INDORE. इंदौर हर साल बारिश में दो-तीन इंच में भी डूब जाता है, सड़कें तालाब बन जाती है। जल निकासी के काम में आखिर हुआ क्या है जबकि अमृत योजना के तहत केंद्र से करोड़ों का फंड मिला है। इस सवाल की जानकारी इंदौर नगर निगम छिपा गया। आरटीआई (सूचना के अधिकार) में भी इसकी जानकारी नहीं दी गई। इसके चलते अब मप्र राज्य सूचना आयुक्त डॉ. उमाशंकर पचौरी ने तत्कालीन इंजीनियर सुनील गुप्ता पर 25 हजार का जुर्माना लगाते हुए 21 अप्रैल को व्यक्गित पेशी भी लगा दी है।
यह मांगी गई थी जानकारी
पूर्व पार्षद दिलीप कौशल ने बताया कि विगत 3 से 4 वर्ष पूर्व इंदौर नगर में एकाएक एकसाथ हुई मात्र 3 इंच वर्षा में शहर कि सड़के तालाब में तब्दील हो गई थी। इसका कारण जानकारों ने नगर निगम के जल निकासी व्यवस्था को फेल होना बताया गया था। प्रधानमंत्री द्वारा इंदौर स्मार्ट सिटी योजना अंतर्गत करोडो रुपए वर्षा जल निकासी के लिए मंजूर की गई थी और नगर निगम द्वारा प्रति वर्ष शहर में जल निकासी के नाम पर करोड़ों का बजट आवंटन किया जाता रहा है । जिसके सम्बन्ध में सूचना के अधिकार में आवेदन देकर "वर्षा जल निकासी" पर खर्च कि गई राशि से सम्बंधित जानकारी चाही गई थी। विभाग द्वारा निर्धारित समय में जानकारी नहीं दी गई, प्रथम अपीलीय अधिकरी व तत्कालीन अपर आयुक्त ने भव्या मित्तल जून 2022 में जानकारी देने के आदेश सुनील गुप्ता को दिए थे। गुप्ता द्वारा जानकारी नहीं दी गई और सेवानिवृत हो जाने से आवेदक को 975 दिवस तक जानकारी नहीं दी गई।
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जल निकासी नहीं सीवरेज के लिए मिला थी राशि
सूचना आयोग के समक्ष विवेश जैन ने उपस्थित होकर तथा आयोग के निर्देशों पर व्यक्तिगत शपथ-पत्र दाखिल कर बताया कि अमृत योजना में जल निकासी संबंधी काम नहीं होते हैं, इसमें सीवरेज काम के लिए राशि आई थी। इसलिए यह मामला जनकार्य विभाग को भेजा जाना था लेकिन गुप्ता द्वारा मामला नहीं भेजा गया। राज्य सूचना आयोग ने सभी तथ्यों तथा विवेश जैन के व्यक्तिगत शपथ-पत्र के आधार पर सुनील गुप्ता को जानकारी जानकारी छिपाने तथा अपीलीय अधिकारी के आदेश का पालन नहीं करने और आवेदक को 975 दिवस तक जानकारी से विलंबित रखने का दोषी माना। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 20 अनुसार 25 हजार रुपए दण्डित करने का आदेश पारित किया है।
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सीवरेज घोटाले के बाद छोड़ दी नौकरी
उल्लेखनीय है कि बीते साल इंदौर नगर निगम में 150 करोड़ का फर्जी बिल घोटाला सामने आया, जिसमें अधिकांश बिल सीवरेज जल संसाधन विभाग के थे। इसमें फरियादी सुनील गुप्ता ही थे, जिन्होंने इंजीनियर अभय राठौर सहित अन्य पर केस दर्ज कराया था। लेकिन इसके बाद एमआईसी बैठक में जनप्रतिनिधियों के निशाने पर गुप्ता भी आ गए और उन्हें बैठक से बाहर जाने का कहा गया, इसके बाद उन्होंने वीआरएस ले लिया और नौकरी ही छोड़ दी।
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