/sootr/media/media_files/2025/07/18/cumposit-system-in-indore-2025-07-18-19-10-27.jpg)
Photograph: (the sootr)
कचरे को कमाई का जरिया बनाने का हुनर इंदौर ने पूरे विश्व को सिखाया है। कचरे से खाद बनाकर इंदौर ने न केवल स्वच्छता के मापदंडों पर नया मुकाम हासिल किया है, बल्कि आय का नया स्त्रोत भी विकसित किया है। इंदौर कंपोस्ट सिस्टम का लंबा इतिहास रहा है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अपने इंदौर दौरे के दौरान इस इंदौर कंपोस्ट सिस्टम (Indore Compost System) तकनीक को देखने पहुंचे थे, उन्होंने न केवल कचरे से खाद बनाने के तरीके को समझा, बल्कि आश्चर्यचकित भी हो गए थे।
गांधीजी का इंदौर दौरा और उसके संस्मरण
गांधीजी ने इंदौर का दौरा 1935 में किया था, और इस यात्रा के दौरान उन्हें इंदौर कंपोस्ट सिस्टम (Indore Compost System) को करीब से देखा था। उस दौर में महात्मा गांधी कचरे से खाद बनता देख चाैक गए थे। यह सिस्टम कृषि के लिए जैविक खाद बनाने की एक विधि है, जिसे स्थानीय किसानों और वैज्ञानिकों ने मिलकर विकसित किया था।
गांधीजी ने इसे देखकर यह समझा कि भारतीय किसान कितने समझदार और सतर्क हैं, जो अपनी पारंपरिक तकनीकों का पालन करते हुए प्राकृतिक संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग कर रहे हैं।
/filters:format(webp)/sootr/media/media_files/2025/07/18/mahatma-ghandhi-in-indore-2025-07-18-19-11-07.jpeg)
यह खबरें भी पढ़ें..
यूपीआई के बदलेंगे नियम, बैलेंस चेक की लिमिट तय, जानिए कितना पडे़गा आप पर असर
इंदौर के दो 90 डिग्री वाले ब्रिज को देखने पहुंचे मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, PWD का झूठ खुला
क्या है इंदौर कंपोस्ट सिस्टम
इंदौर कंपोस्ट सिस्टम, जिसे अब "इंदौर विधि" के नाम से जाना जाता है, एक जैविक खाद उत्पादन प्रणाली है। इस प्रणाली के माध्यम से ग्रीन वेस्ट (Green Waste) को खाद में बदला जाता है, जो न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि इसे स्थानीय कृषि को पोषित करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
अल्बर्ट हॉवर्ड और इंदौर कंपोस्ट सिस्टम का इतिहास
इतिहास में जाएं तो यह बात सामने आती है कि इंदौर कंपोस्ट सिस्टम को विकसित करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले व्यक्ति डॉ. अल्बर्ट हॉवर्ड थे, जिन्होंने 1925 में इंदौर के कृषि संस्थान में जैविक खाद पर शोध किया।
उनका मानना था कि रासायनिक खाद के बजाय जैविक खाद का उपयोग कृषि के लिए ज्यादा लाभकारी है। उन्होंने इस तकनीक को विकसित करने में भारतीय किसानों के पारंपरिक ज्ञान का भरपूर उपयोग किया, जो समय के साथ एक प्रभावी प्रणाली बन गई।
यह खबरें भी पढ़ें..
छत्तीसगढ़ में 3576 स्कूलों में प्राचार्य के पद खाली, 75% स्कूल प्रभारी के भरोसे, पदोन्नति सूची अटकी
सरकारी नौकरी की है तलाश, तो बिहार पुलिस भर्ती में करें आवेदन, 21 जुलाई से आवेदन होंगे शुरू
इंदौर में ग्रीन वेस्ट प्लांट और कमाई का जरिया
इंदौर नगर निगम ने शहर के विभिन्न क्षेत्रों में ग्रीन वेस्ट प्लांट स्थापित किए हैं, जहां कचरे को जैविक खाद में बदला जाता है। यह कचरा मुख्य रूप से घरों से निकलने वाला खाद्य पदार्थों, पत्तियों, और अन्य जैविक अपशिष्ट से होता है।
इस कचरे का उपयोग खाद और जैविक गैस बनाने में किया जाता है, जिससे नगर निगम के राजस्व में भी वृद्धि हुई है। यह प्लांट इंदौर के हर क्षेत्र में नगर निगम के कचरे के निपटान की प्रक्रिया को और भी कारगर बना रहे हैं।
इंदौर नगर निगम ने ग्रीन वेस्ट से खाद बनाने की प्रक्रिया को अपनाया और इस वर्मी कंपोस्ट खाद को स्थानीय किसानों के बीच बेचना शुरू किया। इसके अतिरिक्त, इस खाद से उत्पादन होने वाली गैस को भी एक अतिरिक्त राजस्व स्रोत के रूप में बेचा जाता है। इस प्रक्रिया से नगर निगम को नियमित रूप से अतिरिक्त आय हो रही है।
ग्रीन वेस्ट से खाद बनाने के लाभ...
|
|
गांधीजी के विचारों से मेल खाता इंदौर का कंपोस्ट सिस्टम
इंदौर का कंपोस्ट सिस्टम महात्मा गांधी के विचारों से काफी मेल खाता नजर आता है। गांधी जी ने स्वतंत्रता की लड़ाई में हमेशा स्वदेशी पर जोर दिया, वहीं इंदौर में भी आजादी के पूर्व ही स्वदेशी तकनीक से कचरे का निपटान करने व उससे लाभकारी प्रोडक्ट बनाने की शुरुआत कर दी गई थी,यह तकनीक आज भारत के साथ विदेशों के लिए भी अनुकरणीय बन गई है।
thesootr links
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- राजस्थान की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक
- जॉब्स और एजुकेशन की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें
- निशुल्क वैवाहिक विज्ञापन और क्लासिफाइड देखने के लिए क्लिक करें
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃🤝💬👩👦👨👩👧👧👩