सहायक प्राध्यापक के दिव्यांग सर्टिफिकेट के सत्यापन में 6 साल से उलझा उच्च शिक्षा विभाग

उच्च शिक्षा विभाग की लापरवाही का ढर्रा सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा है। अधिकारियों की लापरवाही कॉलेजों से मुख्यालय स्तर तक छाई है। 2019 में सहायक प्राध्यापक भर्ती में फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के सहारे नियुक्ति का मामला एक बार फिर चर्चा में है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग की लापरवाही का ढर्रा सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा है। अधिकारियों की यह लापरवाही कॉलेजों से लेकर मुख्यालय स्तर तक छाई हुई है।

साल 2019 में सहायक प्राध्यापक भर्ती में फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के सहारे नियुक्ति हासिल करने का मामला एक बार फिर चर्चा में है। इस बार मामला उच्च शिक्षा विभाग के अवर सचिव के एक पत्र की वजह से उछला है। इस पत्र ने ही विभाग में फैली भर्राशाही और सुस्ती को उजागर कर दिया है। 

उच्च शिक्षा विभाग ने एमपीपीएससी की सहायक प्राध्यापक परीक्षा के परिणाम के आधार पर चयनित अभ्यर्थियों को साल 2019 में नियुक्ति दी थी। नियुक्ति के दो साल बाद ही दस्तावेजों के सत्यापन में लापरवाही बरतने की शिकायत विभाग तक पहुंचती थी। इसमें 19 अभ्यर्थियों के दिव्यांगता प्रमाण पत्रों पर संदेह जताया गया था।

यह शिकायत दो साल तक विभाग में घूमती रही। 19 अक्टूबर 2023 को संदेह के आधार पर सभी 19 सहायक प्राध्यापकों की शारीरिक अशक्तता का परीक्षण संभागीय मेडिकल बोर्ड द्वारा कराया गया था। संभागीय बोर्ड ने कुछ अभ्यर्थियों को पूर्व में जिला मेडिकल बोर्ड से जारी अशक्तता सर्टिफिकेट प्रमाणित नहीं किए। 

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पत्राचार से ही करते रहे टालमटोल

संभागीय मेडिकल बोर्ड के प्रतिवेदन के बाद पहुंची शिकायत पर भिंड कलेक्टर के आदेश पर जुलाई 2024 को शासकीय एमजेएस पीजी कॉलेज के सहायक प्राध्यापक की जांच कराई गई। इस रिपोर्ट में अशक्तता का प्रतिशत 40 प्रतिशत दर्ज किया गया था।

संभागीय और जिला मेडिकल बोर्ड की विरोधाभासी रिपोर्ट साल 2023 और 2024 में उच्च शिक्षा विभाग तक पहुंच चुकी थीं। विभाग की ओर से 7 नवम्बर 2024 को इन विरोधाभासी रिपोर्ट के आधार पर सहायक प्राध्यापक मोहित दुबे को नोटिस भी जारी किया गया जिसके उत्तर में दुबे ने 16 नवम्बर 2024 को जवाब भी विभाग को भेज दिया था। 

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विरोधाभासी रिपोर्ट दबाए रहे अफसर

अब विभागीय अधिकारियों की लापरवाही और सुस्ती की बात करते हैं। दरअसल 7 नवम्बर 2024 को जो नोटिस सहायक प्राध्यापक मोहित दुबे को भेजा गया था उसमें दोनों बोर्ड की विरोधाभासी रिपोर्ट का उल्लेख था। इसी को लेकर जवाब मांगा गया था।

मोहित दुबे का जवाब भी 9 दिन बाद ही विभाग तक पहुंच गया। इस पत्राचार के बाद विभाग ने पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। जुलाई 2024 को फाइल में बंद हो चुकी कार्रवाई की सुध साल भर बाद अचानक विभाग को आ गई है। विभाग के अवर सचिव की ओर से 27 अक्टूबर 2025 को फिर एक नोटिस मोहित दुबे को भेजा है। 

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संदेही के जवाब पर सालभर साधी चुप्पी 


उच्च शिक्षा विभाग ने अब एक बार फिर सहायक प्राध्यापक मोहित दुबे का मेडिकल बोर्ड से परीक्षण कराने की तैयारी कर ली है। नए सिरे से जो नोटिस भेजा गया है उसमें दुबे को राज्य मेडिकल बोर्ड भोपाल के समक्ष उपस्थित होने के निर्देश दिए गए हैं। नोटिस भेजकर जो निर्देश साल भर बाद विभाग ने जारी किए है दुबे द्वारा नवम्बर 2024 में भेजे गए जवाब में ही इसका उल्लेख किया था।

दुबे ने अपने जवाब में ही लिखा था कि संभागीय बोर्ड को उनके अशक्तता प्रमाण पत्र को निरस्त करने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार राज्य मेडिकल बोर्ड को है। विभाग ने उनका जवाब मिलने के तुरंत बाद ही राज्य बोर्ड से जांच क्यों नहीं कराई। अधिकारियों को अब साल भर बाद इसकी सुध क्यों आई है। 

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द सूत्र ने जताया था अशक्तता पर संदेह  


सहायक प्राध्यापक नियुक्ति में डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट के जरिए धांधली के मामले को द सूत्र ने जुलाई 2024 में प्रमुखता से खबरें प्रकाशित की थीं। इस मामले में उच्च शिक्षा विभाग, मेडिकल बोर्ड और कॉलेज स्तर पर अशक्तता प्रमाण पत्र फर्जीवाड़े और उसकी जांच के नाम पर की गई हेराफेरी को उजागर किया था। 

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