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इंदौर शहर में थोड़ी भी आंधी चलने, बारिश आने पर बत्ती गुल क्यों हो रही है? इस सीधे सवाल का सीधा जवाब है बिजली कंपनी में हुआ घोटाला। मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी इंदौर को केंद्र की इंटीग्रेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम (IPDS) के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार के लिए 14 जिलों के लिए 523 करोड़ रुपए मिले थे। इसमें से इंदौर शहर के लिए 167 करोड़ रुपए थे। कायदे से तो यह राशि इसलिए केंद्र ने दी थी कि इससे बिजली कंपनी पुराने तार, खंबे, ट्रांसफार्मर हटवाएं और इसकी जगह नया इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े कराएं, लेकिन इसमें कंपनी के एक-दो नहीं 26 अधिकारियों ने मिलकर खेल कर दिया।
इस तरह किया गया यह घोटाला
साल 2017 में यह राशि आई और इसके तहत साल 2020 तक काम किया गया। अब इसमें कंपनी के असिस्टेंट इंजीनियर (एई), डिविजनल या एक्जीक्यूटिव इंजीनियर (डीई/ईई) और सुप्रिटेंडेंट इंजीनियर (एसई) ने खेल किया। इन्होंने ठेकेदारों से मिलीभगत कर इस स्कीम में खरीदे गए ट्रांसफार्मर, खंबे, तारों को बायपास व अन्य जगह बन रही कॉलोनियों के निजी बिल्डर को बेच दिया। ठेकेदारों को यह माल सस्ते दामों में बेच दिया। इसके साथ ही जहां एक खंबा लगना था वहां कागजों पर तीन लगना बता दिए गए। तय रूट से अलग जगह पर भी ट्रांसफॉर्मर और खंबे लगना बता दिया गया। वहीं कागजों पर लगना बताई गई इस सामग्री को लगाने के लिए मजदूर लगना बताकर उस काम के भी बिल लगवा दिए। यानी दोनों तरफ से माल कूटा।
यह ट्रांसफार्मर और तार हैं जो अवैध कॉलोनियों में लगे मिले। इस पर आईपीडीएस लिखा था। साथ ही अवैध कॉलोनी की लिस्ट जहां यह सरकारी तार, खंबे मिले थे।
देवास में तो तालाब में खंबे लगना दिखा दिए
इस मामले में अधिवक्ता अभिजीत पांडे व अन्य द्वारा शिकायतें की गई। शिकायत केंद्र सरकार तक गई। इसके बाद कंपनी जागी और इसकी जांच बैठाई। जांच केवल इंदौर शहर के पांच में से डिवीजन की और देवास की जांच की, जबकि काम कंपनी के दायरे में आने वाले इंदौर-उज्जैन संभाग के 14 जिलों में हुए थे। केवल तीन जगह पर और वह भी मात्र 20 फीसदी कामों की जांच की गई। इसमें कॉलोनियों के अंदर यह ट्रांसफार्मर और तार पाए गए। वहीं देवास में तो पाया गया कि एक तालाब के अंदर ही खंबे लगाना कागज पर दिखा दिए, मौके पर जांच अधिकारी गए तो तालाब दिखा, खंबे कहीं नहीं थे।
इसके बाद 26 अधिकारियों की हुई जांच शुरू, ये दोषी मिले
इसके बाद बिजली कंपनी ने इसमें सख्ती दिखाई और 26 बिजली कंपनी अधिकारियों को नोटिस जारी हुए। इन पर आरोप लगाते हुए जांच शुरू हुई। इसमें दो अधिकारी कामेश श्रीवास्तव और आरके नेगी को बरी किया गया लेकिन 12 अधिकारियों को दोषी मानते हुए दो से चार इंक्रीमेंट रोकने की कार्रवाई की गई। इसमें एई से लेकर डीई और एसई स्तर तक के अधिकारी हैं। दोषी पाए गए अधिकारियों में सतीश कुमरावत, एम गर्ग, भूपेंद्र सिंह, अभय कुमार पांडे, अनिल व्यास, सत्यप्रकाश जायसवाल, आरपी सिंह, आरपी कुंडल, बीएम गुप्ता, एम जेड़, ऋषिराज ठाकुर शामिल हैं। लेकिन अभी भी 12 अधिकारियों की जांच जारी है। यह जांच चार साल से चल ही रही है।
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छोटी जांच में ही 20 करोड़ का घोटाला निकल गया
कंपनी ने इस मामले में केवल इंदौर के दो डिवीजन और देवास को ही जांच में लिया, जबकि काम 14 जिलों में हुआ था। इस जांच में भी करीब 20 करोड़ का घोटाला सामने आ गया था। इसमें कंपनी अधिकारियों के साथ ही ठेकेदार कंपनी क्षेमा पावर चेन्नई भी दोषी पाई गई। ठेकेदार कंपनी को ब्लैक लिस्ट किया। लेकिन इसके बाद भी जिम्मेदारों ने सभी 14 जिलों की जांच ही नहीं कराई और घोटाला बढ़ते देखते हुए और बढ़ते दबाव के चलते मामले को वहीं रोक दिया गया। जबकि मौके पर जहां खंबे, तार लगाना बताया गया वह तो मौके पर मिले ही नहीं जैसे बजरंग नगर में 55 खंबे गायब मिले, जिसके लिए करोड़ों की बिलिंग हुई थी।
EOW में इसलिए रुकी जांच
इस मामले में ईओडब्ल्यू में भी शिकायत हुई और आरोपी ठेकेदार और कंपनी अधिकारियों की मिलीभगत पर केस करने की मांग हुई। लेकिन करीब डेढ़-दो साल से यह जांच यहां रूकी हुई है। बताया जा रहा है कि कंपनी ने इस मामले में कोई भी दस्तावेज ईओडब्ल्यू को उपलब्ध नहीं कराए हैं, इसके चलते जांच ही नहीं हो रही है।
क्या बोल रहे बिजली कंपनी के अधिकारी-
सीजीएम प्रकाश चौहान ने द सूत्र को बताया कि कंपनी ने इस मामले में 26 अधिकारियों के खिलाफ जांच की थी और सख्त कार्रवाई करते हुए जो भी 12 दोषी पाए गए उनके दो से चार इंक्रीमेंट रोके गए। वहीं बाकी अधिकारियों की अभी जांच जारी है।
विधानसभा नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी लगाए आरोप-
इस मामले में नेता प्रतिपक्ष विधानसभा उमंग सिंघार ने भी हाल ही में ट्वीट कर चेतावनी भी दी कि वह इस घोटाले का पर्दाफाश करेंगे। सिंघार ने लिखा कि- बिजली गायब, सिस्टम लापता और प्रदेश की जनता बेहाल! भीषण गर्मी में जहां बिजली की आवश्यकता सबसे अधिक होती है, वहीं बिजली कटौती और सिस्टम की लापरवाही ने प्रदेशवासियों का जीवन कठिन बना दिया है। बिजली विभाग में आए दिन सामने आ रहे घोटाले अब आम बात होते जा रहे हैं।
इंदौर में केंद्र सरकार की इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम (IPDS) के तहत आए ट्रांसफॉर्मर, खंभे और तार ज़मीन पर लगाने की बजाय कथित तौर पर निजी बिल्डरों को बेच दिए गए। इसी शहर में 100 करोड़ रुपए से अधिक का कार्य दिखाकर करोड़ों का भुगतान कर दिया गया, जबकि मौके पर कई स्थानों पर कोई कार्य हुआ ही नहीं।
इस भ्रष्टाचार का भुगतान इंदौर शहर की जनता आज भुगत रही है, रात रात भर विद्युत व्यवस्था ठप रह रही है, रखरखाव के नाम पर घंटों कटौती के बाद भी थोड़ी सी बारिश भ्रष्टाचार की पोल खोल रही है, अगर योजना में आया पैसे का उपयोग सही ढंग से होता तो शहर की जनता परेशान नहीं होती। पिछले सालों में लोगों के बिजली बिल बढ़ गए, आपूर्ति कम हो गई, जबकि सरकार 24 घंटे बिजली देने का दावा करती है। ऊर्जा मंत्री @PradhumanGwl जी अगर पार्क में टेंट लगाकर सोने के ‘प्रहसन’ से कुछ समय निकालें, तो शायद प्रदेश भर में फैली बिजली संकट और विभागीय भ्रष्टाचार पर ध्यान दे सकें। मैं आने वाले समय में इस मामले में हुए भ्रष्टाचार और घोटालों का पर्दाफाश करूंगा।
नेता प्रतिपक्ष निगम ने लगाया शिविर
उधर नगर निगम इंदौर नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे ने रविवार को विधानसभा क्षेत्र क्रमांक दो में बिजली की शिकायत के लिए शिविर लगाया। इसमें कई लोगों ने अपनी शिकायतें दर्ज कराई। कोई बिजली के भारी भरकम बिल से परेशान है तो कोई बिजली कंपनी की अघोषित कटौती से। इंदौर नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे, पार्षद राजू भदोरिया के द्वारा एम आर 10 चौराहा पर समस्या आपकी समाधान हमारा अभियान के अंतर्गत यह पहला शिविर लगाया गया था। लोगों ने कहा कि जब बिजली जाती है तो बिजली कंपनी के अधिकारी अपने मोबाइल बंद कर लेते हैं। नागरिकों की शिकायत से बिजली कंपनी का कोई वास्ता नहीं है। चिंटू चौकसे ने कहा कि अब इन शिकायतों के समाधान के लिए कांग्रेस के द्वारा गुरुवार 19 जून को सुबह 10 बजे विजय नगर विद्युत जोन का घेराव करेंगे। शिविर में विधानसभा दो से प्रमुख रूप से राजेश चौकसे, मुकेश यादव, अनिल यादव, अजय चौकसे, गब्बर पवार, कपिल हेड़ाऊ, राजेश यादव, कान्हा पटेल, शशि हड्डा, शरद शर्मा एवं अन्य कार्यकर्ता उपस्थिति हुए।
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