला अवैध खनन, 51 करोड़ की पेनाल्टी

करीब पांच दिन तक चली जांच के बाद टीम ने करीब साढ़े तीन लाख घन मीटर मुरम का अवैध खनन पाया। टीम ने इसकी जप्ती भी की और रिपोर्ट एसडीएम के जरिए अपर कलेक्टर को सौंपी गई। इसके आधार पर जिला प्रशासन ने पाथ इंडिया लि पर करीब 51 करोड़ 67 लाख रुपए का जुर्माना लगाया और नोटिस व्यक्तिगत तौर पर तामील नहीं होने पर कंपनी कार्यालय में चस्पा कर दिया गया। एक पखवाड़े में कंपनी का जवाब नहीं मिलने पर उसे बाद में और नोटिस भी जारी हुए। 

करोड़ों की पेनाल्टी, 4 हजार में पिघली

बाद में एडीएम डॉ नागार्जुन ने मामले की सुनवाई की। उन्होंने जांच में खनिज व राजस्व अमले की लापरवाही पाई। इसी आधार पर करोड़ों की पेनाल्टी को खारिज कर दिया गया। कहा गया, अवैध खनन किसने किया? सुनवाई में यह बात साबित नहीं हो सकी। लिहाजा, इसके लिए सिर्फ पाथ कंपनी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अलबत्ता एक प्रकरण में पाथ पर साढ़े चार हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया, ताकि सनद रहे। 

केस में मैदानी अमले की सांख भी दांव पर

बताया जाता है कि एडीएम न्यायालय की सुनवाई के दौरान जांच दल में शामिल रहा समूचा अमला अपनी पूर्व की रिपोर्ट व कार्यवाही से पलट गया। क्या तहसीलदार और क्या पटवारी? सभी ने जब्ती व जांच कार्रवाई का जिम्मा एक-दूसरे पर ढोलते हुए अपने बयानों में कहा कि पोकलेन मशीनें, पाथ कंपनी के डंपर तो मौके पर मिले, लेकिन इनका उपयोग किस जगह के खनिज के लिए किया गया, यह बात वे दावे से नहीं कह सकते।

खनन मापन के सिस्टम पर ही उठे सवाल

प्रकरण की सुनवाई में यू-टर्न लेने वाली जांच टीम के सदस्य राजस्व निरीक्षक ने तो खनिज के ख​नन मापने की प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने अपने बयान में कहा, खनन का मापन रोवर मशीन से होता है। इससे दूरी मापी जा सकती है, गहराई नहीं। इसके लिए परंपरागत तरीका अपनाना होता है। 

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बयान देने लिया वकील का सहारा

आमतौर पर  विभागीय जांच,सुनवाई में सरकारी अधिकारी,कर्मचारी सीधे तौर पर अपने बयान दर्ज कराते हैं,लेकिन इस प्रकरण में इन्होने एक ही वकील मानव तनवानी की मदद ली। जांच दल में शामिल रहे,सभी सदस्यों ने एडीएम न्यायालय की सुनवाई में यू-टर्न लिया। वे अपने पूर्व के बयान व जांच से पलट गए। 

पाथ कंपनी मुख्यालय का दौरा भी किया

सूत्रों का दावा है कि तत्कालीन एडीएम डॉ नागार्जुन ने सुनवाई के दौरान ही आरोपी कंपनी के महू स्थित मुख्यालय का दौरा भी किया। इसकी वजह सामने नहीं आ सकी,ना ही अधिकारिकस्तर पर इसकी पुष्टि हुई।  

डॉ नागार्जुन ने आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा,उन्हें तो यह भी नहीं पता कि पाथ कंपनी का मुख्यालय महू में है। उन्होंने कहा कि प्रकरण की विधिवत सुनवाई के बाद ही जो तथ्य सामने आए,उसके आधार पर प्रकरण में फैसला दिया गया था। 

फैसले में कुछ भी गलत नहीं - कलेक्टर

हरदा कलेक्टर सिद्धार्थ जैन ने भी कहा कि फैसले में कुछ भी गलत नहीं है। प्रारंभिक जांच में तथ्यों के आधार पर संबंधित को नोटिस दिया गया। बाद में सुनवाई के दौरान उन्होंने जो साक्ष्य दिए,उनके आधार पर निर्णय हुआ। तत्कालीन अपर कलेक्टर प्रवीण फुलपगारे ने कहा कि नोटिस की प्रक्रिया व सुनवाई नियमानुसार ही हुई। फैसला क्या आया, इसकी उन्हें जानकारी नहीं।

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