इंदौर कलेक्टर ने निगमायुक्त और IDA सीईओ के बीच ऐसे कराया समझौता

इंदौर नगर निगम की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। वहीं आईडीए एक समृद्ध संस्था है। निगम ने बकाया टैक्स वसूली को लेकर आईडीए को 50 करोड़ से अधिक राशि का टैक्स नोटिस भेजा था।

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Sanjay Gupta
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इंदौर नगर निगम और इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) दोनों ही शहर के विकास के लिए महत्वपूर्ण सरकारी एजेंसियां हैं। इन दोनों के बीच लंबे समय से एक पत्र युद्ध (लैटर वार) जारी था, जिसे अब इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह ने समाप्त किया है। उन्होंने दोनों ही संस्थाओं के प्रमुखों को एक बैठक में अलग से समझाया और इस तरह समझौता हुआ।

इस मुद्दे पर हुआ पत्र युद्ध

इंदौर नगर निगम की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, वहीं आईडीए एक समृद्ध संस्था है। निगम ने बकाया टैक्स वसूली को लेकर आईडीए को 50 करोड़ से अधिक राशि का टैक्स नोटिस भेजा था। निगम के अधिकारी आईडीए के कार्यालय भी गए और वसूली राशि को लेकर बातचीत की।

इस पर आईडीए ने भी अपनी टीम गठित की और निगम को पत्र का जवाब देते हुए उल्टा निगम पर ही राशि बकाया होने की बात कह दी। इसके बाद दोनों संस्थाओं के बीच कई बैठकें हुईं, लेकिन टैक्स विवाद और अधिक बढ़ गया। दोनों ही संस्थाएं एक-दूसरे पर बकाया राशि को लेकर लगातार पत्राचार कर रही थीं।

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कलेक्टर सिंह ने बीच में आकर कराया समझौता

इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए स्मार्ट सिटी ऑफिस में निगमायुक्त शिवम वर्मा और आईडीए सीईओ आरपी अहिरवार को बुलाया। इस दौरान सिंह ने निगमायुक्त वर्मा से कहा कि वे अपनी टैक्स रिकवरी की रणनीति में आईडीए जैसी सरकारी एजेंसी को प्राथमिकता सूची में सबसे नीचे रखें।

यदि आईडीए से कुछ राशि बकाया भी है, तो वसूली करने की बजाय उस राशि का उपयोग ब्रिज, सड़क निर्माण या अन्य विकास कार्यों के लिए किया जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि इन विकास कार्यों के लिए कोई प्रोजेक्ट तैयार कर उसे आईडीए से पूर्ण कराया जाए।

कलेक्टर का मानना था कि सभी सरकारी एजेंसियां आपस में जुड़ी हुई हैं, इसलिए एक खाते से दूसरे खाते में राशि स्थानांतरित होने से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा। आखिरकार, आईडीए और निगम ने कलेक्टर की बात मान ली और विवाद समाप्त कर दिया।

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इसी तरह बना था कलेक्टोरेट भवन

इंदौर में कलेक्टोरेट का नया प्रशासनिक संकुल भवन भी इसी तरह से बना था। डायवर्सन टैक्स के रूप में आईडीए पर काफी राशि बकाया थी, जिसके बदले में आईडीए ने करीब 50 करोड़ की लागत से इंदौर प्रशासन को यह भवन बनाकर दिया था।

यह मॉडल सरकारी संस्थाओं के बीच सहयोग और समन्वय का एक उदाहरण है, जो न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुगम बनाता है बल्कि शहर के विकास को भी गति देता है।

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