हाईकोर्ट ने MPPSC की राज्य सेवा परीक्षा 2025 की मेन्स का शेड्यूल मांगा, यह भी कहा- मेन्स पर स्टे नहीं

मप्र लोक सेवा आयोग की राज्य सेवा परीक्षा 2025 को लेकर दो याचिकाओं पर सोमवार, 21 जुलाई को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस सुनवाई में क्या-क्या हुआ... इस खबर में हम आपको बताने जा रहे हैं।

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Sanjay Gupta
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मप्र लोक सेवा आयोग की राज्य सेवा परीक्षा 2025 को लेकर दो याचिकाओं 9253 और 11444/2025 पर लंबे समय बाद सोमवार 21 जुलाई को जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच में यह केस लगा। अगली सुनवाई 5 अगस्त को रखी गई है।

पहले हाईकोर्ट ने कहा स्टे कहां है मेन्स पर

सुनवाई के दौरान परीक्षा नियम 2015 को लेकर शासन की ओर से जवाब दिया गया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो आदेश हैं, हमारा जवाब बन गया है और इसे पेश कर रहे हैं। इस पर हाईकोर्ट ने जवाब पेश करने के लिए दो दिन का समय दिया। फिर शासन और आयोग की ओर से मेन्स 2025 पर लगे स्टे हटाने की मांग की।

इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि इस पर स्टे कहां है, दो अप्रैल 2025 को प्रोसेस को रोका था जब आयोग द्वारा प्री का डिटेल रिजल्ट पेश नहीं किया गया था कैटेगरी वाइज। लेकिन फिर इसे 15 अप्रैल को पेश कर दिया गया। इसके बाद फिर स्टे कहां है अगली प्रोसेस मेन्स पर। फिर स्टे हटाने की बात कहां से आई।

इस पर शासन ने कहा कि दो अप्रैल के आदेश में नीचे दो लाइन लिखी हुई थी कि अगली प्रोसेस बिना कोर्ट की मंजूरी के नहीं होगी। इसलिए कोर्ट की मंजूरी की जरूरत है, ताकि मेन्स कर सकें। यह नौ जून को होना थी फिर तभी से इसे टाल दिया गया था।

आयोग से कहा पहले मेन्स का शेड्यूल दो और आवेदन लगाओ

इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि मेन्स का शेड्यूल बनाकर पेश कीजिए और साथ ही इसके लिए एक आवेदन लगा दीजिए। इस पर हम कंसीडर करेंगे। इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से आपत्ति ली गई कि इसमें रिजल्ट को लेकर ही आपत्ति है, ऐसे में याचिका के निराकरण तक अगली प्रक्रिया नहीं होना चाहिए।

इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि पहले आवेदन लगने दीजिए, इस पर सुनेंगे। मूल याचिका पर सुनवाई के लिए हाईकोर्ट ने दो सप्ताह तारीख की बात कही लेकिन मेन्स के शेड्यूल और मंजूरी के लिए आवेदन पर कहा कि यह लगाइए और मेंशन लीजिए, हम कंसीडर करेंगे। ऐसे में संभव है कि इस पर इसके पहले सुनवाई हो जाए।

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यह भी हुई बहस

इस मामले में याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता द्वारा कहा गया कि परीक्षा नियम 2015 को चैलेंज किया गया है। इसमें पहले कन्फ्यूजन हुआ कि यह भी केस ओबीसी के 14 और 27 फीसदी आरक्षण से लिंक है। इस पर शासन और याचिकाकर्ता दोनों ने साफ किया कि यह केवल परीक्षा नियम 2015 को लेकर ही है। शासन की ओर से कहा गया कि इनकी दो आपत्ति थी कि प्री के रिजल्ट में मेरिटोरियस को चयन नहीं किया गया और इन्हें मेरिट क्रम में अनारक्षित कैटेगरी में शिफ्ट नहीं किया गया है। जबकि हमने 15 अप्रैल को डिटेल जवाब में बता दिया कि यह सही नहीं है और आयोग ने मेरिट में उच्च स्तर पर आने वालों को आरक्षित से अनारक्षित कैटेगरी में रखा गया है और इस तरह के 690 उम्मीदवार हैं। यह आरोप गलत है। सभी पक्षों को सुनने के बाद इसमें दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए कहा गया।

राज्य सेवा 2025 में इतने आरक्षित से अनारक्षित में गए

मप्र लोक सेवा आयोग द्वारा जो हाईकोर्ट में कैटेगरी वाइज कटऑफ प्री 2025 का बताया है इसमें साथ ही यह बताया कि अनारक्षित में जो 1140 कुल उम्मीदवार चुने गए हैं। इसमें मेरिट के आधार पर एससी के 42, एसटी के 5, ओबीसी के 381 और ईडब्ल्यूएस के 262 उम्मीदवार शामिल हैं। यानी अनारक्षित में 1140 उम्मीदवार में से 690 विविध आरक्षित कैटेगरी के हैं और जनरल कैटेगरी के केवल 450 उम्मीदवार ही हैं।

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यह है परीक्षा नियम 2015 का विवाद

यह नियम साल 2000 से ही चल रहा है। इसमें है कि यदि आरक्षित कैटेगरी वालों ने प्री के अंक, आयु सीमा जैसी छूट ली है तो फिर उन्हें अंतिम रिजल्ट में भी उसी कैटेगरी में रखा जाएगा और अनारक्षित में शिफ्ट नहीं करेंगे। इसी नियम को इस याचिका में चुनौती दी गई है। इनका कहना है कि मेरिट के आधार उम्मीदवार को आरक्षित से अनारक्षित में शिफ्ट करना चाहिए।

द सूत्र ने बताया था सुप्रीम कोर्ट दे चुका फैसला

इस मुद्दे पर कुछ दिन द सूत्र ने विस्तृत रिपोर्ट पेश करते हुए बताया था कि सुप्रीम कोर्ट में भी यह मुद्दा उठ चुका है और वहां से इस नियम को मंजूर किया गया है। द सूत्र ने टीना डाबी सहित अन्य केस का उदाहरण दिया था। इसी आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) भोपाल ने भी यही रिपोर्ट बनाई और सुप्रीम कोर्ट के फैसले हाईकोर्ट में रख रहे हैं। परीक्षा नियम आज का नहीं साल 2000 से है

मप्र राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 आज से नहीं दरअसल नवंबर 2000 में तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह की सरकार के समय यह नियम बना कि आरक्षित वर्ग को कई तरह की छूट दी जाती है (शुल्क व व्यय के अतिरिक्त उम्र की छूट, पास होने के कटऑफ की छूट आदि), ऐसे में यदि एक आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार उम्र या कटऑफ जैसी छूट भी लेता है (परीक्षा शुल्क व व्यय को छूट नहीं माना गया) तो फिर उसे मेरिट में अंकों के आधार पर अनारक्षित में नहीं जाना चाहिए। उसी वर्ग में रहना चाहिए। इसी नियम के आधार पर हमेशा भर्ती चली आ रही है।

टीना डाबी सहित कई अन्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई है मुहर

टीना डाबी ने यूपीएससी 2015 में टॉप किया, लेकिन उन्हें इसके बाद भी एससी कैटेगरी की सीट मिली अनारक्षित में नहीं शिफ्ट किया गया। इसका कारण है कि प्री 2015 के लिए अनारक्षित का कटऑफ 107 था और एससी के लिए 94, टीना डाबी को प्री में 96.66 फीसदी अंक मिले और वह एससी कैटेगरी के कटऑफ अंक छूट के साथ ही मेन्स के लिए पास हुई। हालांकि वह मेन्स में सबसे ज्यादा अंक हासिल कर टॉपर बनी, उनके मेन्स में कुल 2025 अंक में से 1063 आए और वह टॉपर बनी। लेकिन एससी कैटेगरी के तहत प्री में कटऑफ छूट लेने के कारण वह अनारक्षित में शिफ्ट नहीं हुई और उन्हें अपना होम टाउन भी नहीं मिला था। वह राजस्थान कैडर की आईएएस हुई।

इसी तरह दीपी विरुद्ध भारत सरकार का भी केस है, उन्होंने भी ओबीसी से अनारक्षित में जाने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि उन्होंने ओबीसी छूट का लाभ लिया है तो वह अनारक्षित में नहीं जा सकती।

जितेंद्र सिंह विरुद्ध भारत सरकार केस में भी यही बात उठी और साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में भी यही कहा कि यदि आरक्षित वर्ग की कोई छूट ली तो फिर अनारक्षित में शिफ्ट नहीं कर सकते हैं।

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डीओपीटी ने भी बना रखा है नियम

केंद्र के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग का भी यह नियम है कि एसटी, एससी, ओबीसी आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार यदि परीक्षा में किसी तरह की छूट कैटेगरी की लेते हैं, तो उन्हें अनारक्षित में शिफ्ट नहीं किया जाएगा। यही केंद्र का नियम मप्र सरकार ने भी लिया है।

इस तरह की छूट मिलती है

केंद्र की छूट की बात करें तो अनारक्षित कैटेगरी में परीक्षा देने के अवसर कम हैं। वहीं कैटेगरी में कितने बार भी दे सकते हैं। इसी तरह प्री कटऑफ अंक, उम्रसीमा की छूट, योग्यता व अन्य छूट भी रहती है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है जब कोई छूट ली तो फिर उसी कैटेगरी में ही रहेंगे, क्योंकि इसी कैटेगरी में रहकर मेन्स दी, इंटरव्यू दिया और अंत में सफलता पाई।

हाईकोर्ट जबलपुर में नियम 2015 खत्म करने की मांग

वहीं हाईकोर्ट में लगी याचिका में परीक्षा नियम 2015 को ही चुनौती दी गई है और इसे खारिज करने की मांग उठी है। साथ ही नवंबर 2000 के गजट नोटिफिकेशन को भी खारिज करने की मांग इसमें की गई है। यही नहीं राज्य सेवा परीक्षा 2025 के लिए जारी नोटिफिकेशन जिसमें इस नियम 2015 का हवाला है उसे ही रद्द करने की मांग की गई है।

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