अहिल्या चेंबर के अध्यक्ष बोले- धर्माचार्यों ने हिंदू समाज को बांटा

हिंदुओं के सबसे बड़े महापर्व दीपावली की तिथि को लेकर देश में जो मतभेद चल रहे हैं, वह निंदनीय है। आचार्यों, ज्योतिषाचार्यों, पंडितों और तथाकथित विद्वानों ने सनातन धर्म के सबसे बड़े त्यौहार को मनाने को लेकर हिंदू समाज को विभाजित कर दिया है।

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Sanjay gupta
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INDORE. इंदौर में मप्र के सबसे बड़े व्यापारिक संगठन अहिल्या चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इडस्ट्री ने तीखा बयान जारी किया है। इस संगठन के अध्यक्ष रमेश खंडेलवाल ने आचार्य, ज्योतिषाचार्यों, पंडितों व विद्वानों पर हिंदू समाज को बांटने जैसा गंभीर आरोप लगाया।

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यह बोले खंडेलवाल

पत्र में लिखा है कि- सबसे बडे महापर्व दीपावली की तिथि को लेकर देश में जो मतभेद चल रहे हैं, वह निंदनीय है। आचार्यों, ज्योतिषाचार्यों, पंडितों, और तथाकथित विद्वानों ने सनातन धर्म के सबसे बड़े त्यौहार को मनाने को लेकर हिंदू समाज को विभाजित कर दिया है। तिथि का निर्धारण अलग-अलग ढंग से करने व एकमत नहीं होना हिंदू धर्म के लिए चिंता की बात है। जो त्योहार देश को एकता के सूत्र में पिरोता है, उसे अलग-अलग तिथियों में मनाने की घोषणा कर अपने-अपने तर्क प्रस्तुत करना यह हिंदू धर्म शास्त्रों व पंचांगों की विश्वसनीयता पर प्रशन चिन्ह लगाता है। खैर अहिल्या चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के व्यापारिक संस्थानों ने 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने का निर्णय लिया है। सभी सनातनी हिंदू भाइयों से आग्रह है कि इंदौर में विभाजित नहीं होकर एक ही तारीखको पूरा शहर महापर्व मनाए। 

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पहले भी तीखे बयानों के लिए जाने जाते रहे हैं खंडेलवाल

खंडेलवाल व्यापारियों के हित में मुद्दे उठाने के लिए पहचान रखते हैं। वह कई बार अधिकारियों को जीएसटी की बैठक में उनकी तकलीफों के चलते आईना दिखा चुके हैं। एक बार फिर उनके बयान ने धर्माचार्यों से लेकर व्यापारियों के बीच हलचल मचा दी है।

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धर्माचार्यों ने 1 नवंबर का फैसला लिया था

सोमवार को इंदौर में दीपपर्व 31 अक्टूबर या 1 नवंबर को मनाना है। इसे लेकर धर्माचार्यों ने एक बार फिर संस्कृत विद्यालय में बैठक कर फैसला लिया था कि 1 नवंबर को ही दिवाली मनाया जाना श्रेष्ठ है।

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क्यों बोले 1 नवंबर अधिक उपयुक्त

पंडित विनायक पांडे ने कहा था कि देश के विविध विद्वान और ज्योतिष व पंचांगों के विद्वान है सभी ने यह फैसला लिया है कि दिवाली हर दृष्टि से 1 नवंबर को ही मनाया जाना उचित होगा। इस फैसले का आधार धर्मशास्त्र है और इस देश से निकलने वाले करीब 95 फीसदी पचांग है। इसका कारण है कि दो दिवसीय प्रदोष व्यापिनी तिथि होती है तो उस दिन दूसरी वाली तिथि को ही पर्व मनाया जाए। पहली तिथि 31 अक्टूबर को अमवस्या चार बजे शुरू हो रही है और दूसरे दिन शाम 6.17 बजे तक रहेगी। सूर्यास्त के बाद एक पल भी अमावस्या रहती है तो यदि साढे तीन प्रहर तक अमावस्या रहती है तो उसी दिन एक नंवबर को ही दिवाली मनाना श्रेष्ठ और सर्व कल्याण के लिए उपयुक्त है।

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अयोध्या में भी एक नवंबर को मन रही है

पंडित पांडे ने कहा कि अयोध्या जहां रामलला है, वहां भी एक नवंबर को ही दिवाली मनाने का फैसला हो चुका है। फिर जह वहां मन रही है तो फिर इंदौर में भी इस दिन मनेगी। खजराना गणेश मंदिर के मुख्य पुजारी अशोक भट्‌ट ने कहा कि एक नवंबर ही श्रेष्ठ है। सभी का फैसला यही है। क्योंकि एक नवंबर को सूर्योद्य के समय भी अमावस्या है और सूर्यास्त के बाद भी आधे घंटे तक अमावस्या है। सभी व्यापारियों, कारोबारियों और आमजन से अपील है कि वह इसी दिन मनाएं। सारे देश में भी एक नंवबर को होगी।दिवाली 31 अक्टूबर को या फिर 1 नवंबर को मनना है? इसे लेकर पूरे देश में सवाल उठ रहे हैं। वहीं इंदौर में इसे लेकर धर्माचार्यों ने एक बार फिर संस्कृत विद्यालय में बैठक की। इसमें फैसला लिया गया कि 1 नवंबर को ही दिवाली मनाया जाना श्रेष्ठ है।

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