सुप्रीम कोर्ट ने भेजा फॉर्मेट, हाईकोर्ट से जमानत चाहिए तो फरियादी को पहले बताना होंगे अपने पुराने अपराध

असल में जमानत से जुड़े मध्यप्रदेश के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण दिशा–निर्देश जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक फॉर्मेट बनाकर हाईकोर्ट को भेजा है।

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Vishwanath Singh
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इंदौर सहित पूरे प्रदेशभर में अब कोर्ट से जमानत लेना आसान नहीं होगा। कोर्ट में जमानत की अर्जी दाखिल करने के साथ ही अब यह भी बताना होगा कि उस पर पूर्व के कितने मामले विचाराधीन हैं। अभी तक यह काम हाईकोर्ट को करना पड़ता था। इस व्यवस्था को बदले जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक नया फॉर्मेट भी हाईकोर्ट को भेजा है। अब उसी में सारी जानकारी भरकर जमा करनी होगी।

नई व्यवस्था में यह करना होगा

असल में जमानत से जुड़े मध्यप्रदेश के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण दिशा–निर्देश जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक फॉर्मेट बनाकर हाईकोर्ट को भेजा है। इसमें प्रिंसीपल बेंच जबलपुर, ग्वालियर और इंदौर खंडपीठ में जमानत, अग्रिम जमानत, सजा पर रोक या फिर अन्य तरह के मामले में हुई सजा या जमानत हासिल करने के लिए जो याचिका दायर की जाएगी। उसमें याचिकाकर्ता को ही घोषित करना होगा कि उसके खिलाफ पहले से कितने केस विचाराधीन हैं और कितने में सजा हो चुकी है।

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अभी तक यह होता है

कोर्ट में आने वाले इस तरह के मामलों में अभी तक यह काम हाईकोर्ट को ही करना पड़ता है। कोर्ट में याचिका दायर होने के बाद कोर्ट द्वारा डायरी तलब की जाती है। पूर्व के अपराधिक मामलों का रिकॉर्ड भी पुलिस से तलब कराया जाता है। इससे प्रकरण के निपटारे में समय लग जाता है। एक से दो दिन में पुलिस को अधिकृत रूप से नोटिस की प्रति मिलती है। उसके बाद पुलिस मामले की छानबीन करती है। व्यस्तता के चलते पुलिस कई बार समय पर अपराधों की जानकारी कोर्ट में नहीं दे पाती है। इससे केस को आगे बड़ाना पड़ता है। इसे देखते हुए अब सीधे याचिकाकर्ता को ही अपने पुराने अपराधों की जानकारी निश्चित फॉर्मेट में प्रकरण के साथ पेश करना होगी। 

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ऐसा होगा नया फॉर्मेट

अब जो नया फॉर्मेट कोर्ट द्वारा जारी किया गया है वह चार कॉलम का है। इसमें आवेदक को एफआईआर का नंबर, कौन सी धारा में केस दर्ज हुआ, थाना कौन है यह भी बताना होगा। इस नए तरीके से गंभीर किस्म के अपराधी आसानी से जमानत का लाभ नहीं ले पाएंगे। वहीं, जमानत, अग्रिम जमानत या सजा के खिलाफ याचिका दायर करते हैं तो उसमें पुराने रिकॉर्ड का जिक्र नहीं करते हैं। पुलिस भी अप्रत्यक्ष रूप से उसकी मदद कर देती है। कोर्ट को पुराने अपराधों के बारे में नहीं बताती है। 

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1 मई से लागू होगी नई व्यवस्था

यह नई व्यवस्था अब 1 मई 2025 से लागू होगी। इसमें खुद याचिकाकर्ता को पुराने रिकॉर्ड के बारे में बताना होगा। जैसे कि पिछले दिनों गुंडे हेमंत यादव का मामला देखा जा सकता है। उस मामले में गुंडे हेमंत के खिलाफ दर्जनों मामले दर्ज हैं, लेकिन हालही में उसने जिस मामले में जमानत मांगी तो पुराने रिकॉर्ड का उल्लेख ही नहीं किया।

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