मध्यप्रदेश में चिकित्सा सेवाओं की वास्तविक हालत किसी दस्तावेज से नहीं, बल्कि अदालतों में दाखिल जनहित याचिकाओं से साफ झलकती है। अनूपपुर जिले के आदिवासी बहुल राजनगर क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली ने हाईकोर्ट की चिंता बढ़ा दी है।
यहां का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र महज ‘नाम का केंद्र’ बन कर रह गया है। जहां करीब 50 हजार की आबादी के लिए सिर्फ एक डॉक्टर पदस्थ है, और वह भी हफ्ते में मात्र दो घंटे उपलब्ध होता है।
बदहाल व्यवस्था फिर भी 'स्वास्थ्य केंद्र' संचालित
साल 2023 से संचालित हो रहे इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक मरीजों का पहुंचना अपने आप में एक चुनौती है, क्योंकि यहां तक पहुंचने के लिए कोई पक्की सड़क ही नहीं बनी है। कच्चे रास्ते के कारण गंभीर मरीजों के लिए यह सफर किसी संघर्ष से कम नहीं।
यहां की बदहाल स्थिति को लेकर समाजसेवी विकास प्रताप सिंह ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की, जिसमें क्षेत्र की उपेक्षा और चिकित्सा की सीमित पहुंच को उजागर किया गया।
ये खबर भी पढ़ें...
पुलिस में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल: राजधानी के 27 थाना प्रभारियों का तबादला
दिखावे के लिए एक डॉक्टर, न सुविधा न इलाज
इस मामले की सुनवाई एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ गोंटिया ने कोर्ट को बताया कि यह इलाका जंगलों से घिरा है और यहां सर्पदंश व अन्य जहरीले जीवों के काटने की घटनाएं आम हैं। इसके बावजूद शासन की लापरवाही ऐसी है कि केंद्र पर सालभर से कोई स्थायी चिकित्सीय स्टाफ मौजूद नहीं।
जब शासन की ओर से अदालत में तर्क दिया गया कि डॉक्टर और नर्स की तैनाती कर दी गई है, तो अधिवक्ता ने खुलासा किया कि डॉक्टर महोदय सप्ताह में केवल दो दिन एक-एक घंटे के लिए आते हैं यानी यह कुल दो घंटे की साप्ताहिक सेवा देते हैं।
"जवाब नहीं, समाधान चाहिए": HC ने जताई नाराजगी
इस खुलासे पर हाईकोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया दी। कोर्ट ने सरकार के अधिवक्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि अब जवाब नहीं, समाधान चाहिए। कोर्ट ने साफ कहा की ऐसे मामलों मैं सरकार को खुद अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि नागरिकों की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
ये खबर भी पढ़ें...
जबलपुर के फार्मेसी कॉलेज में शिक्षकों की शर्मनाक हरकत, वायरल हुआ वीडियो, दोनों टीचर सस्पेंड
एम्बुलेंस की हकीकत पर भी सवाल
सरकारी पक्ष ने यह कहते हुए अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश की कि क्षेत्र में 108 एंबुलेंस सेवा मौजूद है। इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि बताइए, यह एंबुलेंस बड़ी चिकित्सा सुविधा तक मरीज को कितनी देर में पहुंचा पाती है? अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि "अभी फोन लगाइए और देखिए कितने मिनट में एंबुलेंस पहुंचती है।"
ये खबर भी पढ़ें...
हेल्थ अफसर ने 75 लाख की घूस से बनाया मंदिर,रावतपुरा कॉलेज में डॉ मंजप्पा से डील
कलेक्टर-CMO से 10 जुलाई तक मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अनूपपुर के कलेक्टर और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) को नोटिस जारी किया है और निर्देश दिए हैं कि वे 10 जुलाई को अगली सुनवाई के दौरान यह जानकारी पेश करें-
- केंद्र में वर्तमान में कितने डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ पदस्थ हैं
- केंद्र की चिकित्सा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए गए हैं
- वहां तक पक्की सड़क बनाने की क्या योजना है और अब तक क्या प्रगति हुई है
ये खबर भी पढ़ें...
अब मध्यप्रदेश में बनेगी तीन गुना अफीम, देश में 90 हजार से बढ़कर ढाई लाख हो जाएंगे किसान
कोर्ट की फटकार से जागेगा प्रशासन
हाईकोर्ट की सख्ती के बाद उम्मीद की जा रही है कि अनूपपुर प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस मामले को प्राथमिकता में रखकर कार्यवाही करेगा। आदिवासी बहुल इलाके के लोगों को भी अब उम्मीद है कि शायद न्यायालय की सख्ती के बाद उन्हें भी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा और सड़क जैसी प्राथमिक जरूरतें मिल सकेंगी।
10 जुलाई को होने वाली इस मामले की अगली सुनवाई में अब यदि सरकार की ओर से किसी पुख्ता प्लान के साथ जवाब पेश नहीं किया जाता तो हाई कोर्ट से और भी सख्त आदेश आ सकता है।
thesootr links
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃🤝💬👩👦👨👩👧👧