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BHOPAL. सरकार और विभिन्न समाजों के बीच सेतु के रूप में गठित कल्याण बोर्ड आखिर भंग कर दिए गए हैं। दो साल पहले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गठित ये 13 बोर्ड समाज कल्याण के लक्ष्य से कोसों दूर ही रह गए। सरकार ने इनकी सुध ही नहीं ली नतीजा न तो विभागों ने इन्हें बजट दिया, न बोर्ड के प्रस्तावों को तवज्जों दी गई।
इतना ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा गठित समाज कल्याण बोर्ड सदस्यों की नियुक्तियां तक नहीं कर सके। अधिकार संपन्न न होने से ये बोर्ड समाजों को कोई लाभ तक नहीं दिला पाए। अब सीएम डॉ.मोहन यादव की सरकार ने ऐसे 13 समाज कल्याण बोर्ड भंग कर दिए हैं।
सरकार के इस निर्णय को प्रबुद्धजन समाजों के साथ छलावा मान रहे हैं। वहीं बीजेपी में सक्रिय नेता भी सरकार के निर्णय के बाद निरुत्तर हैं। कई ने इस मामले पर चुप्पी साध ली है तो कुछ इस निर्णय से समाज में नाराजगी होने की बात कह रहे हैं। वहीं ओबीसी आरक्षण को लेकर नाराज पिछड़ा वगे में शामिल जातियों के प्रतिनिधि इस निर्णय को पिछड़ी जातियों से पक्षपात मान रही हैं।
समाज नहीं नेताओं को उपकृत करने का खेल
सरकार और समाजों के समन्वय के लिए साल 2023 में 14 समाज कल्याण बोर्ड गठित किए गए थे। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गठित इन कल्याण बोर्ड में से सीएम डॉ.मोहन यादव की सरकार ने 13 को भंग कर दिया है। हालांकि इनमें से ज्यादातर कल्याण बोर्ड अपने दो साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं।
तीन दिन पहले 17 सितम्बर को इसके संबंध में सरकार द्वारा अधिसूचना भी जारी गई थी। इससे पहले फरवरी माह में सरकार ने प्रदेश के अन्य निगम मंडल, आयोग भंग कर दिए थे। अब सरकार द्वारा इन कल्याण बोर्ड को भंग करने से समाजों में नाराजगी बढ़ रही है।
समाज के प्रतिनिधियों का मानना है इन बोर्ड को जिस उद्देश्य के लिए बनाया गया था वह पूरे ही नहीं हुए। बोर्ड के पास अधिकार ही नहीं थे। सरकार को पहले इन्हें अधिकार और सुविधाएं देनी थीं। अब लग रहा है बोर्ड का गठन समाज के कल्याण के लिए नहीं बल्कि चंद नेताओं को उपकृत करने के लिए किया गया था।
OBC आरक्षण के बाद बोर्ड भंग होने की नाराजी
मध्य प्रदेश सरकार ने जो 13 समाज कल्याण बोर्ड भंग किए हैं हैं उनमें जाट समाज का वीर तेजाजी कल्याण बोर्ड, विश्वकर्मा कल्याण बोर्ड, तेल घानी बोर्ड, स्वर्णकला बोर्ड, जय मीनेष कल्याण बोर्ड, कीर समाज का मां पूरीबाई कीर कल्याण बोर्ड, रजक समाज कल्याण बोर्ड, पाल समाज का मां अहिल्यादेवी कल्याण बोर्ड, गुर्जर समाज का देवनारायण बोर्ड, कुशवाहा समाज का कुश कल्याण बोर्ड, मांझी-कहार समाज का मछुआ समाज कल्याण बोर्ड, प्रजापति समाज का माटी कला बोर्ड भी शामिल है। जबकि परशुराम कल्या बोर्ड को फिलहाल भंग नहीं किया गया है।
जो कल्याण बोर्ड भंग किए गए हैं वे जातियां पिछड़ा वर्ग में समाहित हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार ओबीसी आरक्षण के बाद फिर पिछड़ा वर्ग से पक्षपात को लेकर निशाने पर आ गई है। ओबीसी आरक्षण को लेकर कोर्ट में लगातार केस लड़ रहे वकील वरुण ठाकुर का कहना है केवल ओबीसी से जुड़े बोर्ड भंग कर सरकार ने इस वर्ग के प्रति पक्षपात को उजागर कर दिया है।
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बजट मिला न कर्मचारी, कमरे में सिमटे बोर्ड
सरकार ने जिन समाज कल्याण बोर्ड को भंग किया है अब उनके अध्यक्ष और समाज के प्रबुद्धजन भी नाराज नजर आ रहे हैं। हांलाकि बीजेपी के अनुशासन से बंधे होने से कोई भी खुलकर सामने नहीं आया है लेकिन अंदरखाने में वे अपनी नाराजगी जता रहे हैं। बोर्ड के अध्यक्षों ने सीएम डॉ.मोहन यादव को इस संबंध में पत्र जरूर भेजे हैं।
तेलघानी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष रविकरण साहू का कहना है मध्यप्रदेश में तैलिक-साहू समाज को बोर्ड से काफी उम्मीदें थीं। बोर्ड ने समाज के कल्याण के लिए कई कार्यक्रम चलाने के प्रस्ताव तैयार किए थे और इसके लिए सरकार से बजट भी मांगा था। हांलाकि बोर्ड को उनके अलावा एक सदस्य ही मिला और वे अपने उद्देश्य में आगे नहीं बढ़ पाए।
वहीं देवनारायण कल्याण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष रघुवीर पटेल गुर्जर ने भी गठन के बाद बोर्ड को अधिकार न मिलने का मलाल जताया है। उन्होंने बताया कि बोर्ड को भोपाल में एक ऑफिस मिला था लेकिन न तो सदस्यों की नियुक्ति हो पाई न ही विभाग ने उन्हें कर्मचारी दिए। अपने स्तर पर वे जो कुछ कर सकते थे समाज के लिए किया लेकिन बिना सुविधाओं के कुछ खास नहीं हो पाया।
विश्वकर्मा कल्याण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रेमनारायण विश्वकर्मा ने कहा बोर्ड का गठन और उसे भंग करना सरकार का निर्णय है। वे प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं और समाज के लिए आगे भी काम करते रहेंगे। हां सरकार अधिकार संपन्न बनाती तो बोर्ड समाजहित में व्यापक काम कर सकते थे।
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अधिकार के बिना बोर्ड दो साल रहे प्रभावहीन
साल 2023 में बीजेपी सरकार ने समाज में गहरी पैठ रखने वाले सक्रिय नेताओं को अपनी- अपनी जातियों के कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था। जाट समाज में सक्रिय लक्ष्मीनारायण (पप्पू) गौरा को वीर तेजाजी कल्याण बोर्ड, प्रेमनारायण विश्वकर्मा को विश्वकर्मा कल्याण बोर्ड और तैलिक- साहू समाज के तेल घानी बोर्ड की जिम्मेदारी रविकरण साहू को दी गई थी। वहीं स्वर्णकार-सोनी समाज के स्वर्णकला बोर्ड का अध्यक्ष दुर्गेश सोनी को, मीना समाज के आराध्य भगवान मीनेष के नाम पर गठित जय मीनेष कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष लालाराम मीना को, कीर समाज के लिए मां पूरीबाई कीर कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष गयाप्रसाद कीर, रजक कल्याण बोर्ड अध्यक्ष महेश ढालिया, पाल समाज के मां अहिल्यादेवी कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष डॉ.राजेन्द्र सिंह पाल, गुर्जर समाज के देवनारायण बोर्ड की जिम्मेदारी अध्यक्ष के रूप में रघुवीर पटेल गुर्जर को सौंपी गई थी।
इसके अलावा मांझी- कहार समाज के मछुआ कल्याण बोर्ड में सीताराम बाथम, प्रजापति समाज के माटीकला बोर्ड में आरडी प्रजापति और कुशवाहा समाज के कुश कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष नारायण सिंह कुशवाहा को बनाया गया था। समाज में सक्रिय इन नेताओं को दो साल से केबिनेट मंत्री का दर्जा तो मिला है लेकिन उनके पास न तो सदस्य हैं और न कर्मचारी। सरकार से बजट भी नहीं मिला इस वजह से वे समाज कल्याण के लिए खास पहल नहीं कर सके।
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सरकार और विभाग स्तर पर रही बेरुखी
17 सितम्बर को समाज कल्याण बोर्ड भंग करने के आदेश से सामाजिक संगठनों में नाराजगी है। पिछड़ा वर्ग में सक्रिय रामविश्वास कुशवाहा का कहना है बीजेपी ने समाजों को अपनी ओर लाने के लिए बोर्ड बनाए थे। बोर्ड में सामाजिक लोगों को अध्यक्ष- सदस्य बनाना था लेकिन यहीं से राजनीति शुरू हो गई।
ये बोर्ड केवल चुनावी राजनीति का हिस्सा बनकर ही रह गए थे। दो साल में इनमें से एक भी बोर्ड अपनी जाति या समाज के कल्याण का एक भी काम नहीं कर सका। सरकार ने भी 24 महीनों के लिए केबिनेट मंत्री का दर्जा देकर जिन्हें अध्यक्ष बनाया उनकी उपयोगिता नहीं समझी।
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बिना काम अध्यक्ष की सुविधा पर किया खर्च
मांझी- कहार समाज संगठन के हरेन्द्र केवट का कहना है पूर्व मुख्यमंत्री ने केवल कुछ लोगों को उपकृत करने बोर्ड बनाए थे। उनकी विदाई के बाद सरकार दो साल तक इन 13 बोर्ड के अध्यक्षों पर खर्च करती रही। उन्हें वाहन उपलब्ध कराए गए। उनके लिए भोपाल में ऑफिस दिया गया।
जब समाज के लिए किसी गतिविधि को स्वीकृति देनी ही नहीं थी तो दो साल इन नेताओं पर खर्च क्यों किया गया। यदि उद्देश्य समाज- पिछड़ी जातियों का कल्याण करना था तो बोर्ड भंग करने की जगह उन्हें अधिकार और बजट देकर मजबूत करना चाहिए।
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