आजादी के बाद पहली बार मोदी सरकार कराएगी जातिगत जनगणना, 10 पाइंट में समझिए पूरी कहानी

मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना का ऐलान किया है। आजाद भारत में यह पहली बार होगा, जब सभी जातियों की गिनती अधिकारिक रूप से की जाएगी। पिछली बार यह प्रयास 1931 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुआ था। 10 सवाल-जवाब में समझिए पूरी कहानी...

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Ravi Kant Dixit
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नई दिल्ली. देश एक बार फिर ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना का ऐलान किया है। आजाद भारत में यह पहली बार होगा, जब सभी जातियों की गिनती अधिकारिक रूप से की जाएगी। पिछली बार यह प्रयास 1931 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुआ था। उस वक्त भारत में कुल 4 हजार 147 जातियों की पहचान हुई थी। आंकड़ों में पता चला था कि तब देश की 52 फीसदी आबादी पिछड़े वर्ग (OBC) से ताल्लुक रखती थी।

1951 से अब तक भारत में केवल अनुसूचित जातियों (SC) और जनजातियों (ST) की गिनती होती रही है। ओबीसी सहित अन्य जातियों के आंकड़े कभी आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं हुए। 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना यानी SECC कराई जरूर, पर वह रिपोर्ट विवादों में घिर गई। फिर केंद्र सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। तब से अब तक देश जातीय आंकड़ों को लेकर कयासों पर चलता रहा है।

अब मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना को प्राथमिकता देने की मंशा जताई है। इसके पीछे तीन प्रमुख कारण माने जा रहे हैं...

1. नीतियों का सटीक निर्धारण: जब तक समाज की असली संरचना नहीं पता चलेगी, तब तक योजनाएं केवल अनुमान पर आधारित रहेंगी।

2. आरक्षण समीक्षा की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट की तय की गई 50 फीसदी आरक्षण सीमा को लेकर फिर बहस छिड़ेगी। क्या अब आंकड़ों के आधार पर इसे बदला जाएगा?

3. राजनीतिक दबाव और सामाजिक न्याय: बिहार, ओडिशा, कर्नाटक जैसे राज्यों में हाल ही में हुई जातिगत जनगणनाओं ने केंद्र पर नैतिक दबाव बनाया है।

10 सवाल-जवाब में समझिए पूरी कहानी

1. जाति आधारित जनगणना का उद्देश्य क्या है?

यह फैसला कई सवालों के साथ आता है, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह जनगणना किस प्रकार से और किस हद तक सामाजिक और आर्थिक योजनाओं पर प्रभाव डालेगी। केंद्र सरकार के इस कदम को उन राजनीतिक दलों का समर्थन मिला है, जो लंबे समय से जाति आधारित आंकड़े इकट्ठा करने की मांग कर रहे थे।

2. जातिगत जनगणना कब तक पूरी होगी?

पिछली जनगणना 2011 में हुई थी, लेकिन 2021 में होने वाली जनगणना कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दी गई थी। अब उम्मीद जताई जा रही है कि अगली जनगणना 2025 में शुरू होगी और इसे 2026 के अंत तक या 2027 की शुरुआत तक पूरा किया जा सकता है। 
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस निर्णय का समर्थन करते हुए कहा है कि जातिगत जनगणना के बाद हमें आरक्षण की सीमा पर भी दबाव बनाना होगा, ताकि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को हटाया जा सके।

3. जाति जनगणना की प्रक्रिया क्या होगी?

जनगणना के लिए सरकारी कर्मचारी यानी एन्यूमेरेटर विभिन्न क्षेत्रों में जाकर जानकारी जुटाएंगी। यह प्रोसेस दो चरणों में होगी। पहले हाउस लिस्टिंग और हाउस सेंसस होगी। यानी कि इस बीच कच्चे-पक्के घरों की गिनती की जाएगी। बुनियादी सुविधाओं जैसे बिजली, पानी, शौचालय, आदि के बारे में पूछा जाएगा। वहीं, पॉपुलेशन काउंटिंग में लोगों से उम्र, लिंग, वैवाहिक स्थिति, धर्म, SC/ST से संबंधित जानकारी जुटाई जाएगी। माना जा रहा है कि जातिगत जनगणना में अतिरिक्त कॉलम जोड़े जा सकते हैं, पर विशेष रूप से ओबीसी और अन्य जातियों का विवरण होगा।

4. क्या मुसलमानों की जाति भी शामिल होगी?

इस फैसले के बाद मुसलमानों के विभिन्न जातियों को भी शामिल किया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सरकार को विभिन्न जाति समूहों के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को समझने में मदद मिलेगी।

5. भारत में जाति आधारित जनगणना का इतिहास

भारत में पहली बार 1881 में ब्रिटिश शासन के दौरान जाति आधारित जनगणना शुरू हुई थी। यह प्रक्रिया 1931 तक जारी रही। उसके बाद, आजाद भारत में यह परंपरा बंद कर दी गई, हालांकि 1951 में केवल SC और ST की जनगणना की गई। तब से हर 10 साल में केवल SC और ST के आंकड़े ही जारी किए जाते हैं।

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Photograph: (the sootr)

 

6. जनगणना की मांग का राजनीतिक असर

विपक्षी दलों ने जातिगत जनगणना की मांग हमेशा की है। कांग्रेस, RJD, BSP जैसे दलों ने इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से भी उठाया है। हालांकि, सरकार का यह फैसला अब विपक्षी दलों के लिए एक कठिन स्थिति पैदा कर सकता है, क्योंकि भाजपा ने यह मुद्दा विपक्ष से छीन लिया है।

7. बिहार और कर्नाटक में जातिगत सर्वे का फर्क

हालांकि, कुछ राज्य जैसे बिहार और कर्नाटक में जातिगत सर्वे कराए गए हैं, लेकिन इन सर्वेक्षणों और राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली जनगणना के बीच बड़ा अंतर है। जातिगत सर्वे का दायरा सीमित होता है, जबकि जनगणना देशभर में होती है और इसमें अधिक विस्तृत आंकड़े इकट्ठा किए जाते हैं।

8. राजनीतिक रूप से असर?

जातिगत जनगणना के फैसले के बाद आरक्षण की सीमा को लेकर बहस तेज हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस फैसले के बाद यह सवाल उठ सकता है कि क्या आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाया जा सकता है। इससे भारतीय राजनीति में नया मोर्चा खुल सकता है। खासतौर पर आगामी चुनावों में इसका गहरा असर देखने को मिल सकता है।

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Photograph: (the sootr)

 

9. सरकार ने यह फैसला क्यों लिया?

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी सरकार ने यह फैसला चुनावी रणनीति के तहत लिया है। खासकर बिहार विधानसभा चुनाव और 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह निर्णय लिया गया है, ताकि ओबीसी वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित किया जा सके। इस फैसले से भाजपा को विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के वोटर को लुभाने का मौका मिलेगा, जो हाल के वर्षों में कांग्रेस से भाजपा की ओर शिफ्ट हुए हैं।

10. जातिगत जनगणना और आरक्षण

जातिगत जनगणना के बाद यह संभावना है कि आरक्षण की सीमा पर बहस तेज हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि जातिगत जनगणना के आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की मांग हो सकती है, जिससे समाज में नई राजनीति का जन्म हो सकता है। इस निर्णय के साथ, भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो सकता है, जो आने वाले चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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