हाईकोर्ट का हस्तक्षेप बना आम जनता की उम्मीद, बिना दस्तावेजों की जांच के नहीं टूटेगा गढ़ा मार्केट

हाईकोर्ट ने प्रशासन को फटकार लगाते हुए बड़ा आदेश दिया है कि अब जब तक दस्तावेजों की जांच नहीं होती और लोगों को सुना नहीं जाता, तब तक कोई भी निर्माण नहीं तोड़ा जाएगा।

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Neel Tiwari
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Photograph: (the sootr)

जबलपुर शहर में आनंदकुंज से लेकर पंडा की मढ़िया तक सड़क को चौड़ा करने के नाम पर प्रशासन द्वारा तोड़फोड़ की जा रही है। इसी को लेकर स्थानीय नागरिकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं की शिकायत थी कि उनके मकान और दुकानों को प्रशासन ने चिन्हित कर तोड़ने का नोटिस तक नहीं दिया, ना ही उन्हें अपनी बात रखने का मौका दिया गया। इस मामले में हाईकोर्ट ने प्रशासन को फटकार लगाते हुए बड़ा आदेश दिया है कि अब जब तक दस्तावेजों की जांच नहीं होती और लोगों को सुना नहीं जाता, तब तक कोई भी निर्माण नहीं तोड़ा जाएगा।

बिना चेतावनी घरों और दुकानों पर लगा दिए तोड़फोड़ के निशान

इस इलाके में रहने वाले कई नागरिकों ने बताया कि वे कई सालों से वहां रह रहे हैं और उनकी संपत्तियों के पूरे कागजात मौजूद हैं। लेकिन अचानक नगर निगम और प्रशासन की टीम आई और मकानों पर लाल निशान लगाकर चले गए। न तो कोई आधिकारिक नोटिस दिया गया और न ही सुनवाई का कोई मौका। लोगों को डर है कि कभी भी उनके घर या दुकान पर बुलडोजर चल सकता है। इसी डर के कारण क्षेत्र के नागरिक महेंद्र कुमार कोष्टा ने हाईकोर्ट की शरण ली।

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सरकारी जमीन पर ही हो रहा है चौड़ीकरण - राज्य सरकार

मामले में जब कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा तो डिप्टी एडवोकेट जनरल श्री स्वप्निल गांगुली ने बताया कि आनंदकुंज से पांडा की मढ़िया तक सड़क को चौड़ा करने की योजना पहले से बनी हुई है। यह योजना अक्टूबर 2024 में मंजूरी के बाद शुरू की गई थी। उन्होंने कहा कि यह चौड़ीकरण सिर्फ सरकारी जमीन, यानी नज़ूल विभाग की जमीन पर किया जा रहा है, किसी की निजी संपत्ति पर नहीं। उन्होंने यह भी बताया कि सड़क को 60 फीट चौड़ा करने की योजना थी, लेकिन फिलहाल सिर्फ 53 फीट तक ही चौड़ी की जा रही है।

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सरकार ने ना मांगे दस्तावेज, ना ही दिया सुनवाई का मौका

हाईकोर्ट में सरकार की ओर से यह बात भी मानी गई कि जिन लोगों के मकान या दुकानें इस अभियान में आ रही हैं, उनसे पहले कोई दस्तावेज नहीं मांगे गए। इसके अलावा, यह भी स्वीकार किया गया कि लोगों को सुनवाई का मौका नहीं दिया गया था। यानी प्रशासन ने यह मान लिया कि कुछ गलतियां हुई हैं, और उन्हें सुधारा जाना चाहिए।

समिति बनाओ, दस्तावेज देखो, फिर करो फैसला - HC 

हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले में न्यायपूर्ण रास्ता निकालते हुए आदेश दिया है कि एक संयुक्त समिति बनाई जाए जिसमें एक राजस्व विभाग का अधिकारी (एसडीओ) और एक लोक निर्माण विभाग (PWD) का अधिकारी शामिल हो। यह समिति तीन दिनों के भीतर बनाई जानी चाहिए। यह समिति उन सभी लोगों को बुलाएगी जिनकी संपत्तियों पर निशान लगे हैं और उनके दस्तावेजों की जांच करेगी।

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नागरिकों को अब मिलेगा अपनी बात कहने का मौका

हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि सभी याचिकाकर्ता यानी महेंद्र कुमार कोष्टा सोमवार,16 जून 2025 को इस समिति के सामने अपने घर, दुकान या संपत्ति के दस्तावेज पेश कर सकते हैं। समिति उनकी बात सुनेगी और सात दिनों के भीतर यह तय करेगी कि उनकी संपत्ति वैध है या अतिक्रमण की श्रेणी में आती है।

समिति की रिपोर्ट आने तक पूरे क्षेत्र में तोड़फोड़ पर रोक

हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि जब तक यह समिति अपनी जांच पूरी नहीं कर लेती और लोगों के दस्तावेजों पर उचित निर्णय नहीं ले लेती, तब तक कोई भी मकान, दुकान या दीवार नहीं तोड़ी जाएगी। यानी अब प्रशासन सीधे बुलडोजर नहीं चला सकता इसके पहले उसे कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी होगी।

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जनता को मिलेगा न्याय और सरकार को मिली जिम्मेदारी

हाईकोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि इस आदेश से यह न समझा जाए कि कोर्ट ने किसी के पक्ष में अंतिम निर्णय दे दिया है। कोर्ट ने सिर्फ इतना कहा है कि प्रशासन को कानून के अनुसार काम करना चाहिए और नागरिकों को उनका पूरा हक मिलना चाहिए। यह फैसला एक उदाहरण है कि कैसे न्यायपालिका आम जनता के हक में आवाज़ उठाती है, और बिना पक्षपात के विकास और अधिकारों के बीच संतुलन बनाती है।

न्यायपालिका PWD लोक निर्माण विभाग जबलपुर हाईकोर्ट