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हाईकोर्ट में सरकारी वकील की नियुक्तियां एक बार फिर सवालों के घेरे में है। हाईकोर्ट इंदौर के जस्टिस डीवी रमना ने एक अवमानना केस की सुनवाई के दौरान एक सरकारी वकील को लेकर तीखी टिप्पणी की और उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़े किए। मामला भी प्रमुख सचिव रश्मि अरुण शमी की अवमानना से जुड़ा हुआ था।
यह है अवमानना का केस
जस्टिस डीवी रमना के कोर्ट में माधुरी प्रजापति के विरुद्ध पीएस रश्मि शमी, आयुक्त ट्राइबल वेलफेयर संजीव सिंह व अन्य के खिलाफ अवमानना केस की सुनवाई हुई। इसमें दोनों अधिकारियों के खिलाफ 21 अक्टूबर को कोर्ट ने जमानती वारंट जारी करते हुए पेश होने के लिए कहा था। हालांकि, यह दोनों पेश नहीं हुए। इस पर जस्टिस ने सरकारी वकील से उनके आवेदन, शपथपत्र की जानकारी मांगी।
यहां हुई गडबड़, फिर जस्टिस यह बोले
सरकारी वकील ने इन अधिकारियों के पेश नहीं होने पर बताया कि कोर्ट के आर्डर को पूरा कर दिया गया है। इसे लेकर जब शपथपत्र, उपस्थित नहीं होने का आवेदन यह सब मांगा गया तो वह पेश नहीं कर पाए। इस पर जस्टिस बोले जो आप बोल रहे हैं, वह इस दस्तावेज में कहां पर है, जिस शिकायत पर आप बात कर रहे हैं वह कहां पर है पढ़िए उसे। जब वह नहीं मिला तो जस्टिस ने कहा कि सरकारी वकील को एकदम एक्यूरेट होना चाहिए, आप किस तरह के सरकारी वकील हैं। माफी मांगने की याचिका कहां पर है, आप किस तरह के सरकारी वकील हैं।
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एजी सक्षम वकील नियुक्त करें
इस पर सरकारी वकील ने कहा कि मुझे पहले यह केस अधिकृत नहीं था, अभी हुआ है। इस पर जस्टिस ने कहा कि कोर्ट के धैर्य की परीक्षा नहीं लें आप। एजी को ज्यूडिशियल ऑर्डर करें कि वह सक्षम वकील नियुक्त किया करें। आप खुद से सवाल पूछिए कि आप क्या सही कर रहे हैं, आपको कोई सलाह नहीं देगा।
जमानती वारंट के बाद पूरा किया आदेश
याचिकाकर्ता माधुरी प्रजापति मिडिल स्कूल में टीचर हैं, उसे नियुक्त के बाद यह कहकर निकाल दिया कि योग्यता आपकी उपयुक्त नहीं हैं, क्योंकि बाद में योग्यता के नियम बदले गए। इस पर वह हाईकोर्ट गई और अदालत ने प्रजापति के पक्ष में फैसला दिया। लेकिन इसके बाद भी स्कूल शिक्षा विभाग ने नौकरी नहीं दी। इस पर उन्होंने अवमानना याचिका लगाई। इस पर 21 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने पीएस और आयुक्त दोनों के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर दिए। इसके बाद ही प्रजापति पर हाईकोर्ट के आदेश का पालन हुआ और उन्हें वेतन रुका हुआ 10 लाख जारी भी कर दिया गया। इसी की रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश होना थी जो सरकारी अधिवक्ता सही से पेश नहीं कर सके। हालांकि, हाईकोर्ट ने बाद में अवमानना याचिका को निराकृत कर दिया और इसमें अधिकारी और सरकारी अधिवक्ता दोनों के खिलाफ कोई विपरीत बात नहीं लिखी गई।
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सौ से ज्यादा सरकारी वकील हैं नियुक्त
मप्र में इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में हाईकोर्ट के लिए सौ से ज्यादा सरकारी वकील नियुक्त हैं। इसमें पैनल वकील के साथ ही सरकारी वकील, डिप्टी एडवोकेट और एडिशनल एडवोकेट जनरल होते हैं। सरकारी वकील को सवा लाख रुपए, डिप्टी को डेढ़ लाख और एडिशनल एडवोकेट जनरल को 1.75 लाख रुपए प्रति माह वेतन मिलता है। इनकी नियुक्ति विधि विभाग से होती है। कम से कम सात साल के सनद वाले वकील को ही शासकीय अधिवक्ता पैनल में लिया जाता है।
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