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The Sootr
इंदौर के डीपीएस निपानिया का अवैध रूप से फीस वसूली को लेकर एक नया कांड सामने आया है। इसमें एक पालक ने अपनी बेटी की ऑफलाइन पढ़ाई के लिए फीस जमा की थी, लेकिन स्कूल ने कोरोना का हवाला देते हुए ऑनलाइन पढ़ाई करवा डाली। इस पर उन्होंने स्कूल मैनेजमेंट के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में अपना पक्ष रखा। इसमें पालक ने बताया कि स्कूल प्रॉफिट मेकिंग संस्थान है और उसके पालक इसके उपभोक्ता। ऐसी स्थिति में स्कूल पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत केस चल सकता है। तीन साल बाद 26 मार्च 2025 को इस संबंध में बहस हुई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया है।
9 वीं की छात्रा की पूरी जमा करवाई फीस
पुणे निवासी डॉ. संदीप कड़वे ने अगस्त 2020 में उपभोक्ता परिवाद निवारण आयोग इंदौर 1में केस लगाया था। इसमें कहा था कि उनकी बेटी 9वीं क्लास में डीपीएस निपानिया में पढ़ती है। स्कूल मैनेजमेंट ने ऑफलाइन पढ़ाई कराने के लिए फीस जमा करवाई और बिना उनकी अनुमति लिए ऑनलाइन क्लास लगाकर पढ़ाई करवाई। इसका उन्होंने विरोध किया और फीस जमा नहीं की तो डीपीएस के काउंसिल एडवोकेट रविंद्र सिंह छाबड़ा ने पालकाें को नोटिस भेजा था।
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क्लास से निकाल दिया और बोले कि पहले फीस भरो
उन्होंने बताया कि स्कूल मैनेजमेंट को फीस कम करने के लिए ई-मेल किया तो उन्होंने बेटी को ऑनलाइन क्लास से ही निकाल दिया। इस पर उन्होंने मैनेजमेंट से बात की तो जवाब मिला कि पहले आप पूरी फीस भरो। उसके बाद हम आपका केस भोपाल मैनेजमेंट को भेजेंगे। वहां से जो भी जवाब आएगा वह आपको बता देंगे। इस पर मजबूरन उन्हें 60 हजार रुपए फीस जमा करनी पड़ी। तब उन्होंने बेटी को वापस ऑनलाइन क्लास में लिया और दिनभर में 5 से 6 घंटे तक मोबाइल व लैपटॉप पर क्लास ली गई। जबकि पालकों ने ऑफलाइन पढ़ाई के लिए मोटी फीस दी थी।
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रविवार को रात 11 बजे फोन करके फीस मांगी
डॉ. कड़वे ने उपभोक्ता आयोग के सामने रखे अपने पक्ष में बताया कि स्कूल ने फीस मांगने के नाम पर मानसिक रूप से भी पालकाें को प्रताड़ित किया। वह रविवार को रात 11 बजे फोन करके फीस भरने के लिए धमकाते थे। बोलते कि हमें टीचर्स और स्टाफ का पेमेंट करना है, जबकि डीपीएस निपानिया ने कोरोना में आधे टीचर्स, मैस स्टाफ और ट्रांसपोर्ट के कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था। बेटी की 9वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद वे पुणे शिफ्ट हो गए और फिर वहीं से इंदौर आकर तीन साल तक सुनवाई में शामिल होते रहे।
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डीपीएस बोला, हम शिक्षा देते हैं, सेवा नहीं
उपभोक्ता आयोग में डीपीएस की तरफ से अपना पक्ष रखा गया कि वह तो शिक्षा देते हैं वे कोई प्रॉफिट मेकिंग संस्थान नहीं हैं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एक यूनिवर्सिटी के मामले में फैसला देते हुए उसे उपभोक्ता आयोग से बाहर रखा है। इसलिए उनका संस्थान भी इस आयोग के दायरे में नहीं आता है और उनके संस्थान को उपभोक्ता आयोग के दायरे से बाहर किया जाए।
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ऐसे उजागर हुआ डीपीएस का झूठ
डीपीएस की इस फर्जी दलील का झूठ डॉ. कड़वे ने उजागर कर दिया। उन्होंने आयोग को बताया कि डीपीएस का स्ट्रक्चर और जागरण वेलफेयर सोसायटी दोनों का स्ट्रक्चर अलग-अलग है। दोनों के मालिक भी अलग-अलग हैं। जागरण वेलफेयर सोसायटी ने इंदौर और भोपाल में स्कूल खोले जाने को लेकर फ्रेंचायजी उपलब्ध करवाई है और उसका एग्रीमेंट भी किया है। इसके एवज में जागरण ग्रुप ने डीपीएस से फीस भी ली है। साथ ही डीपीएस के एडवोकेट छाबड़ा ने जो नोटिस पालकाें को भेजे थे उसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि डीपीएस शिक्षा और अन्य सर्विस उपलब्ध करवाती है तो उसके एवज में आपसे फीस की अपेक्षा करती है। इससे यह साबित होता है कि डीपीएस एक प्रॉफिट मेकिंग संस्था है और उसमें पढ़ रहे छात्रों के पालक उसके उपभोक्ता हैं। इसी कारण से यह मामला उपभोक्ता आयोग में सुनवाई के लिए आया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी यूनिवर्सिटी को लेकर अपना ऑर्डर दिया है, लेकिन यह मामला तो स्कूल का है। इसलिए उस मामले के जजमेंट को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता।
पालकों फीस दे रहे इसलिए वे उपभोक्ता हैं
बुधवार को बहस में अपनी तरफ से डॉ. कड़वे ने यह भी पक्ष रखा कि एक अन्य विवेक सिंह के केस में भी कोर्ट ने आदेश दिए थे कि स्कूल ने फीस के लिए जो 30 हजार रुपए लिए वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अंतर्गत आता है तो उसे राशि लौटानी होगी। वहीं, डीपीएस निपानिया के मामले में भी पालक असल में स्कूल के उपभोक्ता हैं, क्याेंकि वे पढ़ाई की फीस देते हैं। होस्टल की फीस, मैस फीस, ट्रांसपोर्टेशन फीस चुकाते हैं और उनकी सेवाओं का उपभोग करते हैं।