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INDORE. सोयाबीन की पैदावार के लिए मालवा क्षेत्र सबसे प्रमुख केंद्र है। यहां भी इंदौर-उज्जैन क्षेत्र सबसे अहम है। सोयाबीन के कम मिले रहे भाव को देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भावांतर योजना की घोषणा की है। इसमें किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी (5328 रुपए प्रति क्विंटल) दिलाने की मंशा जाहिर की गई है। लेकिन इंदौर में किसान इस योजना से खुश नहीं हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषंगी संगठन भारतीय किसान संघ ने इसका विरोध किया है।
क्या है भावांतर योजना, कैसे लागू होगी
इस योजना के लिए तीन अक्टूबर से किसानों का पंजीकरण शुरू होगा। इसके बाद मंडियों में बिकने वाली सोयाबीन का मॉडल रेट निकाला जाएगा, यानी माना जाएगा कि किसान को मंडी में सोयाबीन बिक्री पर इतनी राशि मिली है। इसके बाद इस मॉडल रेट और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के बीच के अंतर का भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा। योजना पूर्व में एक नवंबर से लागू होने की बात कही गई थी, लेकिन अब बताया जा रहा है कि इसे 24 अक्टूबर से लागू करेंगे।
अब किसान संघ क्यों कर रहा है विरोध
किसान संघ के इंदौर नगराध्यक्ष दिलीप मुकाती ने बताया कि हमारा पूर्व का 2018 का अनुभव अच्छा नहीं था, तब 500 रुपए देने की बात कही थी, फिर इसे बोनस राशि बताया गया, लेकिन किसानों के खाते में यह राशि नहीं आई।
मंडी में सोयाबीन 3300-4200 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है। संघ की मांग है कि एमएसपी लागू किया जाए और इस पर सोयाबीन की खरीदी की जाए।
मुकाती ने कहा कि 2018 में प्याज की भावांतर राशि जिले में 29 करोड़ बकाया है, जो आज तक नहीं मिली है।
सबसे बड़ी बात है कि इसे अक्टूबर अंत में लागू करने की बात हो रही है, जब तक तो छोटे और मध्यम किसान पूरी सोयाबीन बेच चुके होंगे, क्योंकि उन्हें तो अभी अगली फसल के लिए राशि चाहिए और ना ही भंडारण की व्यवस्था है। इसे अभी ही लागू करना चाहिए।
इंदौर में हर रोज 800-1000 वाहन सोयाबीन मंडियों में आ रहे हैं, बेच चुके किसानों को इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा।
इंदौर में भावांतर योजना के विरोध वाली खबर पर एक नजर..
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व्यापारियों के कार्टेल से डर रहा किसान
इंदौर किसान संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि भावांतर योजना जब लागू होती है, तो व्यापारी और अधिकारी मिलकर अधिक दाम पर खरीदी कराते हैं, जिससे मॉडल रेट अधिक आता है। मॉडल रेट और समर्थन मूल्य के अंतर का ही भावांतर में भुगतान होता है। बाद में जैसे ही योजना लागू होती है, तो फिर व्यापारी कार्टेल बनाकर दाम एकदम गिरा देते हैं, चाहे कितना ही दाम गिरे, सरकार मॉडल रेट और एमएसपी के बीच के अंतर को ही देती है, ऐसे में किसान को नुकसान होता है।
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