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The Sootr
इंदौर में काेचिंग और स्कूल माफिया डमी बच्चों की पढ़ाई के नाम पर सालाना 200 करोड़ रुपए से ज्यादा का खेल कर रहे हैं। इसमें शहर के 20 से ज्यादा कोचिंग संस्थान ही अकेले 150 करोड़ रुपए से ज्यादा कमा रहे हैं तो स्कूलों के हिस्से में 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि फीस के रूप में पहुंच रही है। यही मोटी कमाई के दम पर इन कोचिंग और स्कूल वालों की चमड़ी इतनी मोटी हो गई है कि ये सीबीएसई और एमपी बोर्ड के अफसरों को भी कुछ नहीं समझ रहे हैं। कुछ स्कूल और कोचिंग वालों ने तो यहां तक खुलासा किया कि एलन और रैंकर्स इंटरनेशनल स्कूल में सीबीएसई की टीम द्वारा हर साल छापे मारे जाते हैं। उसके बावजूद ये सुधरने को तैयार नहीं हैं। साथ ही पैसे के दम पर ये सबकुछ मैनेज कर लेते हैं।
पूरे शहर से पालक, बच्चे और स्कूल प्रिंसीपल के आ रहे कॉल
कोचिंग और स्कूल माफियाओं की मनमानी का द सूत्र ने जब स्टिंग ऑपरेशन के जरिए खुलासा किया तो हमारे पास इंदौर ही नहीं मध्यप्रदेश के अलग–अलग शहराें से बड़ी संख्या में पालकों, बच्चों और स्कूल प्रिंसीपलों के फोन भी आए। उन सभी ने इन नामी कोचिंग और बड़े स्कूलों की मनमानी और काली करतूतों का खुलासा करते हुए सबूत भी दिए। साथ ही यह भी बताया कि कब–कब किस कोचिंग और स्कूल पर सीबीएसई के अफसरों का छापा पड़ा और फिर स्कूल व कोचिंग वालों ने उसे किस तरह से पैसे देकर मैनेज किया। साथ ही कुछ कोचिंग व स्कूलों वालों द्वारा सीबीएसई के अफसरों को कुछ बड़े नेताओं से फोन करवाकर कार्रवाई रुकवाई।
पालकों ने सांझा किया दर्द, रेग्यूलर बच्चे से ज्यादा नंबर डमी वालों के
इसको लेकर द सूत्र को जिन पालकाें ने फोन किया तो उन्होंने बताया कि मध्यमवर्गीय परिवारों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वे एलन, कल्पवृक्ष, कैटेलाइजर, अनएकेडमी जैसे बड़े कोचिंग संस्थानों में अपने बच्चों को पढ़ा सकें। इस पर वे अन्य कोचिंग क्लास में बच्चों को भेजते हैं और स्कूल में रेग्यूलर में एडमिशन करवाते हैं, लेकिन जब मेन एग्जाम का रिजल्ट आता है तो डमी बच्चों के नंबर रेग्यूलर बच्चों से ज्यादा आते हैं। ऐसे में रेग्लूर स्कूल जाकर पढ़ने वाले बच्चों में हीन भावना आती है और हमें भी काफी दुख लगता है। इस पर हम अपने आप को ठगाया महसूस करते हैं।
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रैंकर्स ने इस साल दिया एलन के 120 से ज्यादा डमी एडमिशन
एलन के सबसे ज्यादा बच्चे रैंकर्स इंटरनेशनल में ही डमी एडमिशन ले रहे हैं। इसके सबूत भी द सूत्र के हाथ लगे हैं। उसमें जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक इस साल 120 से ज्यादा डमी एडमिशन रैंकर्स में हुए हैं। इन सबूतों से यह भी खुलासा हुआ है कि अगर किसी कारण से 11वीं का बच्चा निर्धारित मुख्य परीक्षा के टाइम टेबल के अनुसार परीक्षा नहीं दे पाता है तो उसे इस हद तक सुविधा मुहैया कराई जाती है कि वह अकेला परीक्षा दे सकता है। अगर बच्चे के मार्क्स कम आए हैं तो पालक के हिसाब से मार्कशीट भी नई बनाकर दे दी जाती है।
विदेशों में रह रहे बच्चों के एडमिशन भी रैंकर्स में ही
रैंकर्स इंटरनेशनल स्कूल को लेकर एक और बड़ा खुलासा हुआ है कि जो बच्चे विदेशों में रहे रहे हैं। उनका नाम भी स्कूल के रिकॉर्ड में दर्ज है। जिस दिन सीबीएसई का नोटिस चोकिंग के लिए आता है तो उस दिन बच्चों को एलन कोचिंग से ही सीधे बसों के द्वारा स्कूल बुला लिया जाता है। पिछले साल भी 200 से ज्यादा बच्चों ने प्रेक्टिकल परीक्षा दी थी। इनमें से आधे से ज्यादा बच्चे डमी थे। यहां पर एडमिशन लेने वाले अधिकतर बच्चे तो सीधे 12वीं की परीक्षा देने की सेंटर पर जाते हैं। उन्होंने तो आज तक स्कूल ही नहीं देखा कि कहां पर आता है और कैसा दिखता है।
प्रिंसीपल बोले हम 10वीं तक सींचते हैं, 11वीं में वे डमी हो जाते हैं
इस खबर के बाद हमारे पास शहर के अलग–अलग स्कूलों के कई प्रिंसीपल और स्कूल मालिकों तक के कॉल आ रहे हैं। वे सभी इस डमी कल्चर से काफी परेशान हैं। उनमें से एक डेजी डेल्स स्कूल की प्रिंसीपल अमिता भटनागर ने बताया कि हमारे स्कूल से हर साल 10वीं के बाद लगभग 30 टीसी निकल जाती हैं। यह हमारे लिए काफी दुख की बात है कि हमारे यहां पर नर्सरी से एडमिशन लेने वाले बच्चे 10वीं तक पढ़ते हैं। हम उन्हें बचपन से अपने बच्चों की तरह दुलार देते हैं और आखिर में सबसे काबिल व अच्छे पढ़ने वाले बच्चे होते हैं वे सब टीसी लेकर चले जाते हैं। हम जब बच्चों से पूछते हैं तो वे बताते हैं कि हमें तो 11वीं से डमी बनना है। बच्चे 9वीं से ही बोलना शुरू कर देते हैं कि अगले साल के बाद हम रहेंगे ही नहीं। 10वीं क्लास तक में मेरे पास 80 तक बच्चे हैं और 11वीं में आते ही यह संख्या 25 से 30 तक रह जाती है। क्योंकि बच्चों को परीक्षा नहीं देनी, प्रेक्टिकल नहीं करना, उन्हें भरोसा चाहिए होता है कि स्कूल उन्हें 11वीं में पास कर देंगे।
12वीं की छात्रा का डमी स्कूल ने कर दिया साल खराब
डमी स्कूल की मनमानी और लापरवाही के कारण इस साल 12वीं की एक छात्रा अपनी परीक्षा ही नहीं दे पाई और उसका साल खराब हो गया। छात्रा माही बहिनिया ने बताया कि उसने प्रफुल्ल टॉकीज के पीछे स्थित एमपी बोर्ड के सरस्वती ज्ञान मंदिर में 11वीं तक रेग्लूर पढ़ाई की है, लेकिन वह स्कूल 8वीं तक ही था। इस पर 9वीं से आगे की उसकी पढ़ाई तो सरस्वती ज्ञान मंदिर में होती रही, लेकिन मार्कशीट उसे गांधीनगर के नव बोध स्कूल की दी जाती रही। अभी तक सबकुछ ठीक रहा, लेकिन 12वीं में जब परीक्षा का समय आया तो उसने सरस्वती ज्ञान मंदिर के मैनेजमेंट से रोल नंबर मांगा। इस पर मैनेजमेंट द्वारा बहाना बनाया जाने लगा कि अभी कुछ दिन में ही उसे रोल नंबर व एडमिट कार्ड मिल जाएगा, लेकिन उसे नहीं मिला और स्कूल मैनेजमेंट ने फोन भी बंद कर लिया। इसके कारण छात्रा अपनी 12वीं बोर्ड की परीक्षा नहीं दे पाई। इसके बाद छात्रा ने स्कूल के खिलाफ लिखित में शिकायत डीईओ कार्यालय में भी की, लेकिन वहां से भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
ऐसे समझें स्कूल वालों की कमाई का हिसाब
जो लिस्ट 30 से ज्यादा स्कूलों की लिस्ट ‘द सूत्र’ को खुद कोचिंग वालों ने उपलब्ध करवाई है। उन स्कूलों की मानें तो सालाना अकेले 11वीं में ही औसतन 100 बच्चे डमी में एडमिशन लेते हैं। ऐसे में इन 30 स्कूलों में सालाना 3000 बच्चे एडमिशन ले रहे हैं। प्रति बच्चा इन स्कूलों में लगभग 40 हजार रुपए फीस दे रहा है। ऐसे में इन 30 स्कूलों की ही सालाना कमाई लगभग 12 करोड़ रुपए हो रही है। वह भी तब जबकि बच्चा स्कूल आ ही नहीं रहा है।
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अब समझते हैं कोचिंग माफिया का करोड़ों का गणित
इन्हीं स्कूलों के बच्चे एलन, कल्पवृक्ष, कैटेलाइजर, अनएकेडमी और मेडिमेथ में पढ़ते हैं। वहां पर कम से कम एक बच्चे की जेईई की फीस 1 लाख 40 हजार रुपए है। ऐसे में अगर केवल 3000 बच्चों से ही कोचिंग वालों को सालाना मिली फीस की बात करें तो यह 42 करोड़ रुपए हो रही है।
अब बताते हैं शहर के 100 डमी स्कूलों की कमाई
शहर में एमपी बोर्ड और सीबीएसई के लगभग 100 डमी स्कूल चल रहे हैं। स्कूल संचालकों के मुताबिक प्रत्येक स्कूल में हर साल लगभग 100 बच्चे डमी में एडमिशन लेते हैं, तो इन स्कूलों में सालाना 10 हजार के करीब बच्चे डमी में पढ़ते हैं। ऐसे में प्रत्येक बच्चे की फीस जो कि औसतन 40 हजार रुपए बताई। उसके हिसाब से देखा जाए तो 40 करोड़ रुपए फीस बच्चाें से वसूली जाती है।
ऐसे ही कोचिंग संचालकों की कमाई जानें
इन दिनों शहर में लगभग 20 से ज्यादा कोचिंग संस्थान बच्चों को जेईई की पढ़ाई करवा रहे हैं। ऐसे में देखा जाए तो स्कूलों में सालाना डमी के रूप में एडमिशन लेने वाले 10 हजार बच्चे इन्हीं कोचिंग संस्थानों में दाखिला लेते हैं। प्रत्येक बच्चे से जेईई की फीस के रुप में ये कोचिंग संस्थान कम से कम 1 लाख 40 हजार रुपए वसूलते हैं। ऐसे में अगर 10 हजार बच्चों की बात करें तो 140 करोड़ रुपए फीस होती है, जो कि ये कोचिंग संस्थान बच्चों के पालकों से वसूल रहे हैं।
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10 हजार बच्चे तो सिर्फ औसतन हैं, असल आंकड़ा तो और ज्यादा है
एमपी बोर्ड के अफसरों के मुताबिक इस साल इंदौर में 11वीं के 41 हजार बच्चों ने परीक्षा दी है। इसमें से अगर हम जेईई के लिए डमी एडमिशन लेने वाले बच्चों को 20 प्रतिशत भी मानें तो भी 8 हजार के करीब तो एमपी बोर्ड के ही हो रहे हैं। इसी तरह सीबीएसई के अफसरों के मुताबिक 11 वीं में लगभग 20 हजार बच्चे परीक्षा में शामिल हुए हैं। ऐसे में 20 प्रतिशत 2 हजार के करीब होता है। ऐसे में कुल 10 हजार बच्चे तो जेईई के हैं। इसके अलावा पीएमटी, सीए, सीएस और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बच्चे अलग हैं।