मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर ने एक अहम फैसले में कहा कि यदि किसी सरकारी नौकरी के विज्ञापन में योग्यता को लेकर अस्पष्टता या भ्रम की स्थिति हो तो इसका फायदा उम्मीदवार को मिलना चाहिए, न कि नियोक्ता को।
जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने कहा, यदि विज्ञापन में योग्यता को लेकर कोई अस्पष्टता है और इसके चलते उम्मीदवारों को साक्षात्कार (इंटरव्यू) में शामिल होने से रोका जाए तो यह उचित नहीं है। विज्ञापन में दी गई जानकारी स्पष्ट होनी चाहिए, ताकि किसी उम्मीदवार को अन्याय का सामना न करना पड़े।
क्या है मामला?
इस मामले में याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था, क्योंकि उन्हें एक पद के लिए इंटरव्यू में शामिल होने से रोक दिया गया। विज्ञापन के मुताबिक, असिस्टेंट इंजीनियर के पद के लिए 15 साल का अनुभव मांगा गया था, जिसमें से 10 साल का फील्ड का एक्सपीरियंस अनिवार्य था। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह इन सभी शर्तों को पूरा करता है। इसके बावजूद उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया नहीं गया। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि विज्ञापन में अस्पष्टता के चलते उनके मुवक्किल के साथ अन्याय हुआ।
उम्मीदवारों के लिए राहतभरा फैसला
मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी विज्ञापन को इतना स्पष्ट होना चाहिए कि उम्मीदवार को भ्रमित न करे। यदि योग्यता को लेकर अलग-अलग अर्थ निकलते हैं तो इसका फायदा हमेशा उम्मीदवार को मिलना चाहिए। हाईकोर्ट यह फैसला उन उम्मीदवारों के लिए राहतभरा होने के साथ नजीर बनेगा, जो नौकरी प्रक्रिया में विज्ञापन की अस्पष्टता का शिकार होते रहे हैं या हुए हैं।
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