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छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग में प्राचार्य की नियुक्तियों और पदोन्नतियों का लंबे समय से अटका होना शिक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। प्रदेश के 75 प्रतिशत स्कूलों में प्रिंसिपल के पद रिक्त हैं, और 3576 स्कूल प्रभारी प्रिंसिपल के भरोसे चल रहे हैं। शिक्षा विभाग में 10 साल और आदिम जाति कल्याण विभाग में 12 साल से प्रिंसिपल की पदोन्नति नहीं हुई है। इस बीच, मुख्यमंत्री शिक्षा गुणवत्ता अभियान के तहत शुरू की गई पहल भी प्रिंसिपल की कमी के कारण प्रभावित हो रही है।
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प्रिंसिपल के रिक्त पद, शिक्षा व्यवस्था पर बोझ
छत्तीसगढ़ में कुल 1897 हाई स्कूल और 2886 हायर सेकंडरी स्कूल संचालित हैं, जिनमें प्रिंसिपल के 4783 पद स्वीकृत हैं। लेकिन वर्तमान में हाई स्कूलों में 1565 और हायर सेकंडरी स्कूलों में 2011, यानी कुल 3576 प्रिंसिपल के पद खाली हैं। इन स्कूलों को प्रभारी प्रिंसिपल चला रहे हैं, जो अक्सर अतिरिक्त जिम्मेदारियों के कारण पूर्ण दक्षता से काम नहीं कर पाते। प्रिंसिपल की अनुपस्थिति न केवल स्कूलों के प्रशासनिक कार्यों को प्रभावित कर रही है, बल्कि शैक्षणिक गुणवत्ता और संकुल व्यवस्था पर भी असर डाल रही है।
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मुख्यमंत्री शिक्षा गुणवत्ता अभियान पर असर
इस वर्ष शुरू किया गया मुख्यमंत्री शिक्षा गुणवत्ता अभियान कक्षा 1 से 12 तक की शिक्षा को बेहतर बनाने और संकुल व्यवस्था को मजबूत करने का लक्ष्य रखता है। इस अभियान में प्रिंसिपल संकुल के प्रमुख के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन सैकड़ों संकुल मुख्यालयों में पूर्णकालिक प्राचार्य की कमी के कारण शिक्षा का उन्मुखीकरण और उत्तरोत्तर विकास प्रभावित हो रहा है। शिक्षाविदों का मानना है कि प्रिंसिपल की नियुक्ति के बिना इस अभियान के लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा।
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प्रिंसिपल पदोन्नति सूची में अटकी प्रक्रिया
30 अप्रैल 2025 को स्कूल शिक्षा विभाग ने 2813 प्राचार्यों की पदोन्नति सूची जारी की थी, जिसमें ई-संवर्ग के 1478 और टी-संवर्ग के 1335 व्याख्याताओं और प्रधान पाठकों को प्राचार्य बनाया गया। लेकिन ढाई महीने बाद भी इन प्राचार्यों की पोस्टिंग नहीं हो सकी है। इस देरी का कारण हाईकोर्ट में चल रही कानूनी अड़चनें हैं।
9 जून से 17 जून 2025 तक हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 5 मई 2019 के नियम को सही मानते हुए सभी संबंधित याचिकाओं को 1 जुलाई को खारिज कर दिया था। इसके बाद उम्मीद थी कि प्राचार्यों की पोस्टिंग जल्द होगी। लेकिन एक व्याख्याता, नारायण प्रकाश तिवारी, की याचिका पर सिंगल बेंच से स्टे मिलने के कारण प्रक्रिया फिर रुक गई। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता तिवारी 30 जून 2025 को व्याख्याता पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, फिर भी शिक्षा विभाग पोस्टिंग शुरू नहीं कर सका।
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छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन का आग्रह
छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने इस स्थिति पर चिंता जताई और कहा, "12 साल बाद भी प्रिंसिपल पदोन्नति सूची के 2813 प्राचार्यों की पोस्टिंग ढाई महीने में नहीं हो सकी। यह शिक्षा व्यवस्था के लिए चिंताजनक है।" उन्होंने बताया कि आदिम जाति कल्याण विभाग की प्रिंसिपल पदोन्नति सूची में कोई अवरोध नहीं है, फिर भी प्रक्रिया लटकी हुई है। शर्मा ने स्कूल शिक्षा विभाग से शीघ्र पोस्टिंग शुरू करने की मांग की और कहा कि प्रिंसिपल की नियुक्ति से ही स्कूलों में शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार संभव है।
शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव
प्रिंसिपल की कमी का असर न केवल स्कूलों के प्रशासनिक कार्यों पर पड़ रहा है, बल्कि छात्रों की पढ़ाई और शिक्षकों के मनोबल पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। प्रभारी प्रिंसिपल अक्सर अन्य जिम्मेदारियों में उलझे रहते हैं, जिसके कारण स्कूलों में अनुशासन, शिक्षण कार्य और संकुल समन्वय प्रभावित हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रिंसिपल की नियुक्ति और पदोन्नति में देरी से सरकार की शिक्षा सुधार योजनाएं अधर में लटक रही हैं।
कानूनी रास्ते तलाश रहा शिक्षा विभाग
शिक्षा विभाग अब हाईकोर्ट के स्टे को हटाने और प्रिंसिपल की पोस्टिंग प्रक्रिया शुरू करने के लिए कानूनी रास्ते तलाश रहा है। छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन ने सरकार से इस मामले में तत्काल कदम उठाने की अपील की है। साथ ही, शिक्षा विभाग से मांग की जा रही है कि भविष्य में ऐसी देरी से बचने के लिए नियमित रूप से पदोन्नति और नियुक्ति प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाए।
शिक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती
छत्तीसगढ़ के 75 प्रतिशत स्कूलों में प्रिंसिपल की कमी और 3576 रिक्त पद शिक्षा व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती हैं। मुख्यमंत्री शिक्षा गुणवत्ता अभियान जैसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के बावजूद, प्रिंसिपल की नियुक्ति में देरी और कानूनी अड़चनें शिक्षा सुधार के रास्ते में बाधा बन रही हैं। सरकार को इस मुद्दे पर त्वरित कार्रवाई करनी होगी ताकि स्कूलों में शैक्षणिक और प्रशासनिक गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा सके। जैसे-जैसे यह मामला सुर्खियों में बना हुआ है, शिक्षा विभाग और सरकार पर प्रिंसिपल नियुक्तियों को जल्द पूरा करने का दबाव बढ़ रहा है।
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